बेबाक विचार

पृथ्वी पिघलेगी, विषैली होगी!

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पृथ्वी पिघलेगी, विषैली होगी!
ऐसी संभावना सन् 2021 की निरंतरता में है। महाकाल की महादशा इक्कीसवीं सदी और वर्ष इक्कीस से शुरू तीसरे दशक में पृथ्वी को बदलने का इरादा लिए हुए है। सोचें, सन् 2021 के अनुभव। ग्लेशियर पिघले। मौसम, बेमौसम हुआ। मौत, बेमौत हुई। पृथ्वी भी बीमार और मनुष्य भी बीमार! हवा अग्नि से दहकती हुई तो साथ में विषैले जीवाणु, वायरस फैलाते हुए। लगता है मानों पृथ्वी-प्रकृति को बरबादी का इंजेक्शन मनुष्य से है वहीं मनुष्य को प्रकृति आपादाओं से मारती हुई। आश्चर्य नहीं जो सन् 2021 में इंसान ने अंतरिक्ष में पर्यटन करते हुए बूझा कि पृथ्वी से बेहतर तो आकाश में रहना सुरक्षित! सचमुच पृथ्वी पर सहज सुरक्षित होना अब कैसा? The earth will melt क्या अमेरिका, यूरोप, जापान, चीन, ऑस्ट्रेलिया की विकसित जमीन पर सुरक्षित? क्या दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, भारत में जीना सुरक्षित? वायरस के आगे मानव की पंचतारा सराय भी उतनी ही असुरक्षित है, जितनी आदि काल के मनुष्य की गुफा रही होगी! प्रकृति और मनुष्य की आपदा और विपदा दोनों में परस्पर कहर बरपा देने की होड़! ऐसे-ऐसे तूफान, ऐसे चक्रवात, आग उगलती जमीन, कंपकंपाती ठंड और हर जगह, हर तरफ बेमौसम अतिवृष्टि या अति सूखा। क्या पृथ्वी और प्रकृति अतिवादी नहीं हो गई या हो रही है? और ऐसा होना क्या इंसान के अतिवादी होने से नहीं? तभी सन् 2022 में मानव को पृथ्वी की अधिक चिंता करनी होगी। इसलिए कि संकट पृथ्वी के गलने का है, पिघलने का है, जलने का है, डूबने का है और अंततः सूखने व बेजान होने का है। कुछ तो है जो 2021 में मनुष्य के दिल-दिमाग में यह सवाल बना बैठा कि पृथ्वी कितनी जिंदा रहेगी? सहस्त्राब्दियों की उम्र क्या अगले पचास-सौ सालों में ही उस अवस्था को पा जाएगी जो अचानक बुढ़ापे और मृत्यु में बदले। गौर करें और सन् 2022 व आने वाले वर्षों में लगातार हमें ऐसा करते रहना होगा, इहलोक याकि पृथ्वी के जीवन पर! क्या उसके जीवन को मनुष्य बचा सकता है? मानवता ने इस पर सन् 2021 में बहुत सोचा और लगातार सोचते हुए है। यह भी गनीमत जो महाबली अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सन् 2021 में संकल्प लिया। यूरोपीय-अमीर-सामर्थ्यवान देशों ने मिलकर इरादा बनाया कि अब पृथ्वी की चिंता करेंगे। अपने आपको सुधारेंगे। Read also हिंदू राजनीति कहां तक जाएगी Climate change flood drought पर मनुष्य क्या सुधर सकता है? वह प्रकृति का पारिस्थितिक बंधक, उसके अनुसार चलने वाला क्या हो सकता है? वह तो उड़ता है और उड़ते-उड़ते ब्रह्मांड में मानव बस्ती बसाने का भी रोडमैप बना बैठा है। ग्रह-नक्षत्रों में अपना नया ग्रह खोज रहा है। ग्रहों में अपने जैसे जीवधारी ढूढ़ रहा है। स्पेस स्टेशन बना रहा है। वहां से वह नई पृथ्वी तलाशेगा। तो पहले क्या? पृथ्वी पहले खत्म होगी या उससे पहले मानव की नई पृथ्वी बनेगी? सन् 2022 का यक्ष प्रश्न है कि हवा ने यदि ठान ली, वायरस बनते और फैलते ही गए तो प्रकृति बनाम मनुष्य के महायुद्ध में जीवधारी मानव क्या पहले निपट नहीं चुकेगा?... एक तरफ मनुष्य अपनी देवजन्य उपलब्धियां और दीर्घायु बनने की धुन और शोध लिए हुए वहीं दूसरी तरफ वह निराकार हवा, वायरस और आपदाओं में दम तोड़ते हुए भी। जाहिर है मौजूदा वक्त और उसकी महादशा का समय (जो पता नहीं कितने सालों चले) मनुष्य की बुद्धि, उसके ज्ञान-विज्ञान की निर्णायक परीक्षा लेने वाला है। सन् 2020 में बने हवा के बवडंर ने 2021 में मौत का जो तांडव रचा और सन् 2022 के जैसे लक्षण हैं वे यह सोचने को भी मजबूर करते हुए हैं कि मनुष्य के बस में भला है क्या? हमारा होना क्या कुछ होना है!
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