बेबाक विचार

तीसरी लहर को कमतर बताने की गलती

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तीसरी लहर को कमतर बताने की गलती
देश में लगातार ढाई लाख से ज्यादा केस आ रहे हैं और तीन सौ से ज्यादा लोग मर रहे हैं फिर भी लापरवाही कायम है। आंकड़ों को नंगी आंखों से देखने के बाद भी लोग इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। दिल्ली में पिछले पूरे हफ्ते हर दिन 30 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। पांच दिन में डेढ़ सौ के करीब लोग मरे हैं। फिर भी हर आदमी मान कर चल रहा है कि यह वैरिएंट ज्यादा खतरनाक नहीं है। केंद्र और सभी राज्यों की सरकारें, सारे स्वास्थ्य विशेषज्ञ और मीडिया यह बताने में जुटा है कि कोरोना वायरस की तीसरी लहर बहुत कमजोर है और इससे कोई खतरा नहीं है। वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन की खबर आने के साथ ही यह भी खबर आई थी कि यह बहुत माइल्ड वैरिएंट हैं, जो संक्रामक तो बहुत है, लेकिन घातक नहीं है। इसका मतलब है कि यह तेजी से फैलेगा, लेकिन गंभीर रूप से बीमार नहीं करेगा और जान नहीं लेगा। तभी पहले दिन से इसे लेकर भारत में लापरवाही का माहौल रहा और आज देश में लगातार ढाई लाख से ज्यादा केस आ रहे हैं और तीन सौ से ज्यादा लोग मर रहे हैं फिर भी लापरवाही कायम है। आंकड़ों को नंगी आंखों से देखने के बाद भी लोग इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। मिसाल के तौर पर दिल्ली की बात की जा सकती है, जहां पिछले साल के आखिरी चार महीनों में यानी सितंबर से दिसंबर के बीच 20 के करीब लोगों की मौत हुई, जबकि पिछले पूरे हफ्ते हर दिन 30 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। पांच दिन में डेढ़ सौ के करीब लोग मरे हैं। फिर भी हर आदमी मान कर चल रहा है कि यह वैरिएंट ज्यादा खतरनाक नहीं है। निश्चित रूप से कोरोना का ओमिक्रॉन वैरिएंट कम घातक है और इसके केसेज में अस्पताल में भर्ती होने की और मृत्यु की दर डेल्टा वैरिएंट के मुकाबले कम है। लेकिन क्या देश में सारे केस ओमिक्रॉन वैरिएंट के ही आ रहे हैं? क्या भारत में ऐसी सुविधा है, जिससे हर संक्रमित के सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग हो सके और यह पता चल सके कौन सा व्यक्ति किस वैरिएंट से संक्रमित है? भारत में जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा चुनिंदा लैब्स में ही है और हर दिन औसतन एक हजार से भी कम सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग हो रही है। लेकिन जितने भी सैंपल की टेस्टिंग हुई है उनसे पता चला है कि 80 से 85 फीसदी केस ओमिक्रॉन के हैं। इसका मतलब है कि 15 से 20 फीसदी केस अब भी डेल्टा वैरिएंट के हैं और डेल्टा अब भी उतना ही खतरनाक है, जितना पिछले साल की दूसरी लहर में था, खासकर ऐसे लोगों पर जिन्होंने वैक्सीन नहीं ली है। ध्यान रहे भारत में अब भी 11 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनको वैक्सीन की एक भी डोज नहीं लगी है और 25 करोड़ से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिनको दूसरी डोज नहीं लगी है। ऐसे लोग डेल्टा वैरिएंट की चपेट में आएंगे तो जान का खतरा होगा। लेकिन तीसरी लहर को कमतर बताने की ऐसी मुहिम चली है कि सब ओमिक्रॉन और डेल्टा का फर्क भूल गए हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे सारे केस ओमिक्रॉन वैरिएंट के हैं, जो गले के नीचे नहीं जा रहा है और फेफड़े को प्रभावित नहीं कर रहा है। अस्पताल में कम लोगों के भर्ती होने, कम लोगों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ने या कम लोगों के आईसीयू में भर्ती होने के आंकड़े देकर सरकारी स्तर पर लोगों को लापरवाह बनाया जा रहा है। कायदे से बिना डराए लोगों को यह बताने की जरूरत है कि ओमिक्रॉन कम खतरनाक है लेकिन शरीर पर उसके दीर्घकालीन असर को लेकर कोई अध्ययन नहीं हुआ है इसलिए उससे भी सावधान रहने की जरूरत है। दूसरे, डेल्टा वैरिएंट पहले की तरह ही खतरनाक है और जिन लोगों ने पिछले साल के शुरू में वैक्सीन लगवाई है उनके शरीर में अब एंटीबॉडी खत्म हो गई होगी। इसलिए बड़ी आबादी फिर से खतरे के दायरे में आ गई होगी या आ जाएगी। जिन लोगों को वैक्सीन नहीं लगी है वे तो खतरे के दायरे में हैं ही। इस बीच एक यह मिथक प्रचारित हुआ कि ओमिक्रॉन का संक्रमण अपने आप वैक्सीन की तरह काम करेगा। यानी ओमिक्रॉन हो गया तो फिर आपको कोई दूसरा संक्रमण नहीं होगा क्योंकि यह हर वैरिएंट के खिलाफ इम्यूनिटी दे रहा है, जबकि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।  Read also अखिलेश न बनाएं ‘भौकाल’! दूसरी चिंताजनक बात यह है कि ओमिक्रॉन को ही जितना ज्यादा फैलने दिया जाएगा, उसके म्यूटेशन से नए वैरिएंट के पैदा होने का खतरा उतना ही ज्यादा होता जाएगा। ध्यान रहे ओमिक्रॉन भी पिछले साल जून में ही पैदा हुआ वैरिएंट है, जिसको म्यूटेट होने की जगह यानी होस्ट मिला तो कई म्यूटेशन के बाद वह बेहद संक्रामक हो गया। इसी तरह अगर इसे होस्ट मिलता रहा यानी इसके म्यूटेशन की जगह मिलती रही तो नए वैरिएंट पैदा होंगे। एक यह भी खतरा है कि डेल्टा और ओमिक्रॉन मिल कर कोई नया वैरिएंट पैदा कर सकते हैं। पिछले दिनों खबर आई की ऐसा म्यूटेशन साइप्रस में मिला है, जहां डेल्टा और ओमिक्रॉन दोनों ने एक व्यक्ति की एक ही कोशिका को संक्रमित किया और दोनों के म्यूटेशन के डेल्टाक्रॉन नाम का नया वैरिएंट पैदा हुआ। इसका अध्ययन किया जा रहा है कि यह कितना घातक या संक्रामक है। इस बीच फ्रांस में एक नया वैरिएंट मिलने की खबर आई है। इसे अस्थायी रूप से आईएचयू नाम दिया गया है। 46 म्यूटेशन के बाद बने इस नए वैरिएंट को ओमिक्रॉन से भी ज्यादा संक्रामक माना जा रहा है। सोचें, घातक भले न हो लेकिन किसी वायरस का संक्रामक होना भी कम खतरनाक नहीं होता है। क्योंकि इस तरह के वायरस की चपेट में आने के बाद हर व्यक्ति का शरीर एक जैसी प्रतिक्रिया नहीं देता है। कम इम्यूनिटी या गंभीर बीमारी वाले लोगों के लिए कम घातक वैरिएंट भी खतरनाक हो सकता है। वायरस का म्यूटेशन न हो इसके लिए जरूरी है कि इसके संक्रमण को रोका जाए या कम किया जाए। उसके बगैर वायरस खत्म नहीं होगा और इसका दुष्चक्र चलता रहेगा। यह खतरा हमेशा बना रहेगा कि पता नहीं कब कोई घातक वैरिएंट सामने आ जाए और लोगों की जान लेने लगे। इसका एक नुकसान यह भी है कि कमोबेश हर समाज और देश को कुछ प्रतिबंधों के साथ रहने की आदत डालनी होगी, जिसका नुकसान अर्थव्यवस्था और समाज दोनों को होगा। सो, ओमिक्रॉन हो, डेल्टाक्रॉन हो या आईएचयू हो या पुराना डेल्टा वैरिएंट हो, इसे कमजोर मानने की गलती नहीं करनी चाहिए। जहां तक संभव हो सावधानी बरतते हुए लोगों को संक्रमित होने से बचाना चाहिए, जितने कम लोग संक्रमित होंगे, इसके म्यूटेशन और नया वैरिएंट बनने की संभावना उतनी ही कम होगी। जान-माल की सुरक्षा तो होगी ही।
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