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भांग,वीड,गांजे के खिलाफ खत्म हुई जंग!

गांजा कहे या वीड या चरस, इनके खिलाफ युद्ध खत्म हुआ, सफल हुआ, यह सुनना और जानना बहुत सुखद है। जब दुनिया तरह-तरह के युद्धों से घिरी हुई हैं – क्षेत्रीय युद्ध, गृहयुद्ध, धार्मिक युद्ध, पारिवारिक युद्ध, मित्रों के बीच युद्ध और नेताओं के बीच युद्ध – और इन सबका अंत दूर-दूर तक दिख नहीं रहा है तो यह सचमुच स्वागत योग्य है कि कम से कम एक लडाई, वीड के खिलाफ जंग का समापन हुआ।

आज में वीड के विषय पर इसलिए लिख रही हूं क्योंकि बीबीसी ने अपनी हालिया रपट में थाईलैंड को दुनिया की वीड राजधानी बताया है। और यह ठीक भी है।

मगर पहले थोड़ी पृष्ठभूमि। पिछले कुछ वर्षों में कई विकसित और शिक्षित देशों ने वीड (फिर उसे चाहे आप भांग कहें, चरस या फिर गांजा) को या तो वैध घोषित किया है या वहां अब इनका उपयोग अपराध नहीं रहा। इसका अर्थ यह नहीं है कि सिगरेट की तरह अब वीड भी नुक्कड़ की दुकान पर मिलेगी। उल्टे,  इन विकसित देशों में इनकी बिक्री पर कड़ाई से नियंत्रण रखा जाता है। केवल अधिकृत स्टोर्स से खरीदी गई कैनाबिस को वैध माना जाता है। कनाडा, उरूग्वे, आस्ट्रेलिया, पुतर्गाल, इटली, स्विटजरलैंड, अमेरिका के कई प्रांतों और थाईलैंड (दक्षिण-पूर्व एशिया में पहला) उन देशों की सूची में शामिल हैं जहां वीड का नशा या तो कानूनी है या कम से कम अपराध नहीं है।

पुराने जमाने में वीड का उपयोग दवाई के रूप में,मौज-मस्ती के लिए किया जाता था। अब कैनाबिस को जायज, वैध घोषित करने के पीछे एक बड़ा कारण ही यह है कि कम से कम 400 ईस्वी से इसका उपयोग औषधि के रूप में हो रहा है। परंतु समय के साथ भांग का पौधा औषधीय की जगह वर्जित की श्रेणी में आ गया। उसे कोकीन व हेरोइन की तरह एक ड्रग माना जाने लगा। हिप्पी काल में, दम मारो दम के युग में, भांग और चरस को प्रतिबंधित और गैर-कानूनी घोषित किया गया। तब ऐसा कहा जाता था कि यह अपराध, मानसिक विकृतियों, अवसाद, आत्महत्या, अति कामुकता आदि की जन्मदाता है और इसने कई पीढ़ियों को बर्बाद कर दिया है। इसके चलते अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और देशों के भीतर भी कैनाबिस पर अत्यंत कड़े प्रतिबंध लगाए गए। अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर हुए और सभी देशों के नारकोटिक्स विभाग काम के बोझ तले दबने लगे। दुनिया भर में कई पाब्लो एस्कोबार (कोलंबियाई ड्रग लार्ड) पैदा हो गए और कैनाबिस का विशाल ब्लेक मार्केट फलने-फूलने लगा।

परंतु पिछले कुछ दशकों में वीड के प्रति दुनिया का रुख नरम हुआ है। औषधि के रूप में उसके उपयोग पर अब ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। उसके औषधीय गुणों की और गहरी पड़ताल की जा रही है। क्लीनिकल परीक्षणों से पता चला है कि यह कई स्थितियों में कष्ट निवारण कर सकती है जैसे मल्टीपिल स्क्लेरोसिस में होने वाला मांसपेशियों का दर्द, कीमोथेरेपी के बाद जी मिचलाना, दवा प्रतिरोधी मिर्गी और वयस्कों में दीर्घकालिक दर्द।

वेदना को हरने और आनंद देने वाली कैनाबिस दुनिया में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली और सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली ड्रग है। सन् 2017 में दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश था जिसमें कैनाबिस पैदा नहीं होती थी। परंतु इस सबका आशय यह नहीं है कि यह पूरी तरह से जोखिम मुक्त है। इसकी ओवरडोज लेने की संभावना तो कम है परंतु दस में से एक व्यक्ति इसके आदी हो जाते हैं और बहुत अधिक मात्रा में या अधिक शक्तिशाली प्रकारों के लंबे समय तक सेवन से साईकोसिस का खतरा होता है। परंतु यह भी सही है कि कैनाबिस का प्रयोग करने वाले अधिकांश व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ बने रहते हैं। लंबा और उत्पादक जीवन जीते हैं। यह इससे भी स्पष्ट है कि जिन देशों ने इसे वैध करार दिया है वे नशेड़ियों से भरे उस तरह के डिस्टोपियन देश नहीं बने हैं जिनका विवरण हमें पीटर हिचेन्स के उपन्यासों में मिलता है।

कैनाबिस को वैधता प्रदान करने की शुरूआत 2013 में उरूग्वे से हुई थी। परंतु कनाडा द्वारा इसे पूरी तरह वैध घोषित करने के बाद से इस विषय पर अंतर्राष्ट्रीय बहस और विवाद शुरू हुए। कनाडा यह तर्क देता रहा है कि कैनाबिस के नियंत्रित कानूनी व्यापार से इसकी कालाबाजारी रूकेगी। यह उन युवाओं के लिए अच्छा होगा जो इसे कालेबाज़ार से खरीदते हैं। इस तर्क में दम है।

शायद यही कारण है कि एक के बाद एक देश मारियुआना के प्रति अपना रूख नर्म कर रहे हैं और औषधीय कैनाबिस को वैध घोषित कर रहे हैं। उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में मेडिकल मौज-मस्ती के लिए इस्तेमाल भी स्वीकार्य हो चला है। कुछ यूरोपीय देशों ने दोनों ही उद्देश्यों के लिए इसके इस्तेमाल को आसान बना दिया है। यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी मानना है कि कैनाबिस पर सीमित प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए ताकि उसका औषधि के रूप में उपयोग हो सके और उस पर शोध किया जा सके। आश्चर्यजनक है कि औषधीय कैनाबिस ऐसे देशों में भी पहुंच गई है जहां ड्रग्स संबंधी नियमों में ढिलाई की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। जैसे दक्षिण कोरिया, थाईलैंड व जिम्बावे। थाईलैंड में स्कंक (मारियुआना का एक प्रकार) की पत्ती, जिसे सूंघा जाता है, देश की अर्थव्यवस्था को संबल प्रदान कर रही है और वीड का व्यापार फल-फूल रहा है। बीबीसी के अनुसार थाईलैंड में प्लांटोपिया नामक एक शापिंग मॉल है जो मारियुआना की थीम पर बनाया गया है।

बावजूद इसके आज भी कई ऐसे देश हैं जिन्हें पांच नौंक वाली, गहरे हरे रंग की मारियुआना की पत्ती से एलर्जी है। रूस, चीन और भारत उन देशों में शामिल हैं जहां मारियुआना को लेकर नजरिया तनिक भी नहीं बदला है। इंग्लैंड और फ्रांस का भी मारियुआना के प्रति रूख कठोर बना हुआ है। कई देश असमंजस में हैं। कहीं यह पूरी तरह वैध है तो कहीं वैध तो है परंतु इसका उपयोग आप घर में नहीं कर सकते। कई देशों में इसका उपयोग करना अपराध तो नहीं है परंतु कानूनी भी नहीं है। जहां तक इसके औषधीय गुणों का सवाल है, दवा के रूप में इसके उपयोग के लिए कोई लाईसेंस जारी नहीं किया गया है और ना ही इस पर हुए क्लीनिकल व अन्य परीक्षण उस स्तर के हैं जैसे आधुनिक दवाओं के मामले में होते हैं।

बहरहाल दृष्टिकोण बदल रहे हैं परंतु मानसिकता अब भी वही है। वीड के खिलाफ युद्ध कभी समाप्त नहीं होगा क्योंकि ऐसे देश जो बुद्धि और शक्ति दोनों के मामले में कम विकसित हैं, जल्दी बदलेंगे नहीं। परंतु यह भी सच है कि औषधि के रूप में इसके उपयोग को वैध घोषित करने से इसके व्यापार और उपयोग में खुलापन आएगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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Published by श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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