बेबाक विचार

फिर प्रमाणित हिंदू कंसोलिडेशन

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फिर प्रमाणित हिंदू कंसोलिडेशन
जिस तरह मुसलमान अपनी सारी तकलीफों को दरकिनार कर धर्म की राजनीति के हिसाब से मतदान करते रहे हैं, बिल्कुल वहीं काम अब हिंदू कर रहे हैं। उनके लिए धर्म ध्वजा लहराना पहला काम है और अपनी निजी बुनियादी जरूरतों का पूरा होना और तकलीफों का दूर होना प्राथमिकता नहीं है। सो, उत्तर प्रदेश और बाकी तीन राज्यों- उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा की जीत को लाभार्थी के नए वोट बैंक के साथ साथ हिंदू समेकन यानी हिंदू कंसोलिडेशन के नजरिए से देखना चाहिए। Then Certified Hindu Consolidation उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनाव नतीजों की समीक्षा कई तरह से होगी। वोट के आंकड़ों की जितनी बारीकी में जाएंगे, उतने पहलू दिखाई देंगे और भाजपा की जीत के उतने कारण नजर आएंगे। लेकिन नतीजों के तुरंत बाद खास कर उत्तर प्रदेश के नतीजों पर त्वरित टिप्पणी कर रहे जो लोग हैं, जिनमें पार्टियों के नेता, न्यूज चैनलों के पत्रकार व उनके विश्लेषक भी शामिल हैं, उनके आकलन में दो-तीन चीजें कॉमन हैं। सबको लग रहा है कि कानून-व्यवस्था का बहुत बड़ा मुद्दा था, जिस पर लोगों ने वोट किया। उन्हें लग रहा है कि सरकारी योजनाओं का लाभ लेने वाले लाभार्थी वर्ग ने नमक का हक अदा किया और तीसरे, मजबूत नेता के तौर पर योगी आदित्यनाथ को लोगों ने पसंद किया। इन तीन के अलावा चौथी कॉमन बात यह है कि भाजपा के पास ऐसा संगठन है, जो लास्ट माइल डिलीवरी सुनिश्चित करता है। यानी केंद्रीय योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचाने, उन्हें इस बारे में बताने और मतदान के समय उनको बूथ पर ले जाकर उनका वोट डलवाने की बहुत शानदार मशीनरी भाजपा के पास है, जो बाकी दूसरी पार्टियों के पास नहीं है। इन चारों बातों से इनकार नहीं किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत में इन बातों का योगदान है। पर सवाल है कि उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा कैसे जीती? उत्तराखंड और मणिपुर में पांच साल सरकार चलाने के बाद भाजपा की सत्ता में वापसी हुई है और गोवा में तो वह लगातार तीसरी बार चुनाव जीती है! इन राज्यों में तो कानून-व्यवस्था का मुद्दा ही नहीं था और न इन तीनों राज्यों में मजबूत नेता का कोई नैरेटिव था! फिर भी भाजपा जीती तो इसको जरा बारीकी से देखना होगा। सबसे पहले उत्तर प्रदेश में भी कानून-व्यवस्था के मुद्दे को चुनावी नजरिए से देखने की जरूरत है। ध्यान रहे मायावती के मुख्यमंत्री रहते भी उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था में बहुत सुधार हुआ था और उनसे भी पहले भाजपा के ही मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने भी कानून व्यवस्था को बेहतर किया था लेकिन ये नेता न तो पूरे समय राज कर सके और न राज में वापसी कर सके। ऐसा क्यों हुआ? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मायावती ने कानून व्यवस्था में सुधार किया तो कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह पर नकेल कसी। और जब योगी आदित्यनाथ के राज में कानून व्यवस्था में सुधार हुआ तो ‘अतीक अहमद, आजम खान और मुख्तार अंसारी’ की नकेल कसी गई। Then Certified Hindu Consolidation भाजपा के बड़े नेताओं ने खास कर अमित शाह और योगी आदित्यनाथ ने अपने हर भाषण में कहा कि ‘अतीक अहमद, आजम खान और मुख्तार अंसारी’ को जेल में ही रखना है तो भाजपा को वोट दें। भाजपा ने इन तीन मुस्लिम चेहरों को प्रतीक बना दिया और इनके जरिए एक पूरे समुदाय को डिमोनाइज किया। उत्तर प्रदेश में हजारों इनकाउंटर हुए, जिनमें मारे जाने और घायल होने वाले लोगों में सबसे ज्यादा संख्या मुसलमानों की है। सो, भाजपा ने पिछले पांच साल में कानून-व्यवस्था को ही सांप्रदायिक बना दिया। ‘अतीक अहमद, आजम खान और मुख्तार अंसारी’ पर कार्रवाई हुई, जबकि धनंजय सिंह, विजय मिश्र, सुशील सिंह, रमाकांत यादव, रघुराज प्रताप सिंह, अभय सिंह जैसे बाहुबली और अपराधी छवि के लोग चुनाव लड़ रहे हैं। वारंट होने के बावजूद धनंजय सिंह प्रचार में घूमते रहे। सो, उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था पुलिस और प्रशासन का मामला नहीं है, बल्कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मामला है। ध्यान रहे उत्तर प्रदेश में भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा। सोचें, जिस समुदाय की 20 फीसदी आबादी हो, सबसे बड़ी पार्टी उसका एक भी उम्मीदवार न दे तो उसका क्या मैसेज जाएगा? याद करें कैसे 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल ने अपने कोटे की सौ सीटों में से एक भी भूमिहार उम्मीदवार नहीं दिया और सिर्फ एक ब्राह्मण उम्मीदवार दिया। इस तरह लालू प्रसाद ने अपने को पिछड़ों का मसीहा और अगड़ों का विरोधी बता कर पोजिशनिंग की और चुनाव जीत गए। इसके जरिए वे चुनाव को अगड़ा-पिछड़ा बनाने में कामयाब रहे थे। उसी तरह एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं देकर भाजपा ने अपने को मुसलमानों की विरोधी और हिंदुओं की एकमात्र प्रतिनिधि पार्टी के तौर पर पेश किया। Five state assembly election result Then Certified Hindu Consolidation Read also भाजपा की प्रचंड विजय का अर्थ भारतीय राजनीति में यह बात मिथक कथाओं की तरह प्रचलित है कि अच्छा काम करके चुनाव नहीं जीता जाता है। पहले कई बार ऐसा हो चुका है कि बहुत बढ़िया काम करने वाली सरकारों की वापसी नहीं हुई। फिर भाजपा के जिस अच्छे काम को उसकी जीत का कारण बताया जा रहा है उसमें क्या खास है, जो उसके खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी नहीं होती है? ध्यान रहे पांच राज्यों के चुनावों में से चार राज्यों में प्रो इन्कम्बैंसी वोट हुआ है। लोगों ने फिर से भाजपा की सत्ता में वापसी कराई है। इसकी क्या वजह है? इसकी वजह सिर्फ अच्छा काम या काम का प्रचार भर नहीं है। इसका कारण बहुसंख्यक मतदाताओं का भाजपा के पक्ष में एकजुट होना है। केंद्र में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के आने और भाजपा के केंद्रीय पार्टी बनने के बाद पिछले आठ साल में पार्टी के नेताओं ने हिंदू ध्रुवीकरण यानी पोलेराइजेशन को हिंदू समेकन यानी हिंदू कंसोलिडेशन में तब्दील किया है। यह आम धारणा है कि एक समाज के रूप में हिंदू भले एक हो लेकिन मतदान के समय उसका व्यवहार बदल जाता है। हिंदू व्यक्ति और हिंदू मतदाता दोनों अलग अलग होते हैं। हिंदू हितों की बात करने वाले भी मतदान के समय जातियों में बंट जाते हैं। इसके उलट 72 फिरकों में बंटे मुसलमान मतदान के समय एक हो जाते हैं। भाजपा उनकी साझा दुश्मन पार्टी हो जाती है। उसे हराने के लिए उनके यहां फतवा जारी होता है और जो पार्टी भाजपा से लड़ती दिखती है उसे वे रणनीतिक तरीके से वोट करते हैं। उनका यहीं व्यवहार अब हिंदू मतदाताओं ने भी अपना लिया है। वे भले आपस में लड़ते रहें और बंटे हुए दिखें लेकिन मतदान के समय एक हो जा रहे हैं। मतदान के समय भाजपा उनकी पहली पसंद बन जा रही है। पश्चिम बंगाल में भाजपा हार जरूर गई लेकिन उसे 38 फीसदी वोट मिले, जो कि सिर्फ हिंदू वोट थे। वहां भी अगर मुस्लिम आबादी 30 फीसदी नहीं होती तो जिस स्तर का ध्रुवीकरण हुआ था उसमें भाजपा निश्चित रूप से जीतती। जिस तरह मुसलमान अपनी सारी तकलीफों को दरकिनार कर धर्म की राजनीति के हिसाब से मतदान करते रहे हैं, बिल्कुल वहीं काम अब हिंदू कर रहे हैं। उनके लिए धर्म ध्वजा लहराना पहला काम है और अपनी निजी बुनियादी जरूरतों का पूरा होना और तकलीफों का दूर होना प्राथमिकता नहीं है। सो, उत्तर प्रदेश और बाकी तीन राज्यों- उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा की जीत को लाभार्थी के नए वोट बैंक के साथ साथ हिंदू समेकन यानी हिंदू कंसोलिडेशन के नजरिए से देखना चाहिए। यह नहीं कहा जा सकता है कि कंसोलिडेशन सौ फीसदी हो गया है लेकिन उस दिशा में ऐसी ठोस पहल हो गई है कि उस ट्रेंड को अभी तुरंत नहीं पलटा जा सकेगा। पिछले आठ साल की भाजपा की राजनीति का हासिल यह है कि सनातन धर्म भी एक राजनीतिक धर्म में तब्दील हो रहा है। हिंदू एक रणनीतिक राजनीतिक समुदाय बन रहा है और उसकी पहली पसंद भाजपा है। तभी हैरानी नहीं है कि कांग्रेस के भूपेश बघेल जैसे नेता भी भाजपा ब्रांड की राजनीति कर रहे हैं और अरविंद केजरीवाल तो पूरी तरह से भाजपा की टेम्पलेट के हिसाब से ही काम कर रहे हैं।
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