बेबाक विचार

कुप्रबंधन की ये कीमत है

ByNI Editorial,
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कुप्रबंधन की ये कीमत है
दिल्ली के गंगाराम और जयपुर गोल्डेन अस्पतालों में मरीजों की मौत इसलिए हो गई, क्योंकि वहां ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाई। अस्पताल और उनके साथ-साथ मरीज किस तरह आज ऑक्सीजन के लिए हांफते हुए दम तोड़ रहे हैं, उसकी हृदय विदारक खबरों ने लोगों के मन- मस्तिष्क को लगातार झकझोरे रखा है। ये हालत क्यों पैदा हुई, इस बारे में पिछले हफ्ते दिल्ली हाई कोर्ट ने जो टिप्पणी की, उसके बाद ज्यादा कुछ कहने को नहीं रह जाता है। जाहिरा तौर पर कोर्ट ने इसके लिए केंद्र सरकार को जवाबदेह ठहराया। बेशक ये सारा मामला आपदा का अनुमान लगाने और उसके मुताबिक कुशल प्रबंधन करने में नाकामी का है। ये बात तो खुद सरकार की तरफ से कही गई है कि देश में ऑक्सीजन की कमी नहीं है। अगर मेडिकल ऑक्सीजन की कमी हुई भी, तो उसकी भरपाई औद्योगिक ऑक्सीजन का इस मकसद के लिए उपयोग करके हो सकता था। गौरतलब है कि जब हालात बेकाबू हो गए तो केंद्र अब सरकार ने नौ आवश्यक उद्योगों को छोड़ कर बाकी सारे ऑक्सीजन की आपूर्ति अस्पतालों को करने का आदेश दिया। कहने का तात्पर्य यह कि सारा मसला जरूरत को समझने, प्राथमिकता तय करने और उसके मुताबिक उचित फैसला लेने से जुड़ा है। और जो बात ऑक्सीजन के लिए सही है, वही वेंटिलेटर और आपात स्थिति के लिए अस्पताल बिस्तरों के इंतजाम पर भी लागू होती है। एक बिजनेस अखबार की खबर के मुताबिक पिछले साल सरकार ने मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत देसी उद्योगों को वेंटिलेटर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया था। कंपनियों ने इसका पालन किया। लेकिन जब बात खरीदारी की आई, तो सरकारों ने कोई ऑर्डर नहीं दिए। नतीजतन, कंपनियों को नुकसान हुआ और उन्होंने वेंटिलेटरों का उत्पादन रोक दिया। जबकि अगर ये अनुमान लगाया गया होता कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर भी आएगी, तो उसकी खरीदारी की गई होती। अगर ऐसा हुआ होता, तो आज अनगिनत मरीजों की जान बचाई जा सकती थी। अगर दुनिया के हर देश में महामारी की कई लहरें आती रही हैं, तो ऐसा तो संभव नहीं था कि भारत में ऐसा नहीं होता। लेकिन बजाय इसके लिए एहतियाती इंतजाम करने के प्रधानमंत्री ने बीते फरवरी में अंतरराष्ट्रीय श्रोताओं (दावोस) के सामने एलान कर दिया कि भारत ने महामारी को हरा दिया है। अब जबकि प्रधानमंत्री ऐसा कह रहे थे, तो लोग भी अगर लापरवाह हो गए, तो उसमें क्या आश्चर्य है? अब इन सबकी कीमत क्या है, हम देख रहे हैं।
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