कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सावधानी बरती जाए, यह तो अनिवार्य है। लेकिन इस वायरस के भय ने समाज में ऐसी अमानवीय परिस्थितियां पैदा कर दी हैं कि फिलहाल उसका क्या समाधान है, यह समझ से परे लगता है। लोगों के स्तर पर तो छुआछूत और अतार्किक व्यवहार करने के उदाहरण रोज ही अनगिनत सामने आते हैं। मगर सरकारी स्तर पर भी ऐसा होने लगे तो यही कहा जाएगा कि पानी अब सिर के ऊपर से गुजर गया है। ये मामला कुछ ऐसी ही परिस्थिति की तरफ इशारा करता है। यूएई से दिल्ली लाए गए तीन भारतीयों के शव को अधिकारियों ने वापस भेज दिया। ये घटना इतनी परेशान करने वाली है कि इस पर यूएई स्थित भारत के राजदूत पवन कपूर ने भी हैरानी जताई। उन्होंने स्पष्ट किया कि मरने वाले तीनों व्यक्ति ही कोरोना पॉजिटिव नहीं पाए गए थे। गौरतलब है कि कुछ रोज पहले संयुक्त अरब अमीरात के अबु धाबी से तीन भारतीयों के शव को दिल्ली भेजा गया था। लेकिन एयपोर्ट पर आव्रजन संबंधी कुछ समस्याओं का अवाला देते हुए इन शवों को वापस अबू धाबी भेज दिया गया। इसे लेकर परिजनों ने कड़ी नाराजगी जाहिए की है और दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई है।
यूएई में काम करने वाले संजीव कुमार और जगसिर सिंह का देहांत 13 अप्रैल को हुआ था, जबकि कमलेश भट्ट ने दिल का दौरा पड़ने से 17 अप्रैल को आखिरी सांस ली थी। उन लोगों के ही शव दिल्ली हवाई अड्डे पर आए, लेकिन उन्हें लौटा दिया गया। जब याचिका हाई कोर्ट में दायर हुई और कोर्ट ने जवाब तलब किया तो भारत सरकार ने सिर्फ यह कहा कि वो इस बात का पता लगा रही है कि फिलहाल कमलेश भट्ट का शव कहां है। बात सिर्फ भट्ट की गई क्योंकि याचिका उत्तराखंड में टिहरी जिले के रहने वाले भट्ट के भाई विमलेश भट्ट ने याचिका दायर की है। उन्होंने अपने भाई का पार्थिव शरीर वापस लाने का अनुरोध किया है। बहरहाल, मामला यह नहीं है कि अदालत क्या आदेश देती है। मुद्दा विदेश से आए लोगों या उनके शवों को लेकर फैले अंधविश्वास का है। ऐसी भी घटनाएं हुई हैं, जब पारिवारिक आपातकाल के बावजूद दिल्ली में एक हाउजिंग सोसायटी ने दूसरे के निवासी का प्रवेश वर्जित कर दिया। आखिर हम कहां जा रहे हैं?
ये अक्षम्य अमानवीयता है
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