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तियानमेन नरसंहार की जिंदा है याद!

तियानमेन नरसंहार की जिंदा है याद!

बीजिंग के तियानमेन चौक के नरसंहार को 34 साल हो गए हैं। चार जून 1989 को हुए उस बेरहम दमन ने पूरी दुनिया को स्तंभित कर दिया था। तब का एक फोटो, जिसमें अपने हाथों में दो शॉपिंग बैग लिए एक अकेला निहत्था आदमी भीमकाय टैंकों की लम्बी लाइन के सामने डटा हुआ है, सत्ता के प्रतिरोध का सिम्बल बना था। तबसे ही तियानमेन नरसंहार चीन में संवेदनशील और विवादस्पद मुद्दा है। चीन ने इस घटना को अपने देश के लोगों की यादों से गायब करने के भरपूर प्रयास किये हैं। नंबर 64 (जैसा कि इस घटना को कहा जाता है) से जुड़े लेख, फोटो और खबरें गायब कर दी गईं हैं। आज बहुत से चीनियों को मालूम ही नहीं हैकि टैंकमैन (टैकों के सामने अकेला खड़ा आदमी) कौन था।

चीन के प्रभाव क्षेत्र में केवल हांगकांग ऐसा स्थान था जहाँ 1989 के घटनाक्रम को याद करने के लिए बड़े आयोजनों की इज़ाज़त थी। हांगकांग के लोग हर चार जून को मोमबत्तियां जलाकर चीन के सेना के हाथों मारे गए प्रदर्शनकारियों को याद करते थे। परन्तु पिछले तीन सालों से हांगकांग के विक्टोरिया पार्क में तियानमेन की याद में रतजगा या कोई और कार्यक्रम करने की इज़ाज़त नहीं है। धीरे-धीरे इस त्रासद घटना की याद में होने वाले आयोजन भी लोगों की स्मृति से हटाए जा रहे हैं। पिछले तीन सालों से सरकार ने कोविड महामारी के बहाने और राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों का इस्तेमाल करते हुए 4 जून को कोई आयोजन नहीं होने दिया। और इस साल चार जून को एक त्योहार बना दिया गया है।

तियानमेन को याद करने के आयोजन के भी सभी बड़े नेता गिरफ्तार किये जा चुके हैं। उन्हें नेशनल सिक्यूरिटी कानून के अंतर्गत सजा भी सुनायी हो गई है। चाउ हांग-तुंग, ली चयूक-ययान और अल्बर्ट हो एक साल से अधिक समय से जेल में हैं। ये तीनों हांगकांग अलायन्स के संस्थापक हैं। यह संस्था ही 4 जून को तियानमेन विजिल का आयोजन करती आई है। उनकी गिरफ्तारियों को हांगकांग वासियों के लिए एक सन्देश, एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।

हांगकांग पर पूरा नियंत्रण करने के बाद चीन ने सबसे पहले तियानमेन चौक की याद दिलाने वाली सभी मूर्तियों को उखाड़ फेंका। इस नरसंहार कर केन्द्रित एक म्यूजियम में ताले डाल दिए गए। मई में सरकार ने सभी सार्वजनिक लाइब्रेरियों से वे सारी किताबें हटा दीं जिनमें तियानमेन चौक की चर्चा थी। जब यह आरोप लगा कि सरकार सेंसरशिप कर रही है तब हांगकांग के चीफ एग्जीक्यूटिव जॉन ली ने सफाई दी कि प्राइवेट बुकशॉप्स में सभी किताबें मिलतीं रहेंगी। परन्तु किताबों की दुकानों के मालिक भी सरकार की नाराज़गी मोल लेना नहीं चाहते। वे भी अपनी दुकानों से ऐसी सभी किताबें हटा रहे हैं। दरअसल, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून इतना अस्पष्ट है कि उसमें किसी को भी मुलजिम बनाया जा सकता है और सजाएं इतनी कड़ी हैं कि कोई खतरा उठाना नहीं चाहता। क्या अपराध है और क्या नहीं इसकी परिभाषा जानबूझकर अस्पष्ट रखी गयी है ताकि लोग खुद ही अपने सेंसर बन जाएं।

परन्तु चीन बाकी दुनिया से तो इतिहास को गायब नहीं कर सकता, हालाँकि इसका प्रयास भी वह करता रहा है। और हाँ, उसने विदेशों में रहने वाले अपने नागरिकों को भी इतना डरा दिया है कि वे इस तरह के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने में घबड़ाते हैं और उससे बचते हैं।

तियानमेन की बरसी की पिछली शाम, न्यूयॉर्क में तियानमेन नरसंहार म्यूजियम खुला परन्तु इसका स्थानीय चीनी समुदाय ने विरोध किया और यह आरोप लगाया कि इस म्यूजियम के पीछे विघटनकारी तत्व हैं। म्यूजियम ने यह तय किया है कि वह केवल पहले से बुकिंग करवाने वाले दर्शकों को ही प्रवेश देगा क्योंकि उसे आशंकाहै कि चीन के दूतावास से वहां डर का माहौल बनाने के लिए लोग भेजे जा सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन जासूसों के जरिये दूसरे देशों में रहने वाले चीनी प्रवासियों में भी प्रतिरोध को दबाने का प्रयास कर रहा है। चीन ने इन देशों में अपने प्रचारक भी छोड़ रखे हैं। नतीजे में प्रतिरोध की आवाज़ उठाने वालों की मुश्किलें बढती जा रही हैं। वे चाहते तो हैं कि तियानमेन की धुंधली पड़ती यादों को जिंदा रखा जाए परन्तु उन्हें पता नहीं है कि कौन सरकार का जासूस है और कौन सचमुच उनके साथ है। नतीजा यह कि लन्दन या वाशिंगटन में होने वाले आयोजनों में भाग लेने में भी हांगकांग के लोग डरते हैं। कई तो अपने चेहरे मुखौटों से ढंके रहते हैं।

हांगकांग में इस साल चार जून को तियानमेन की याद में कोई आयोजन नहीं हुआ। इसकी जगह चीन-समर्थक समूहों ने हांगकांग को चीन को सौंपे जाने की वर्षगांठ का उत्सव मनाने के लिए तीन दिन के मेले का आयोजन किया। हालाँकि वर्षगांठ जुलाई में होगी परन्तु इस ‘नयी यात्रा’ की शुरुआत का जश्न चार जून से मनाया जा रहा है। चीन के इतिहास के काले पन्नों को इतिहास से गायब करने का काम जिस बड़े पैमाने पर हांगकांग में किया जा रहा है, उससे यह शहर भी इस मामले में चीन की मुख्य भूमि की तरह हो जायेगा, जहाँ प्रदर्शनकारी छात्रों को कुचलने के लिए टैंक भेजने के नेतृत्व के निर्णय पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करना नामुमकिन है। चीन के प्रभाव क्षेत्र वाली दुनिया में अब केवल ताइवान ऐसी जगह बचा है जहाँ 4 जून को बड़ा कार्यक्रम होगा। वहां च्यांग काई शेक के स्मारक पर सैकड़ों लोग इकठ्ठा होंगे और मोमबत्तियां जलाई जाएँगी। लेकिन यह कितने साल और चल सकेगा यह कहना मुश्किल है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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Published by श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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