बेबाक विचार

मकसद सद्भाव है या विवाद?

ByNI Editorial,
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मकसद सद्भाव है या विवाद?
पाकिस्तान की इमरान खान सरकार ने जब करतारपुर में गुरद्वारे को भारतीय श्रद्धालुओं के लिए खोलने की योजना का एलान किया था, तब उससे खासकर पंजाब और सिख समुदाय में सचमुच बड़ा उत्साह पैदा हुआ था। लेकिन बाद में बात उसी भावना के मुताबिक आगे नहीं बढ़ी। भारत- पाकिस्तान संबंधों का वैर फिर से इस मामले में हावी हो गया। अब पाकिस्तान सरकार ने जो कदम उठाया है, उससे माहौल में और कड़वाहट आ सकती है। पाकिस्तान सरकार ने करतारपुर गुरुद्वारे के प्रबंधक को बदलने का फैसला किया है। अभी तक इसका प्रबंधन पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (पीएसजीपीसी) के पास था, जो पाकिस्तान के अल्पसंख्यक सिख समुदाय की अपनी संस्था है। पाकिस्तान सरकार अब गुरूद्वारे का प्रबंधन इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के हवाले कर रही है, जो एक गैर-सिख संस्था है। ये पाकिस्तान सरकार की एक वैधानिक संस्था है, जो उन संपत्तियों की देखरेख करती है जो बंटवारे में पाकिस्तान छोड़ कर चले जाने वाले हिंदू और सिख पीछे छोड़ गए थे। ये हिंदुओं और सिखों के बाकी धार्मिक स्थलों की भी देखरेख करती है। इस बोर्ड की स्थापना 1950 की नेहरू-लियाकत संधि और 1955 की पंत-मिर्जा संधि की शर्तों के तहत पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए की गई थी। लेकिन लंबे अरसे से ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि इस संस्था में पाकिस्तान सरकार अल्पसंख्यकों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित नहीं करती। इस समय भी बोर्ड के छह के छह आधिकारिक सदस्य मुस्लिम हैं और 18 गैर-आधिकारिक सदस्यों में से सिर्फ आठ सदस्य हिंदू और सिख हैं। तो ये सवाल वाजिब है कि पाकिस्तान सरकार अल्पसंख्यकों की धार्मिक भावना का ख्याल क्यों नहीं करती? किसी धर्म स्थल की सही देखभाल क्या उसी धर्म से जुड़े श्रद्धालु ही बेहतर ढंग से नहीं कर सकते हैं? यह उचित ही है कि भारत सरकार ने करतारपुर गुरुद्वारे के प्रबंधन में बदलाव के निर्णय का विरोध किया है। भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह एकतरफा करतारपुर गलियारे की आत्मा और सिख समुदाय की भावनाओं के खिलाफ है। गौरतलब है कि पाकिस्तान के पंजाब में स्थित करतारपुर गुरुद्वारा सिखों के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। इसकी स्थापना खुद सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक ने की थी और उनकी जिंदगी के आखिरी साल इसी जगह पर गुजरे थे। अतः यह उचित होगा कि सिख भावनाओं का ख्याल करते हुए पाकिस्तान सरकार अपना ये फैसला बदल ले।
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