पिछले दिनों भारत ने मलेशिया के खिलाफ आर्थिक कार्रवाई करते हुए वहां से पाम ऑयल का आयात घटा दिया। हालांकि भारत सरकार ने अभी तक औपचारिक रूप से इस कार्रवाई की बात नहीं कही है, लेकिन कथित कदमों का ठोस असर मलेशिया पर साफ दिखा है। मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने अपनी आलोचना वापस तो नहीं ली, लेकिन उन्होंने इन अनौपचारिक प्रतिबंधों के लागू होने और उनकी वजह से मलेशिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे असर को स्वीकार किया। अब सवाल है कि क्या इसी तरह तुर्की भी भारत के निशाने पर है? तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्य्प एर्दोवान ने पिछले साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र में कहा था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने 80 लाख कश्मीरियों की दुर्दशा को नजरअंदाज कर दिया है।
यह भारत सरकार की तरफ से कश्मीर में उठाए गए कदमों की तीखी आलोचना थी। तब से भारत एर्दोवान से नाराज है। पिछले दिनों खबर आई कि भारत तुर्की से तेल और इस्पात के उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है। लेकिन क्या यह संभव है? असलियत यह है कि भारत तुर्की से जितनी चीजें खरीदता है, उससे कहीं ज्यादा अपनी चीजें तुर्की को बेचता है। 2018 में दोनों देशों के बीच लगभग आठ अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जिसमें भारत ने करीब तीन अरब डॉलर का सामान तुर्की से खरीदा और करीब पांच अरब डॉलर का सामान बेचा। जाहिर है व्यापार की दृष्टि से तुर्की के खिलाफ कदम उठाने की भारत के पास ज्यादा गुंजाइश नहीं है। कुछ और कदम भारत पहले ही उठा चुका है। अक्तूबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार द्विपक्षीय दौरे पर तुर्की जाने वाले थे, लेकिन उन्होंने वो दौरा रद्द कर दिया। जानकारों का कहना है कि भारत ने सरकारी कंपनी हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड और तुर्की की कंपनी आनादोलू शिपयार्ड के बीच जहाज बनाने की 2.3 अरब डॉलर की एक परियोजना पर हो रही बातचीत को रद्द कर दिया था। इसके अलावा जानकार मानते हैं कि भारत सरकार के पास टर्किश एयरलाइंस की भारतीय उड़ानों को कम करने का विकल्प भी है। अनुमान है कि 2018 में भारत से 1.2 लाख से भी ज्यादा पर्यटक तुर्की गए थे। अगर उड़ानें रद्द की गईं तो इनकी संख्या पर भी असर पड़ेगा और उससे तुर्की की पर्यटन से होने वाली आय प्रभावित होगी। मगर क्या इन कदमों से तुर्की को झुकाया जा सकेगा? गौरतलब है कि एर्दोआन भी एक जिद्दी नेता माने जाते हैं।