कोई माने या न माने अपना मानना है कि भाजपा के राजनीतिक इतिहास की जून 1996, मई 2014 की ऐतिहासिक तारीखों के बाद का तीसरा टर्निंग प्वाइंट दिसंबर 2022 है! अटल बिहारी वाजपेयी की पहली शपथ और नरेंद्र मोदी की पहली शपथ के बाद दिसंबर 2022 का मोड़ भविष्य में भाजपा की खाई है। हां, नरेंद्र मोदी ने भाजपा को उसी दिशा में धकेला है, जैसे इंदिरा गांधी ने 17 साल राज करते हुए कांग्रेस को धकेला था। सारे जमीनी नेता, क्षत्रप, विचार और संगठन खत्म। ले देकर एक नेता की ऊंगली पर टिकी हुई पार्टी और देश। सोचें, जरा गुजरात की ताजा भाजपा जीत पर। क्या नरेंद्र मोदी के अलावा भाजपा या उसके किसी एक भी नेता को श्रेय मिला है? क्या कोई अमित शाह, योगी आदित्यनाथ का जिक्र करता हुआ है? नरेंद्र मोदी ने खुद दो टूक कहा– मैंने (नरेंद्र) आह्वान किया। मैंने भूपेंद्र पटेल की ऐतिहासिक जीत की ठानी और वही हुआ, वैसा ही परिणाम!
नरेंद्र मोदी जब जीत की गर्वोक्ति कर रहे थे तब पीछे खड़े अमित शाह क्या सोच रहे होंगे, इसे बूझ सकते हैं। गौर करें उत्तर प्रदेश चुनाव हो या गुजरात चुनाव, अब कहीं यह सुनाई नहीं देता कि अमित शाह चाणक्य हैं या जीत के पीछे उनकी रणनीति थी। गुजरात में विजय रूपानी और उनके कैबिनेट की छुट्टी के साथ वहां जो कुछ हुआ है और आगे होगा उसमें अमित शाह या एक्स-वाई-जेड किसी भी भाजपा नेता का कोई अर्थ नहीं है। सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट होने, वोट पड़ने का वैसा ही खेला है जैसे मोरारजी देसाई, हितेंद्र देसाई आदि पुराने कांग्रेसी नेताओं, क्षत्रपों को खत्म कर इंदिरा गांधी ने घनश्याम ओझा, चिमनभाई जैसों को मुख्यमंत्री बना पार्टी को खत्म करने की गलतियां की थीं।
जान लें कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात में जबरदस्त मेहनत इसलिए की ताकि संघ परिवार, भाजपा में मैसेज बने कि सन् 2024 के लिए कोई इधर-उधर की नहीं सोचे। वे अकेले ही कमल पर बैठे ध्वजाधारी भगवा अवतार है। चौबीस में भी वे और उन्नतीस में भी वे। पुराने तमाम मुख्यमंत्रियों, नेताओं, विधायकों को बदलने का जो प्रयोग गुजरात में हुआ है वैसा ही आगे होगा। क्योंकि वे अकेले बहुत हैं। इसलिए संभव है कि गुजरात के नतीजों के बाद, इस संसद सत्र के बाद नरेंद्र मोदी उन प्रदेशों में वैसे ही प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, नेताओं की छुट्टी करें जैसे गुजरात में की थी। आगे अब भाजपा के विधायकों, सांसदों के और अधिक टिकट कटेंगे। मतलब पार्टी और ज्यादा बिना पैंदे तथा विचार के होगी। केवल भावनाओं की राजनीति।
तय मानें नरेंद्र मोदी ही कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में वैसे ही विधानसभा चुनाव लड़ते हुए दिखेंगे जैसे अभी गुजरात में चुनाव लड़ा है। ‘इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया’ के सूत्र पर सन् 2023 में नरेंद्र मोदी जी-20 की शिखर बैठक में विश्व नेताओं को करीबी से यह जलताएंगे कि ‘इंडिया इज मोदी, मोदी इज इंडिया’। दुनिया भी लोहा मानेगी तो देश के भक्त हिंदू भी!
सवाल है कैसे इससे बतौर पार्टी भाजपा खोखली होते हुए और दस-बीस सालों में खाई में गिरेगी? आखिर कुछ भी हो मोदी हिंदू धर्म ध्वजा के अवतार बन जब राजनीति कर रहे हैं तो हिंदुओं में संघ-भाजपा क्या स्थायी तौर पर स्थापित नहीं हो रहे हैं?
नहीं! जो हुआ है जो हो रहा है वह एक नेता की सत्ता उम्र तक का चमत्कार है। जादुई तमाशा है। एक अभिनेता की एक फिल्म है। फिल्म जब खत्म होगी तो सिनेमा हॉल के बाहर की सच्चाई, कलह, लड़ाई, हिंदुस्तान बनाम पाकिस्तान, बेरोजगारी, आर्थिकी असमानताओं, बरबादियों की वह रियलिटी बनी मिलेगी कि न भाजपा का अगला नेता नए अवतार के रूप में स्थापित हो सकेगा और न भक्तों में आस्था की गद्दी का क्रेज बचेगा! इंदिरा गांधी ने दुर्गा, गरीबी हटाओ, मैं गरीबी मिटाना चाहती हूं, वे मुझे हटाना चाहते हैं (जैसे नतीजों के बाद मोदी ने कहा, जुल्म बढ़ेंगे) जैसी भावनात्मक बातों में ठसके से चुनाव जीते, राज किया लेकिन कांग्रेस खोखली होती गई, विचारधारा-नेतृत्व और संगठन सब खोखले होते गए वैसा ही भाजपा का भविष्य होना है। इसलिए दिसंबर 2022 की गुजरात जीत भाजपा का टर्निंग प्वाइंट।
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