बेबाक विचार

नव-जाग्रत चेतना की मिसाल

ByNI Editorial,
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नव-जाग्रत चेतना की मिसाल
संयुक्त राष्ट्र में घटी एक घटना बताती है कि भले ये दुनिया की राजनीति में धुर दक्षिणपंथ का दौर हो, लेकिन जो मानवीय चेतना लोगों के मानस में उतर चुकी है, वह अब एक स्थायित्व प्राप्त कर चुकी है। इस घटना में नस्लवाद को लेकर संयुक्त राष्ट्र ही घिर गया। उसके एक आतंरिक सर्वेक्षण में "येल्लो" शब्द के इस्तेमाल की वजह से उस पर नस्लवाद का आरोप लगा। यह आरोप लगाने वाले खुद इस संगठन के अपने कर्मचारी हैं। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र ने एक सर्वेक्षण शुरू किया, जिसमें एक सवाल यह भी था कि कर्मचारी खुद को कैसे पहचानता है। जवाब के विकल्पों में ‘येल्लो’ शब्द शामिल था, जिस पर कर्मचारियों ने आपत्ति की। ‘नस्लवाद पर संयुक्त राष्ट्र के सर्वेक्षण’ के कागजात को हजारों कर्मचारियों के पास भेजा गया था। सर्वेक्षण संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश के नस्लवाद को मिटाने और मानवीय सम्मान को बढ़ावा देने के अभियान के तहत किया जा रहा था। इस पर कई कर्मचारियों ने कहा कि पहले सवाल में ही ‘येल्लो’ को एक विकल्प के रूप में लिख कर एशियाई लोगों के प्रति पश्चिमी नस्लवादी धारणा को दर्शाया गया है। अन्य विकल्पों में काला, भूरा, श्वेत, मिश्रित/ बहु-नस्ली और अन्य शामिल थे। कर्मचारियों ने कहा कि पहला सवाल पागलपन भरा और अत्यंत अपमानजनक है। उन्होंने पूछा कि आखिर संयुक्त राष्ट्र जैसे विविधताओं वाले एक संगठन में इतने बड़े सर्वेक्षण के लिए इस सवाल को जारी करने की स्वीकृति मिल कैसे गई? जानकारों का कहना है कि इस शब्द का इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है। एशियाई मूल के लोगों के लिए ‘येल्लो’ शब्द का इस्तेमाल करना एक अपशब्द जैसा है। इसका इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होना चाहिए। बहराहल, संयुक्त राष्ट्र के बचाव में यह दलील जरूर दी गई है कि यह याद रखना उचित रहेगा कि नस्लवाद से जुड़ी भाषा जटिल होती है और निरंतर बदलती रहती है। मसलन, ब्राउन को भी पहले अपशब्द जैसा ही माना जाता था, लेकिन हाल ही में उसका काफी इस्तेमाल स्वीकार्य हो गया है। दरअसल, मई में अश्वेत अमेरिकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस के हाथों हुई मौत के बाद दुनिया भर में नस्लवाद को लेकर नई चेतना पैदा हुई है। तब से हो रहे प्रदर्शनों की वजह से संगठनों और कंपनियों पर नस्लवाद को संबोधित करने का दबाव बढ़ गया है। इसी चेतना का निशाना अब संयुक्त राष्ट्र भी बना है।
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