उदाहरण के तौर पर कर्मचारी चयन आयोग की साल 2017 और साल 2018 की भर्ती प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो सकी है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड ने पिछले चार साल में किसी नई भर्ती के लिए घोषणा ही नहीं की है। इस बोर्ड से राज्य के माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है। पिछले साल अक्टूबर में चयन बोर्ड की ओर से करीब पंद्रह हजार पदों के लिए भर्ती करने की घोषणा हुई, लेकिन शुरुआती दौर में ही तमाम विसंगतियों के चलते बोर्ड ने इसे वापस ले लिया। नए सिरे से अब तक कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। इसलिए इसमें किसी को हैरत नहीं हुई, जब छात्रों ने ट्विटर पर मोदी_रोजगार_दो का हैशटैग चलाया, तो ट्रेंड कर गया। फिर पिछले कई सालों से ऐसी शायद ही कोई परीक्षा हुई हो, जो कोर्ट के चक्कर में ना फंसी हो। ऐसे में जो छात्र तैयारी में छह-सात साल लगा देते हैं, उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय दिखने लगता है, तो यह स्वाभाविक ही है। गौरतलब है कि कुछ महीने पहले जारी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट से सामने आया था कि साल 2019 में आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में से दस फीसदी ऐसे थे, जिन्होंने बेरोजगारी से तंग आकर यह कदम उठाया था। तो जाहिर है कि ये समस्या कितनी गंभीर हो गई है। मगर ये सियासी नैरेटिव नहीं है। अब इस पर रोया जाए या अजरज किया जाए?