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दुनिया झूठी, संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, ब्रिटेन सभी तो भारत विरोधी साजिशकर्ता!

कैसे? जवाब में याद करें पिछले आठ सालों में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों, अमेरिका-ब्रिटेन की संसदीय समितियों या इनके विदेश मंत्रलाय की रिपोर्टों में भारत कितना बदनाम हुआ? मोदी राज में भारत वैश्विक प्रतिमानों, इंडेक्स में साल-दर-साल लगातार गिरता दिखा। दुनिया की निगाह में मोदी राज मतलब लोकतंत्र को खाने वाला, अभिव्यक्ति की आजादी-मीडिया का गला घोटने वाला, तानाशाही, धार्मिक असहिष्णुता में रमता हुआ तो जाहिर है तो मोदी भक्तों की जमात दुनिया से चारों और साजिश बूझे! किसान आंदोलन भी साजिश तो गौतम अदानी की संपदा का हवा-हवाई होना भी साजिश।

दरअसल भक्त सोचते है मोदीजी से देश जगत गुरू व जगत सेठ बना। जबकि दुनिया रियलिटी में रियल हिसाब लगाती है। दुनिया के लिए  आकार, आबादी और बाजार के कारण भारत का महत्व है। वैसा मोदी से पहले भी था। मेरी पुरानी थीसिस हैं कि भारत का विकास कुल मिलाकर भीड विस्तार है(population driven growth)। यदि हर साल एक आबादी में करोड लोग जुड़े तब वह बढ़ी आबादी ही भारत की आर्थिकी को श्रीलंका जैसी रफ्तार में गति देते हुए होगी। दूसरे शब्दों में दो जून रोटी के जीवन से भी इकॉनोमी व जीडीपी ट्रिलियन इकॉनोमी को बढ़ाते हुए होगी।

इसे दुनिया ने जाना हुआ है। तभी चीन, रूस, अमेरिका, योरोप सबका बाजार है भारत।अब इससे यह तो संभव नहीं कि नंबर एक आबादी के भारत को संयुक्त राष्ट्रएजेंसियां, वैश्विक संस्थाएंअपनी रैंकिंग में भारत को अपनी लिस्ट में नंबर एक तो दूर उसे दस नबंर का या पच्चीस या पंचास या पचहतरवें नंबर का देश करार दें। आबादी बढ़ने के साथ भूखमरी, भ्रष्टाचार की रैंकिग को घटा दे। पिछले आठ सालों से भारत अधिकांश मामलों में, वैश्विक मापदंड़ों व रैंकिंग में साल-दर-साल नीचे गिरता हुआ है। वैश्विक कसौटियों में मोदी राज से भारत के अच्छे दिन किसी भी क्षेत्र में नहीं है। एक भी मायने में वह टॉप पच्चीस देशों में नहीं है। सन् 2022 में कुल आबादी की जीडीपी में भारत की आर्थिकी भले पांचवें नंबर पर थी लेकिन प्रतिव्यक्ति भारतीय की आय की रैंकिंग की लिस्ट में भारत 144वें नंबर पर था। इसलिए भारत को गरीब बतलाना भी भक्तों को बकवास तथा विदेशी साजिश समझ आती है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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