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सवाल कानून के राज का है

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सवाल कानून के राज का है
लखीमपुर खीरी में किसानों को गाड़ी से कुचले जाने की घटना हो या हरियाणा के मुख्यमंत्री द्वारा पार्टी के नेताओं को लाठी-डंडा उठा कर किसानों को जैसे को तैसा के अंदाज में जवाब देने का बयान हो या मुंबई में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी का मामला हो, ये सब देखने में अलग अलग घटनाएं हैं, लेकिन इन सबमें एक चीज कॉमन है। वह चीज है कानून के राज से समझौता! किसी भी सभ्य समाज या लोकतंत्र की पहचान यहीं है कि वहां कानून का राज चलता है। वहां किसी एक व्यक्ति की बात नहीं चलती है। लाठी का तंत्र नहीं चलता है और न जंगल का कानून चलता। अगर कानून का राज नहीं है तो इसका मतलब है कि लोकतंत्र कंप्रोमाइज्ड हो गया है यानी लोकतांत्रिक व्यवस्था में क्षरण शुरू हो गया है। up lakhimpur kheri violence लखीमपुर खीरी में एक केंद्रीय मंत्री ने किसानों को धमकी दी और उसके एक हफ्ते बाद उसी केंद्रीय मंत्री के बेटे और उसके समर्थकों ने कथित तौर पर किसानों को अपनी गाड़ियों से कुचल दिया। उनकी गाड़ियों के नीचे आकर चार किसान मर गए और उसके बाद भड़की हिंसा में चार और लोगों की जान गई। इस घटना के पांच दिन बाद यह लिखे जाने तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। मुकदमा दर्ज हो गया है, अभियुक्त नामजद किए गए हैं और परिस्थिजन्य सबूत भी हैं इसके बावजूद किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। किसानों के साथ बदसलूकी की खुलेआम घोषणा करने वाले केंद्रीय मंत्री की अपने शीर्ष नेताओं से मुलाकात भी हुई है। शीर्ष नेतृत्व चुनावी राजनीति के लिहाज से इसका आकलन कर रहा है कि क्या करना चाहिए! सोचें, किसी कानून के राज वाले शासन में ऐसा संभव है? Yogi adityanath up lakhimpur kheri violence

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कानून का राज कैसे बिखर रहा है, इसकी मिसाल लखनऊ में बन रही है। राजधानी लखनऊ से 120 किलोमीटर दूर लखीमपुर खीरी में धारा 144 लगी थी, लेकिन इसका जिक्र करके राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी ने एयरपोर्ट ऑथोरिटी ऑफ इंडिया को चिट्ठी लिखी और एक राज्य के मुख्यमंत्री का जहाज लखनऊ में नहीं उतरने दिया। अगले दिन फिर वहीं मुख्यमंत्री लखनऊ पहुंचे तो उनको हवाईअड्डे से बाहर नहीं निकलने दिया गया और चार घंटे धरने पर बैठने के बाद मुख्यमंत्री को वापस लौटना पड़ा। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा को लखीमपुर खीरी जाने से रोकने के लिए हिरासत में लिया गया और 30 घंटे तक बिना मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए हिरासत में रखा गया। उसके बाद उनको धारा 144 के उल्लंघन और शांति भंग करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया तब भी मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया गया और गिरफ्तारी के 30 घंटे के बाद अपने आप छोड़ दिया गया। न कोई एफआईआर है, न मजिस्ट्रेट के सामने पेशी है और न जमानत है! क्या कानून ऐसे ही काम करता है? दूसरी घटना मुंबई में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी एनसीबी द्वारा एक जहाज पर छापा मार कर पार्टी कर रहे 13 सौ लोगों में से आठ लोगों को गिरफ्तार करने का है। गिरफ्तार किए गए लोगों में मशहूर फिल्म अभिनेता शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान भी है। एनसीबी की इस कार्रवाई पर कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। जहाज पर छापा मारने गई टीम में भाजपा से जुड़े लोगों और प्राइवेट डिटेक्टिव का काम करने वाले व्यक्ति के साथ होने की खबर है। इस अभियान में शामिल रहा एक व्यक्ति हिरासत के दौरान आर्यन खान के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया में पोस्ट करता है। एक तो चुनिंदा कार्रवाई और ऊपर से इस किस्म की अराजकता क्या कानून के राज का सबूत है! up lakhimpur kheri violence up lakhimpur kheri violence

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तीसरा मामला हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का है, जिनका एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें वे अपनी पार्टी के नेताओं को ‘शठे शाठ्यम समाचरेत’ यानी जैसे को तैसा का बरताव करने की सीख दे रहे हैं। उन्होंने पार्टी की एक बैठक में भाजपा के किसान मोर्चे के नेताओं से कहा कि हर जिले में पांच-सात सौ लोगों की फौज तैयार की जाए। वे लाठी-डंडे लेकर तैयार रहें और आंदोलन कर रहे किसानों से लाठी-डंडे से निपटें। वे इतने पर चुप नहीं हुए। उन्होंने यह भी कहा कि गिरफ्तार होने से नहीं डरना चाहिए। उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं से कहा- अगर गिरफ्तार होकर जेल में रहे तो बड़े नेता बन जाओगे। वे यह प्रलोभन भी देते सुनाई देते हैं कि अगर गिरफ्तार होकर जेल में रहे तो इतिहास में नाम दर्ज होगा। सोचें, एक राज्य का मुख्यमंत्री अपनी पार्टी के नेताओं को किस बात के लिए उकसा रहा है? मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी कानून का राज बहाल करने की होती है लेकिन यहां मुख्यमंत्री कानून हाथ में लेने के लिए लोगों को उकसा रहा है! मुख्यमंत्री कह रहा है कि केंद्र सरकार के बनाए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों से लोग लाठी-डंडों से निपटें। क्या किसी राज्य का मुख्यमंत्री इस तरह त्वरित न्याय या भीड़ के न्याय की वकालत कर सकता है? क्या लोकतंत्र में इस तरह की न्याय व्यवस्था के लिए जगह है? यह तो वहां होता है, जहां कानून का राज खत्म हो जाता है। कानून अपना काम नहीं करता है तो लोग कानून हाथ में लेते हैं और तब भीड़ का न्याय काम करता है। लेकिन यहां तो मुख्यमंत्री ही भीड़ के न्याय की नसीहत दे रहा है! Haryana New Education Policy up lakhimpur kheri violence मुख्यमंत्री मनोहर लाल का कहना ज्यादा खतरनाक इसलिए है क्योंकि यह ताकत के सिद्धांत को सहमति देता है। यह जंगल के कानून को मान्यता दे रहा है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि प्रतिरोध की आवाज को ताकत से दबा दिया जाए। यहीं काम लखीमपुर खीरी में हुआ है। वहां भी विरोध कर रहे किसानों के ऊपर गाड़ी चला दी गई और कुचल कर मार डाला गया। यह भय पैदा करने का सिद्धांत है। डरा कर लोगों को अपनी बात मानने के लिए बाध्य करने का सिद्धांत है। इस सिद्धांत के लिए लोकतंत्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। लेकिन अफसोस की बात है कि पिछले कुछ समय से प्रजातंत्र की जगह भयतंत्र की व्यवस्था भारत में काम कर रही है। विपक्ष के नेताओं के खिलाफ चुनिंदा तरीके से कार्रवाई हो रही है और सवाल उठाने वाले पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है। धर्मांतरण विरोधी कानूनों का इस्तेमाल एक खास समुदाय को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है। खान-पान, पहनावे और धार्मिक मान्यता के आधार पर लोगों से मारपीट की जा रही है। इन सबका भी मकसद डराना ही है। हो सकता है कि सत्ता में बैठे लोगों को इससे तात्कालिक फायदा होता हो लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह स्थिति ज्यादा समय तक नहीं चल सकती है। ध्यान रखें कानून का राज ही वह बुनियाद है, जिस पर भारत का समाज और देश की अर्थव्यवस्था दोनों टिके हुए हैं। अगर कानून व्यवस्था खत्म होती है और उसकी जगह जिसकी लाठी उसकी भैंस की व्यवस्था कायम होती है तो उससे भारत की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होगी और इसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। अगर कानून के शासन की बजाय भीड़ का न्याय होता है, ताकत की बोली सुनी-समझी जाती है तो उससे जो अराजकता पैदा होगी, उसका असर चौतरफा होगा। यह कल्पना ही डराने वाली है कि जिस तरह से मनोहर लाल ने अपने लोगों को लाठी-डंडे उठाने को कहा उसी तरह दूसरे मुख्यमंत्रियों और नेताओं ने अपने समर्थकों को भी लाठी-डंडे उठवा दिए तो देश का क्या होगा? और यकीन मानें अगर एक जगह ऐसा हुआ तो फिर दूसरी जगह वैसा ही होने से रोका नहीं जा सकेगा।
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