कहा जाता है कि सच को कुछ समय तक के लिए छिपाया जा सकता है, हमेशा के लिए नहीं। तो अभी जो आंकड़े दर्ज या चर्चित हो रहे हैं, वह अवश्य इतिहास में दर्ज होंगे। और मुमकिन है कि इतिहास उनके आधार पर इन मौतों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों का दोष भी दर्ज करेगा।
people died corona india : भारत में अब तक कोरोना महामारी से कितने लोग मरे हैं, यह बात मौजूदा सरकार के साथ-साथ देश के जनमत के एक बड़े हिस्से के लिए भी अप्रसांगिक है। उसके लिए तो प्रासंगिक बात सिर्फ यह है कि इसे कम करके बताने के क्या उपाय हो सकते हैं। बहरहाल, कहा जाता है कि सच को कुछ समय तक के लिए छिपाया जा सकता है, हमेशा के लिए नहीं। तो अभी जो आंकड़े दर्ज या चर्चित हो रहे हैं, वह अवश्य इतिहास में दर्ज होंगे।
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मुमकिन है कि इतिहास उनके आधार पर इन मौतों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों का दोष भी दर्ज करेगा। इसीलिए अमेरिका में हुआ वो अध्ययन महत्तवपूर्ण है, जिसमें बताया गया है कि भारत में असल मौतें उससे दस गुना तक ज्यादा हैं, जितना सरकार ने बताया है। इस अध्ययन के क्रम में समान अवधि में पिछले बरसों में हुई मौतों से तुलना महामारी काल में हुई मौतों से की गई। हालांकि यह कहना मुश्किल है कि इस दौरान हुई आधिक तमाम मौतों सीधे कोविड से हुईं, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि उनमें से ज्यादातर का कारण कोविड-19 ही है।
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अमेरिका स्थित सेंटर फॉर ग्लोबल डिवेलपमेंट ने अपने इस विस्तृत अध्ययन के लिए तीन अलग-अलग स्रोतों से आंकड़े लिए हैं। इसके आधार पर बताया गया है कि भारत में जनवरी 2020 से जून 2021 के बीच हुई मौतों की संख्या 34 से 47 लाख के बीच हो सकती है। इसी अवधि में बीते बरसों की तुलना में यह संख्या दस गुना ज्यादा है। शोधकर्ताओं ने सात राज्यों में मौतों के आंकड़ों का अध्ययन किया। इन सात राज्यों में कुल मिलाकर भारत की आधी से ज्यादा आबादी रहती है। शोधकर्ताओं ने सीरो सर्वेक्षण के आंकड़ों का भी अध्ययन किया। सीरो सर्वेक्षण देशभर में हुए दो एंटिबॉडी टेस्ट के आंकड़े हैं। इनकी तुलना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वायरस से मरने वाले लोगों की संख्या से की गई।
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इसके अलावा भारत के एक लाख 77 हजार घरों में रहने वाले आठ लाख 68 हजार लोगों के बीच हुए उपभोक्ता सर्वेक्षण से आंकड़े लिए गए। इस सर्वेक्षण में यह भी पूछा जाता है कि पिछले चार महीने में घर के किसी सदस्य की मौत हुई या नहीं। भारत के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन के नेतृत्व में यह शोध हुआ। सामान्य बुद्धि से परखें तो अध्ययन के निष्कर्ष कमोबेश विश्वसनीय लगते हैं। इसीलिए ऐसे आंकड़े ही असल इतिहास का हिस्सा बनेंगे, यह यकीन किया जा सकता है।