बेबाक विचार

सवाल टीका के असर का

ByNI Editorial,
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सवाल टीका के असर का
मौजूदा हालात में ये अच्छी खबर है कि भारत में कोरोना वायरस रोकथाम के रूसी टीके स्पुतनिक वी के इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए विशेषज्ञों की समिति ने मंजूरी दे दी है। भारत में बने दोनों टीकों की सप्लाई को लेकर विवाद पहले ही काफी गहरा चुका है। ऐसे में बाहर से टीका मंगवाने में कोई हर्ज नहीं है। बहरहाल, कौन टीका कितना बचाव करेगा, अब सवाल इस पर ही खड़ा हो गया है। जिसे टीके को सबसे बेहतर माना जा रहा था, उसकी निर्माता कंपनी फाइजर- बायोएनटेक ने अब खुद ही कह दिया है कि कोरोना वायरस के नए वेरिएंट उससे मिलने वाली सुरक्षा को भेद सकते हैं। इसके पहले इसी कंपनी ने कहा था कि उसका टीका कम-से-कम छह महीने की सुरक्षा देगा। यानी उससे ज्यादा का दावा करने का आत्म विश्वास खुद कंपनी के पास भी नहीं था। ऑक्सफॉर्ड एस्ट्राजेनिका के टीके (जिसे भारत में सीरम इंस्टीट्यूट बना रहा है) के दुष्प्रभावों की चर्चा इतनी हो चुकी है, इस पर पूरा भरोसा टिक पाना मुश्किल हो गया है। हैदराबाद में बने कोवैक्सीन को लेकर तो पहले से ये सवाल रहा है कि जब इसके तीसरे चरण का परीक्षण पूरा ही नहीं हुआ है, तो इसे कितना प्रभावी समझा जाए। उधर चीन की रोग नियंत्रण संस्था के सर्वोच्च अधिकारी ने ये कह कर दुनिया के बहुत से देशों को चिंता में डाल दिया है कि चीन में कोविड-19 वैक्सीन कम असरदार है। इन्हें अब 50 से 53 फीसदी तक ही प्रभावी माना जा रहा है। इसलिए चीनी अधिकारी टीके को असरदार बनाने के लिए कई कोरोना टीके को मिश्रित करने पर विचार कर रहे हैं। गौरतलब है कि चीन में बने टीकों का ही दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ है। चीन ने 40 से ज्यादा देशों को इन टीकों का निर्यात किया है। चीन की निजी दवा कंपनी साइनोवैक और सरकारी कंपनी साइनोफार्म की खुराकें दर्जनों और देशों को भेजी जाने वाली हैं। उनमें मेक्सिको, टर्की, इंडोनेशिया, हंगरी और ब्राजील शामिल हैं। अब इन सब देशों में हुए टीकाकरण को लेकर प्रश्न खड़ा हो गया है। दरअसल, वैज्ञानकों का कहना है कि कोरोना वायरस जिस तरह अपने वेरिएंट पैदा कर रहा है, उसके बीच किसी टीके से दीर्घकालिक सुरक्षा मिलने की आशा काफी घट गई है। फिर भी टीकाकरण के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। ऐसे में भारत के लोगों के सामने एक और विकल्प होगा, ये अच्छी खबर है।
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