भारत सरकार को इस बात का श्रेय देना होगा कि वह घोर अंधकार में भी सकारात्मक पहलू ढूंढ लेती है। मसलन, अगर देश में कोरना टीकाकरण में प्रगति की बात की जाए, तो सरकारी पक्ष बताएगा कि 20 करोड़ लोगों का टीकाकरण हो चुका है। इतनी बड़ी संख्या में दुनिया के कुछ ही देशों में टीकाकरण हुआ है। यानी वह इस बात को छिपा लेगी कि भारत में दोनों टीके सवा तीन प्रतिशत लोगों को ही लगे हैं या एक टीका भी अभी कुल आबादी के पांचवें हिस्से तक को नहीं लग पाया है। पॉजिटिव ढूंढने की भारत सरकार की ये क्षमता पूरे कोरोना काल में दिखती रही है। वैसे ये कहानी उससे भी पुरानी है। सबसे पहले तो डेटा मैनेजमेंट के जरिए सुर्खियां और उनके जरिए जनमत संभालने की क्षमता उसने अर्थव्यवस्था में दिखाई। बहराहल, भारत सरकार की ये कुशलता भारत के लोगों को बहुत महंगी पड़ी है। वैश्विक मीडिया पर खुल कर ये बात कह रहा है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान प्रिंट मीडिया के एक हिस्से को भी यह समझ में आया कि सरकार की झूठी कहानियां फैलाने से सच नहीं बदल जाता। बल्कि इसमें सहभागी बन कर मीडिया भी भारत की मुसीबत बढ़ाने में सहभागी बन जाता है। तो कुछ अखबारों ने मृतकों की सही संख्या ढूंढने के लिए प्रशंसनीय प्रयास किए। उसका असर भी हुआ।
सरकार की कथा निराली
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