बेबाक विचार

कानून, अदालत पर लगे ताला

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कानून, अदालत पर लगे ताला
ईमानदारी से बताऊं मैंने तमिलनाडु के थाने में पिता-पुत्र की बर्बर पुलिसिया हत्या की खबरों को ज्यादा नहीं पढ़ा और न विकास दुबे और पुलिस के बीच हुई पहले व दूसरे इनकाउंटर की खबरों की बारीकी में गया। हिंदुओं की रचना में खौफ, गुलामी के जो जिंस हैं उसमें जब पूरा देश ही बेचारा है तो अपराधी-पुलिस, जनता-पुलिस में वहीं होना है जो वक्त विशेष में भाग्य का पलड़ा तय कराए होता है। किस्मत खराब थी जो बाप-बेटे पुलिस के हत्थे चढ़े। किस्मत खराब थी जो डीएसपी मिश्रा ने आधी रात में विकास दुबे के घर पर धावा बोला। किस्मत खराब थी जो विकास दुबे ने दूसरे प्रदेश में जा कर सरेंडर के प्रपंच से सोचा कि इससे वह इनकाउंटर से बच जाएगा। और कानून के तहत कार्रवाई होगी। तमिलनाडु के थाने में बाप-बेटे की पुलिसिया हत्या और कानपुर में पुलिस-अपराधी की परस्पर हत्या का एक ही निष्कर्ष है। भारत में जान की कीमत नहीं है तो भारत में कानून, कानूनी प्रक्रिया और अदालत का मतलब जीरो है। संविधान-कानून-अदालत के अपने लोकतंत्र में स्थायी तौर पर पहले भी सर्वोपरि डंडा था तो आज भी डंडा है। एक वक्त नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ आदि सब पुलिस और पुलिस की जांचों के मारे थे तब राज दूसरों का था। आज इनका राज है तो पुलिस इनकी है और वे चाहे जो करेंगे। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री, नेता आते-जाते रहते है डंडा याकि पुलिस स्थायी है। कभी चिदंबरम गृह मंत्री थे तो अमित शाह कंपकंपाते थे। आज अमित शाह गृहमंत्री हैं तो चिदंबरम, अहमद पटेल कंपकंपाए हुए हैं। सीबीआई, ईडी, शहर कोतवाल से पहले भी राज था और आज भी राज है। इस बात को यदि अंग्रेज, मुगलों के भारत राज तक खींचे तो चांदनी चौक से मुगल बादशाह की हूकुमत का जलवा था और पुणे के घासीराम कोतवाल से मराठा राज की धमक थी! इस सबमें कब भारत की अदालत, न्याय प्रक्रिया, कानून की तूती थी? कभी नहीं! कितनी गजब बात है जो आजाद भारत के संविधान, उसकी आपराधिक कानूनी प्रक्रिया का इतना भी लिहाज नहीं कि कोई जघन्य आरोपी गिरफ्तार हुआ तो उसे एक बार भी मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने की कानूनी प्रक्रिया की पालना हो फिर भले वह दिखावे के लिए ही हो।ऐसा क्या हुआ या क्यों होता है? तो पहला जवाब है कि गुलाम नस्ल में कभी मानवाधिकार पर सोचने की हिम्मत नहीं होती। नरेंद्र मोदी, अमित शाह कभी यह विचार नहीं करेंगे कि कांग्रेस, चिदंबरम ने उनके साथ बुरा किया तो वे अपने राज में ऐसा कुछ करें, जिससे आगे हिंदुओं के साथ ऐसा न हो। ये अपनी बुद्धि, अपने खौफ को याद करते हुए या तो बदला लेने की सोचेंगे या अपने पास डंडा होने से गौरवान्वित होंगे। इतिहास को भूलेंगे, वर्तमान में जीएंगे और भविष्य को रामभरोसे छोड़ेंगे। तभी पिछले छह सालों में रत्ती भर विचार नहीं हुआ कि लोकतंत्र, संविधान, कानूनी प्रक्रिया, चेक-बैलेंस मजबूत होना चाहिए ताकि भविष्य में हिंदुओं के साथ वह नहीं हो जो उनके साथ सीबीआई, ईडी, पुलिस या जांच एजेंसियां करती रहती हे। इतिहास ने हमेशा गुलाम बनाए रखने के लिए किया है। उलटे तमाम डंडों का आज शिद्दत से उपयोग है मनमर्जी, मनमानी की तमाम हद पार है और संविधान, कानून, कानूनी प्रक्रिया, अदालत सब का उपयोग डंडे से निकली हुई व्याख्या में सिमटा हुआ है।माईबाप सरकार का डंडा चाहता है कि अपराधी पर कानून नहीं सोचे तो नहीं सोचेगा। वीडियो की फुटेज में चेहरे दिख रहे हे तो ये अपराधी और इनकी होर्डिंग बना कर इनसे हरजाना वसूलना शुरू होगा। अपराधी को इनकाउंटर से सजा मिलेगी। फलां देशद्रोही है तो इन्हें जेल में रखा जाएगा, ऐसा होने न होने देने के लिए अदालत को दिमाग खपाने की जरूरत नहीं है। जनता चाह रही है कि अपराधियों, देशद्रोहियों, भ्रष्टाचारियों, आंदोलनकारियों से सख्ती से निपटा जाए, सरकार के कामकाज में बाधा डालने वाले देश के विरोधी हैं, दूसरी तरह से सोचने वाले, दूसरे धर्म में जीने वाले राष्ट्रद्रोही हैं तो ऐसे लोगों को डंडा ठीक करे न कि उन पर कानून व अदालत अपनी प्रक्रिया में वक्त जाया करें। मतलब जनता में क्योंकि ऐसा सोचा जा रहा है, और उसी अनुसार जनता की माईबाप सरकार अपने डंडे से फलां-फलां काम कर रही है तो कानून, संविधान, अदालत में उस पर विचार, समीक्षा की जरूरत नहीं है!सब चाहते हैं तमाम तरह के अपराधियों, देश के दुश्मनों को इस वक्त ऐसी सजा मिले कि लोग दशकों तक उसे याद रखें।क्या देश में ऐसा मूड नहीं है?और यदि ऐसा है तो क्या वक्त नहीं है कि सरकार याकि कार्यपालिका अपनी कथित संवैधानिक-कानून प्रक्रियाओं और अदालतों पर ताला लगाए और पुलिस थानों को, ईडी-सीबीआई के कार्यालयों को ही त्वरित न्याय का बादशाही घंटा बना डाले। चांदनी चौक के कोतवाल ने लालकिले के बादशाह से फोन पर आदेश लिया या पूछा और तुरंत अपराधी को गोली मार कुत्तों से घसीटवा दिया। फिर भले वह विकास दुबे हो या चिदंबरम या अहमद पटेल या कन्हैया या उमर खालिद!वाह! ऐसा ही बनना चाहिए अपना रामराज्य! बोलों हिंदुओं क्या चाहिए? अंबेडकर का संविधान या असली हिंदू रामराज्य?कभी अपने वैदिकजी इस पर भी अपनी राय जरूर देंगे।
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