
जब से लॉकडाउन लागू हुआ, ये बात बार-बार कही गई है। लेकिन इसे बार-बार कहते रहने की जरूरत है। इसलिए कि समाज के धनी-मानी तबके अक्सर अपनी स्थिति जैसी ही पूरे समाज की स्थिति का आकलन कर लेते हैं। इसलिए जिन दिनों ऑनलाइन शिक्षा का खूब महिमामंडल किया जा रहा है, यह याद दिलाते रहने की जरूरत है कि यह सुविधा सबको हासिल नहीं है। फिलहाल, ये बात एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ के एक अध्ययन से सामने आई है। उस अध्ययन से पता चला है कि कोविड-19 महामारी और स्कूलों के व्यापक तौर पर बंद होने से दुनिया में जितने बच्चे प्रभावित हुए हैं, उनमें से कम से कम एक-तिहाई बच्चों तक वर्चुअल शिक्षा पहुंच नहीं पा रही है। यूनिसेफ के के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब 46.3 करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास दूर से शिक्षा ग्रहण करने के लिए या तो उपकरण नहीं है या इलेक्ट्रॉनिक पहुंच नहीं है। इस संस्था के एक बयान में कहा गया कि ऐसे बच्चे जिनकी शिक्षा महीनों तक पूरी तरह से बाधित हो गई थी, उनकी अगर कुल संख्या देखें तो ये शिक्षा का एक वैश्विक आपातकाल लगता है। इसके नतीजे समाजों में और अर्थव्यवस्थाओं में आने वाले दशकों तक महसूस हो सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि महामारी की वजह से जो तालाबंदी लगी और स्कूल बंद हुए उस से दुनिया में करीब डेढ़ अरब बच्चे प्रभावित हुए हैं।
यूनिसेफ की रिपोर्ट में दूर से मिलने वाली शिक्षा तक पहुंच पाने में बच्चों के बीच भौगोलिक अंतर को भी रेखांकित किया गया है। उदाहरण के तौर पर अफ्रीका या एशिया के कुछ हिस्सों के मुकाबले यूरोप में काफी कम बच्चे प्रभावित हुए हैं। रिपोर्ट लगभग 100 देशों से लिए गए डेटा पर आधारित है। इस डेटा के जरिए इंटरनेट, टीवी और रेडियो तक लोगों की पहुंच को मापा गया। वैसे रिपोर्ट में कहा गया है कि यह संभव है कि जिन बच्चों के पास ये साधन हैं, उन्हें दूसरी तरह की अड़चनों का सामना करना पड़ रहा होगा। मसलन, घर पर पढ़ने की एक अच्छी जगह, परिवार के लिए दूसरे काम करने का दबाव, या कंप्यूटर के खराब हो जाने पर तकनीकी सपोर्ट का ना मिलना जैसी समस्याएं उनके पास भी आती होंगी। इसलिए यूनिसेफ का ये सुझाव गौरतलब है कि सरकारें प्रतिबंधों में ढील देते समय स्कूलों को सुरक्षित रूप से फिर से खोलने को प्राथमिकता दें।