बेबाक विचार

दारा शिकोह बनाम औरंगजेब

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दारा शिकोह बनाम औरंगजेब
हम हिंदुओं के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि जब किसी और धर्म का मानने वाला व्यक्ति हमारे धर्म में रूचि दिखाता है तो हम लोग बौरा जाते हैं। अतः यह साबित करने की कोशिश करते है वे हमारे धर्म को कितना चाहेगा। मैंने आज तक किसी मुसलमान को यह कहते नहीं सुना कि साई बाबा उनके हैं। जबकि साई चालीसा में उन्हें राम व हनुमान का अवतार बताया गया है। जब कट्टरपंथी माने जाने वाली भाजपा सरकार सत्ता में आई तो तमाम राज्यों में मुस्लिम नाम वाले शहरो के नाम बदले जाने लगे। जैसे इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयाग कर दिया गया। दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम बदल कर डा. अब्दुल कलाम रोड कर दिया गया क्योंकि न केवल वे एक महान व्यक्ति थे बल्कि भाजपा ने भी उन्हें राष्ट्रपति बनवाया था। सेना मैदान के साथ स्थित डलहौजी रोड का नाम बदल कर दारा शिकोह रोड कर दिया। दारा शिकोह तो शाहजहां का सबसे बड़ा बेटा था। वह उनकी जगह अगला सम्राट बनने वाला था। उसे बादशाह जादा-बुजुर्ग मर्तबा या उनका उत्तराधिकारी कहा जाता था। मगर जब 1657 में शाहजहां बीमार पड़ा तो सगे भाई में ही गद्दी को लेकर संघर्ष शुरू हो गया व उसकी अपने छोटे भाई मुहीउद्दीन (औरंगजेब) से लड़ाई हुई जिससे वह हार गया। औरंगजेब कट्टरपंथी था जबकि दारा शिकोह उदारवादी मुसलमान था। उसे कला व धर्म को जानने का बहुत शौक था। शाहजहां व मुमताज उसे प्यार करते थे अतः उन्हांने उसका नाम दारा (तारा) संपत्ति रखा। शिकोह का मतलब डर या सत्ता होती थी। उसके 13 भाई बहन थे जिसमें से 6 बचपन में ही मर गए। उसके अपनी बड़ी बहन जहांआरा से बहुत अच्छे संबंध व दोनों साथ-साथ कुरान पड़ते थे। उसकी अपने मामा की बेटी नदिरा बेगम से शादी हुई जिसे वह बहुत चाहता था। तब राजाओं व बादशाओं द्वारा अपने हरम में सैकड़ो औरतों के रखे जाने के बावजूद उसने सिर्फ अपनी पत्नी से प्यार किया। उसको कला से बहुत लगाव था। शहंशाह ने उसे 1200 पैदल सैनिको व 6000 घोड़ों का सैनिक कमांडर नियुक्त किया था। शाहजहां ने 10 सितंबर 1642 को सार्वजनिक रूप से ऐलान कर दिया कि दारा शिकोह उनके बाद बादशाह बनेगा। उसने उसको 30,000 सैनिको का कमांडर बनाते हुए गुजरात का सूबेदार नियुक्त कर दिया। जैसे-जैसे शाहजहां की तबियत खराब होने लगी दारा शिकोह का रूतबा बढ़ता गया व उसे मुल्तान व काबुल का सूबेदार भी बनाया गया। जब 6 सितंबर 1657 को शाहजहां गंभीर रूप से बीमार पड़ गया तो उसके बेटो में गद्दी को लेकर जंग शुरू हो गई। मुराद बख्श ने औरंगजेब के साथ हाथ मिला लिया। इस बीच शाहजहां के ठीक हो जाने व दारा शिकोह के बेटे सुलेमान शेख द्वारा शाहजहां को बहादुरगढ़ की लड़ाई में हरा देने के बावजूद औरंगजेब व मुराद से आगरा के निकट सामूगढ़ की लड़ाई में 30 मई 1658 को दारा शिकोह हार गया व औरंगजेब ने आगरा के किले पर कब्जा कर अपने पिता शाहजहां को कैद कर लिया। औरंगजेब से हार जाने के बाद दारा शिकोह पहले आगरा से दिल्ली लौटै। फिर वहां से मुल्तान व कद्दार (पाकिस्तान) चले गए। सिंध से वह गुजरात आए वहां उनके काठियावाड़ में गुजरात के सूबेदार शाह नवाज खान से मुलाकात हुई। उन्होंने उसे फिर से अपनी सेना बनाने में काफी मदद की। दारा शिकोह ने औरंगजेब से दोबारा युद्ध किया मगर 11 मार्च 1659 को औरंगजेब ने उन्हें हरा दिया। वह भागकर सिंध चले गए व उन्होंने अफगानी सूबेदार मलिक जीवन के यहां शरण ली। उन्हें उन्होंने कई बार शाहजहां द्वारा सजा दिए जाने से बचाया था। मलिक ने उन्हें धोखा देते हुए दारा शिकोह व उनके बेटे सिफिर को औरंगजेब के हवाले कर दिया। उसे दिल्ली लाया गया और गंदे हाथों पर चेन से बांधकर पूरी दिल्ली में घुमाया गया। उसने उसकी गर्दन कटवाकर उसे चौराहे पर लटका दिया। औरंगजेब को लगता था कि दारा शिकोह आम लोगों में बहुत लोकप्रिय है और वह उसके लिए खतरा हो सकता है। अतः उसने उसे इस्लाम विरोधी घोषित कर दिया। जब उसका पिता शाहजहां किले में खाने के लिए बैठा तो उसने एक थाली में दारा शिकोह का कटा हुआ सर रखकर उसे कपड़े से ढ़ककर उसके पास भेजा। थाली लाने वाले ने शाहजहां से कहा औरंगजेब ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि आप उन्हें कभी न भूले। यह सुनकर शाहजहां खुश हो गया व उसने थाली से कपड़ा हटाने के पहले कहा कि भगवान उसका भला करे। मेरा बेटा आज भी मुझे याद करता है। कपड़ा हटाने के बाद शाहजहां बेहोश हो गया। वह कादरी सूफी व मियां मोर का भक्त था। मियां मोर को सिखों ने स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास करने के लिए बुलाया था। दारा शिकोह को सातवें सिख गुरू - गुरू राम से बहुत अच्छे संबंध थे। वह इस्लाम व हिंदू धर्म की समानता को जानना चाहता था। उसने 50 मूल उपनिषदों का संस्कृत से पारसी में अनुवाद करवाया था ताकि मुस्लिम विद्धान उन्हें पढ़ सके। उसका मानना था कि उपनिषदो के आधार पर ही कुरान लिखी गई है। सुफीवाद व वेदांत पर उसकी पुस्तक बहुत प्रचलित हुई। उसने एक बड़े पुस्तकालय की स्थापना की। यह आज भी कश्मीरी गेट में गुरू गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के पुराने दफ्तर में स्थित है। उसने फारसी में गीता का अनुवाद भी किया। ऐसा माना जाता है कि औरंगजेब ने उसे भुलवा दिए जाने की पूरी कोशिश की व 1659 में उसकी हत्या के बाद उसका मकबरा भी बनने नहीं दिया। माना जाता है कि उसकी बिना सर की लाश को हुमायंह के मकबरे कही दफनी गया। उसके उदारवादी होने के कारण मौजूदा सरकार ने उसके मकबरे की तलाश के लिए पुरातत्व विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम नियुक्त की है। कहते हैं कि वह अपने समय का बहुत उदारवादी विचारक था। जिन उपनिषदो को कभी अच्छी जाति के हिंदू ही पढ़ सकते थे उनका उन्होंने फारसी में अनुवाद करके मुसलमानों तक को पढ़वा दिया। संघ उसे असली हिंदुस्तानी मानता है। उसका कहना है कि अगर दारा शिकोह बादशाह बना होता तो इस देश का इतिहास ही कुछ अलग होता व हिंदू मुस्लिम विवाद न पैदा होते। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भाजपा सरकार ने पिछले साल दारा शिकोह के नाम से अनुसंधान शुरू करवाया हैं। मगर दिक्कत यह है कि किसी की कब्र पर पुस्तक का नाम नहीं लिखा गया है। अतः हर कब्र को खोदकर ताबूत से डीएनए, कंकाल निकालना पड़ेगा। मगर क्या यह हो पाएगा?
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