बेबाक विचार

मध्यप्रदेश की राजनीति पर किताब

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मध्यप्रदेश की राजनीति पर किताब
रिपोर्टर डायरी लिखने का सारा श्रेय हरिशंकर व्यासजी को जाता है। जब मैं पत्रकारिता करते समय उन्हें किस्से कहानियां सुनाता था तब वे जोर देकर मुझसे कहते थे कि इन्हें लिपिबद्ध करना शुरु कर दो और ऐसा नहीं किया तो तुम यह सब वक्त के साथ भूलोंगे और दिमाग की उर्वरता को जाया करोगे, हिंदी पाठक तुम्हारी बातों से वंचित रह जाएंगा। और मैंने जनसत्ता में रहते हुए ही बिना अपने नाम के यह डायरी लिखना शुरु कर दी क्योंकि व्यासजी के जाने के बाद वहां आने वाला लगभग हर संपादक तो मानो मेरी जान का दुश्मन था व वे मुझे ऐसा करने की इजाजत नहीं देते। हाल ही में जब युवा पत्रकार ब्रजेश राजपूत को अपनी पत्रकारिता के अनुभवों को लिपिबद्ध करते देखा तो मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि समय रहते ही उन्होंने तमाम .जानकारियों और विवरणों को पुस्तक के रुप में रखकर उन्हें एक दस्तावेज बना दिया है। उन्होंने मध्यप्रदेश के विधानसभा व लोकसभा चुनाव के बाद अपनी पुस्तक ‘चुनाव है बदलाव का' प्रकाशित की है। उन्होंने इससे पहले अपनी पहली किताब चुनाव, राजनीति रिपोर्टिंगः मध्यप्रदेश चुनाव लिखी थी जो कि 2015 में आयी थी। मध्यप्रदेश के चुनाव इतिहास में पंद्रहवी विधानसभा के चुनाव हमेशा याद रखा जाएगा क्योंकि इस चुनाव में जनता ने जहां 15 साल से प्रदेश में गहराई तक जड़े जमा चुकी बीजेपी को वोट तो ज्यादा दिए मगर सीटें कम देकर सत्ता से ही दूर कर उस कांग्रेस के हाथ में प्रदेश की कमान सीं जिसकी हंसी, चुनाव के पहले भाजपा नेता यह कहकर उडाया करते थे कि कहां है कांग्रेस! कांग्रेस में एक कहावत बहुत लोकप्रिय रही है कि ‘माल किसी का कमाल किसी का। इस किताब में इसके उदाहरण भी मिल जाते हैं। शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए वल्लभ भवन से जुड़ी जगह पर नया मंत्रालय करीब 600 करोड़ की लागत से बनवाया था और इस एनेक्सी का उपयोग करना मुख्यमंत्री कमलनाथ के हाथों से हुआ।  शपथ ग्रहण के बाद इस नई इमारत की पांचवी मंजिल स्थित अपने चमचमाते दफ्तर में पहुंचे व सबसे पहले किसानों की कर्ज माफी पर दस्तखत किए। इसके अलावा उन्होंने कन्या विवाह की सहायता राशि को बढ़ाकर 51, 000 रुपए व नए उद्योगों में 70 फीसदी स्थानीय लोगों को रोजगार देने व चार गारमेंट पार्क बनाने के फैसले किए। कर्जमाफी के ऐलान व फैसले ने भाजपा की किस्मत ही बदल दी। वे बताते हैं कि भाजपा के शासन में उमा भारती ने कांग्रेस का सफाया करके दिखाया था मगर साधु संतों का लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का आशीर्वाद उमा भारती को नहीं बल्कि भाजपा को फल गया था इसकी वजह भाजपा हाई कमान के साथ होने वाली उनकी खटपट रही और भारी बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बनने वाली उमा भारती की महज नौ महीनों में विदाई हो गई। हालांकि मुख्यमंत्री काल में शिवराज सिंह ने मध्यप्रदेश की राजनीति का नया व्याकरण रचा है मध्यप्रदेश में उनकी सहजता, विनम्रता और बड़े नेता होने के बावजूद जनता के बीच रहने के  व्यवहार और  मेहनत करने की क्षमता ने भाजपा का जलवा लगातार बना रहा। वहीं दिग्विजय सिंह के लंबे 10 साल के कार्यकाल कांग्रेस को बहुत नुकसान हुआ। पिछले चुनाव से पहले जरूर दिग्विजय सिंह की मेहनत ने जमीन परर असर दिखाया। उन्होने अपनी मरजी से संगठन बदलाया। उधर गांधी परिवार से शुरू से जुड़े रहे कमलनाथ का छिंदवाड़ा, महाकौशल  में अपने बनाए कार्यकर्ताओ का बड़ा गुट होना पिछले चुनाव में राजनीति बदलवाने वाला रहा। पिछले विधानसभा चुनाव में शिवराजसिंह द्वारा सोशल मीडिया के सहारे रहने व  पीके से छिटके हुए लोगों जैसे असम में भाजपा के चुनाव जिताने वाले रजत सेठी व उनकी पत्नी शुभ्रास्था की सेवाएं लेने व भाजपा के चुनावी फैसलों में दखल देने का भी इस किताब में विवरण है। इन लोगों ने एक बार तो शिवराज सिंह को मामा संबोधन पर एतराज किया और सलाह दी कि लोगों को इन्हें मामा कहने से रोका जाए। इस कंपनी से संघ से जुड़े लोगों को जोड़कर उन्हें सोशल मीडिया की जिम्मेदारी सौंपी गई। ब्रजेश राजपूत बहुत सरल, रोचक भाषा में लिखते हैं। वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई के मुताबिक उनकी किस्सागोई की शैली बहुत शानदार है व पत्रकार की निगाह से राजनीतिक घटनाओं को गहराई से देखते हैं। साथ ही निरपेक्ष और निष्पक्ष भाव से रोचक शैली में यह सुनाते है कि चुनाव कैसे होते है, कैसे लड़े जाते है व कैसे जीते जाते हैं। सही कहा जाए तो यह किताब मध्यप्रदेश की राजनीति में रुचि रखने वालों के लिए दस्तावेज है व युवा पत्रकारों के लिए संदर्भ ग्रंथ की तरह से काम करेगी। उन्होंने इस पुस्तक में तमाम रोचक प्रसंगों का जिक्र किया है। जैसे कि उन्होंने किताब के विमोचन पर आए मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री कमलनाथ से पूछा कि उन्हें इस बात का कैसे आभास हो जाता है कि किस सीट का परिणाम क्या आने वाला है। उन्होंने बताया कि चुनाव रैलियों से ही पता चल जाता है कि वहां का मतदाता आपके साथ है या नहीं। चुनाव के बाद बदलाव अच्छे व बुरे दोनों के लिए होता है क्योंकि 15 साल तक एक पार्टी की मशीनरी किसी और तरह से चलती है व उसके बाद नई पार्टी के शासन में कामकाज की मशीनरी अलग तरह से चलती है। उनके अनुसार किसी काम के लिए ना कहना बहुत सरल है क्योंकि फिर परिणाम देने की चिंता नहीं होती है। प्रदेश में असली निवेश विश्वास के आधार पर होता है। सुबह से रात तक शिवराजसिंह के सामने नपा तुला प्रचार करने वाले कमललाथ कैसे आगे निकल गये। ज्योतिरादित्य सिंधिया कैसे अपने इलाके के बड़े नेता बन कर उभरेऔर दिग्विजय सिंह की संगत में पंगत ने कांग्रेस की जीत में क्या भूमिका अदा की, ग्वालियर चंबल में भाजपा तो विंध्य में कांग्रेस क्यों साफ हुई, बीजेपी के 13 मंत्री व कांग्रेस के दिग्गज नेता क्यों हारे?इस तरह के सवालों के जवाब आपको इस किताब में मिल जाएंगे जिसें मंजूल पब्लिशिंग हाउस ने प्रकाशित किया है।
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