बेबाक विचार

हमारे बस में नहीं चीन का बहिष्कार

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हमारे बस में नहीं चीन का बहिष्कार
आजकल जब मैं लोगों को चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करते हुए टीवी पर उन्हें उनकी होली जलाते व अपने नेताओं की बयानबाजी को व भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के एक आला अफसर को कोरोना के बारे में बोलते हुए सुनता हूं तो मुझे पुरानी घटना याद होआती है। मैं सोचने पर विवश हो जाता हूं कि क्या वाकई में चीनी सामान का बहिष्कार कर पाना संभव है? ऐसा करने से उसके विरो सेक्या कोई हल निकलेगा? स्वास्थ्य मंत्रालय के परिचित मेरे अधिकारी दिल के रोगों के एक वरिष्ठ डाक्टर हैं। वे कभी प्रधानमंत्री के डाक्टर हुआ करते थे व मैं प्रधानमंत्री दफ्तर कवर करने के कारण तमाम यात्रा पर प्रधानमंत्री के साथ जब जाता तो डाक्टर साहब भी मौजूद होते थे। हम दोनों खाने-पीने के शौकीन थे व हमारी इस आदत ने हमें एक-दूसरे के काफी करीब ला दिया था। एक बार डाक्टर साहब के विशाल सरकारी बंगले से उनके छोटे भाई की शादी हुई। उन्होंने मुझे भी आमंत्रित किया। शादी का रिसेप्शन शाम 6 बजे था। जून का महीना होने के कारण गजब की गरमी पड़ रही थी। जब मैं उनके बंगले पर पार्टी में पहुंचा तो वहां के हालात बहुत खराब थे। व्हिस्की ही नहीं नमकीन,. सोडा भी खत्म हो चुके थे। मैंने सोचा कि चलो इस गरमी में शराब नहीं पीता व खाना खाकर व लिफाफा पकड़ा कर निकल लूंगा। पर जहां खाना लगा था वहां गजब की मारा-मारी हो रही थी।बड़ी मुश्किल से मैं एक प्लेट हथियाने में सफल हो गया। मैंने अपने पास खड़े बैरे से खाने के लिए चम्मच लाने को कहा तो वह मुस्कुराता हुआ मुझसे कहने लगा कि चम्मच तो मैं ला दूंगा मगर आप उसका करेंगे क्या? मैंने उससे यह पूछने की वजह पूछी तो उसने हंसते हुए कहा कि खाने में तो कुछ बचा ही नहीं है। सिर्फ थोडी-सी दाल बची है। ज्यादा भूख लगी हो तो प्लेट भर कर उसे पी लीजिए। आज भूखा ही रहना पड़ेगा। अब जब मैं लोगों को चीनी सामान का बहिष्कार करते देखता हूं तो उस बैरे की तरह मेरे में यह सवाल कौधने लगता है कि हम बहिष्कार कर आखिर करेंगे क्या?  इसकी वजह यह है कि पिछले कुछ दिनों से भारत व चीन के बीच होने वाले व्यापार व उसके संतुलन के बारे में जो कुछ छप रहा है उसे अगर ध्यान से देखे तो पता चल जाता है कि इस बहिष्कार, विरोध का कुछ मतलब ही नहीं। हम चीन के ऐसे व्यापारिक सहयोगी है जो कि हमारे सामान पर दो फीसदी अपना व्यापार करता है। हमारा उससे किया जाने वाला आयात उसे किए जाने वाले निर्यात की तुलना में छह गुना ज्यादा है। वह हमसे सबसे ज्यादा लौह अयस्क, कच्चा माल लेता है और हमें तैयार माल जैसे बिजली के इलेक्ट्रानिक उपकरण, कपड़े, बच्चे के खिलौने, फर्नीचर, साईकिले निर्यात करता है। उसकी तमाम बड़ी कंपनियों में खासतौर पर स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियां जैसे शियोयी ओपा, माइक्रोमैक्स, वीवो आदि कंपनियों का हमारे यहां पर लगभग पूरा कब्जा हो चुका है। देश में बिकने वाले 60 फीसदी स्मार्टफोन इन्हीं कंपनियों के है। यहीं हालात कंप्यूटरोx व टेलीविजन जैसे  गैजेट्स  की है। चीनी सामान न केवल सस्ते हैं बल्कि उसमें कई बढि़या फीचर भी है। इलेक्ट्रानिक गुडिया का तो भारत में कुल बिकने वाले सामान में हिस्सा 60 फीसदी है। स्मार्ट फोन की मांग इतनी ज्यादा है कि हर पांच में से तीन फोन चीन के हैं। इसकी वजह अपने विक्रेता भी थे। चीनी कंपनिंया बिक्री के आधार पर कमीशन देती है जो कि बिक्री बढ़ने पर बढ़ जाता है। इसके अलावा अलीबाबा, पेटीएम कंपनियां भारत में अपने पैर जमा चुकी हैं। पिछले पांच सालों में न सिर्फ इलेक्ट्रानिक व तकनीक के क्षेत्र में बल्कि चीन ने स्टार्ट-अप कंपनियों तक के अंदर भारी निवेश किया है। उसकी निवेश राशि 4 अरब डालर है। चार बड़ी कंपनियों में चीन का पैसा लगा हुआ है उसके टिकटाक वीडियो का 2 अरब लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। उसके अलीबाबा, बाइट डांस, जोमैटो जैसी कंपनियों तो अमेरिकी फेसबुक, गूगल तक को चुनौती दे रही है। उसकी कंपनियों ने सैमसंग व गूगल तक को भारत में काफी पीछे छोड़ दिया है। उसके भारत के 30 बड़े स्टार्ट-अप में से 18 पर निवेश करके अपना कब्जा कर लिया है। तमाम बड़ी भारतीय कंपनियों जैसे बिग बास्केट, डेज्डीवेरी, ड्रीम-11, फ्लिपकार्ट, हाइक, चेक माई स्ट्रिग, ओला, ओमोन, पेटीएम माल, पालिसी बाजार क्विकर, स्नैपडोल, स्विगी, जोमेटो आदि जानी मानी कंपनियों में उसका भारी निवेश है।विशेषज्ञ मानते हैं कि वह तकनीकी रूप से संपन्न भारतीय कंपनियों पर कब्जा जमाने के लिए इतना उतावला है कि उसकी कंपनियेां की वास्तविक आर्थिक स्थिति की तुलना में वहां कही ज्यादा निवेश किया हुआ है ताकि वह भारतीय तकनीकी क्षेत्र में अपनी जड़े जमा सके। टिकटाक तो भारत का बहुत लोकप्रिय एप बन चुका है। शियोयी का स्मार्ट फोन सैमसंग की तुलना से काफी बड़ा है जबकि संचार क्षेत्र में हुआवेई के राउटरो का इस्तेमाल खुल कर किया जा रहा है ताकि भविष्य में उन्हें प्रभावित करने में सुविधा रहे। वह भारत की निजी कंपनियो के जरिए अपना निवेश कर रेलवे सरीखे सरकारी ठेके ले रहे हैं ताकि उसके हस्तक्षेप पर किसी को शक न हो। ज्यादातर पैसा सिंगापुर स्थित कंपनियों से आता हैं जिन पर ज्यादातर चीन का अधिकार है। उसने 2018 में 1.1 अरब डालर का निवेश करके ग्लैड फार्म नामक दवा कंपनी पर अपना आधिपत्य जमा लिया है। यह राशि चीन द्वारा भारत में किए गए कुल निवेश राशि का 17.7 फीसदी है। उसने आटो मोबाइल, ई-कामर्स, सोशल मीडिया सेवाएं देने वाली कंपनियों में भी भारी निवेश किया हुआ है।देश की जानी मानी मारूति उद्योग लि कार क्षेत्र के चेयरमैन आरसी भार्गव कहते हैं कि आटोमोबाइल निर्माण के क्षेत्र में चीनी पुर्जो की अहमियत को देखते हुए चीनी सामान का पूरी तरह बहिष्कार कर पाना हमारे लिए संभव नहीं है। वह तमाम भारतीय कार व दूसरे आटो मोबाइल कंपनियों के वाहनो के विभिन्न हिस्सो की आपूर्ति कर रही है जो अगर समय रहते नहीं आए तो उत्पादन ठप्प हो जाएगा। कहते है कि रिलायंस का जियो सफल होने के लिए अलीबाबा का भारतीय मॉडल इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है। उसका भारत में इतना ज्यादा दखल हो चुका है कि वहां की कंपनियेां को बड़ी आसानी से हमारी कंपनियेां के धंधे भुगतानो को प्रभावित कर सकते हैं। भारत आंकड़ो पर से नियंत्रण पहले ही चीन के हाथों गंवा चुका है जोकि चीन की परिवहन कंपनियों, होटल कंपनियों, पेटीएम सरीखी कंपनियों के लिए बहुत ही लाभदायक साबित हो सकते हैं।हम पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा दवाओं का निर्यात करते हैं। दवाएं बनाने वाला कच्चा माल या एपीआई एलीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस चीन से ही आते हैं। हमारी दवा निर्माता अपना 75 फीसदी एपीआई चीन से ही मंगाते हैं। पिछले साल चीन से 2.4 अरब डालर का एपीआई इंपोर्ट किया था। उसका सारा दवा उद्योग इसी पर पनप रहा है। चीन के एक विशेषज्ञ के मुताबिक भारत को सबसे बड़ा खतरा तो चीनी साइबर युद्ध से है व हमने  इस क्षेत्र में कुछ नहीं किया है। जब अमेरिका ने हमसे कोरोना के लिए एक खास दवा मांगी थी तो हमारे दवा निर्माताओं ने काफी पहले से ही उसे तैयार कर रखा थ। इसी लिए हम उसे आंख दिखाने व फिर उसकी मानने के लिए तैयार हो गया। सरकार ने अब एक अहम कदम उठाते हुए उसके 59 एप्स पर रोक लगाई है। यह कितना व्यवहारिक साबित होगा यह समय ही बताएगा।चीन के सामान को लेकर नेताओं द्वारा देश में जिस तरह से बहिष्कार का प्रचार-प्रसार हुआ है उसे देखते हुए व्यापार संगठन भी अब चीन पर कच्चे माल व दूसरे सामान की निर्भरता समाप्त करने के बयान देने लगे हैं। मगर एक पुरानी कहावत है पर उपदेश कुशल बहुतेरे। जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीनी माल के बहिष्कार की बात करते हो वे खुद जर्मनी का बना चश्मा पहनते बताते है व उन्होंने करोड़ो रुपए खर्च करके चीन से सरदार पटेल की दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति बनवाई थी। जब राष्ट्र का  प्रमुख ऐसा करता है तो बाकी लोग क्या करेंगे इसका खुद अंदाजा लगाया जाना चाहिए। वैसे एक पुरानी कहावत है कि तुम सांप के बिल में हाथ डालो और तब तक मैं मंत्र पढ़ा हूं। हमारी सरकार भी यही कर रही है। हमें सोचना चाहिए कि हम दुनिया के सबसे बड़े दवा निर्माता है। जब दवा के पहले हम कच्चा माल चीन से नहीं मंगवाते थे तब भी दुनिया को दवाएं भेजते थे। अब जब दुनिया में पेट्रोल के दाम सबसे कम होने के बावजूद सरकार आए दिन उसके दाम बढ़ा रही है तब हमने क्या कर लिया। इस हकीकत को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए।
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