बेबाक विचार

इस फिल्म में सच्चाई कुछ नहीं

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इस फिल्म में सच्चाई कुछ नहीं
अपनी सेनाओं व युद्ध में हिस्सा लेने वाले लोगों के लिए मेरे मन में बहुत इज्जत है। विशेष तौर पर कारगिल युद्ध के शहीद कैप्टन अनुज नैयर के माता-पिता पहले मेरे फ्लैट में ही किराए पर रहते थे। उन्हें बेटे के शहीद होने के बाद वसुंधरा एन्कलेव में सरकार ने पेट्रोल पंप आवंटित किया था। उसे हासिल करने में उन्हें कितनी दिक्कत हुई व बिजली तक का कनेक्शन देने में उनसे कितनी रिश्वत मांगी गई, इसकी एकदम अलग कहानी है। जब मैं अपने फ्लैट में रहने आया तो मैंने मंदिर के अहाते में कैप्टन अनुज नैयर के नाम व उनकी भूमिका की जानकारी देने वाले संगमरमर के बोर्ड के सामने उन्हें ऋद्धांजली देने के लिए अगरबत्ती जलाना व फूल चढ़ाना शुरू कर दिए। मैं जब भी मंदिर जाता हूं तो उनके नाम वाले बोर्ड के आगे उन्हें याद करते हुए अपना सिर नवाता हूं। मेरा मानना है कि हमारे शहीद किसी देवी-देवता से कम नहीं होते हैं क्योंकि अगर आज हम स्वतंत्रता में जी रहे हैं तो इसके पीछे भगवान व उनका ही हाथ है। मगर जब मैंने हाल में कारगिल युद्ध में हिस्सा लेने वाली गुंजन सक्सेना द कारगिल फिल्म को लेकर पैदा होने वाले विवाद को पढ़ा व वायु सेना के अपने तमाम मित्रों से बात की तो मुझे लगा कि जैसा कि हमारी फिल्मो के साथ होता है उसे मसालेदार बनाने के लिए न केवल तमाम गलत जानकारी दी गई है बल्कि यह साबित करने की कोशिश है कि सेना में उनके पुरुष सहयोगी उनके साथ सौतेला बरताव करते थे। अब तो इस मुद्दे पर सोशल मीडिया में भी वाद-विवाद शुरू है। पहले वायुसेना खासतौर से सेना में महिलाओं की भर्ती नहीं की जाती थी। उनको सिर्फ मेडिकल कोर में ही रखा जाता था। वह युद्ध में हिस्सा नहीं लेती थी। मगर इंडियन एयरफोर्स में 1991 में शार्ट सर्विस कमीशन के अफसरो के रूप में महिलाओं की भर्ती शुरू की। देखा-देखी बाकी दोनों सेनाओं थल व जल सेना ने भी अपने यहां उनकी भर्ती करना शुरू कर दिया। भारतीय वायुसेना में महिलाओं का जो पहला बैच भर्ती हुआ उसमें गुंजन सक्सेना थी। उन्होंने फ्लाइट लेफ्टीनेंट के रूप में ट्रांसपोर्ट व हैलीकाप्टर चालको के रूप में हिस्सा लिया। वे अकेली नहीं थी उनके साथ कारगिल में सेवा देने के लिए एक महिला अफसर और भी थी। फिल्म में  दिखाया गया कि वे 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान घायल सैनिको को लाने वाली एकमात्र व देश की पहली महिला पायलट थी। मेरे एक वरिष्ठ परिचित अधिकारी ने बताया कि फिल्म में उनकी भूमिका को लेकर फिजूल बाते की गई। उन्होंने कुछ अनोखा करते हुए विमान के खराब हालात में साहस व बुद्धि का परिचय दिया है, ऐसा कुछ भी नहीं है। वे तो एक सामान्य विमान चालक की तरह कार्यरत थी। पर फिल्म में भी बढ़-चढ़ कर कहानी तो फिल्म  रिलीज होने के साथ दो लेखको के निर्वाण सिंह व करनदीप सिंह ने उन पर किताब भी लिख डाली। उनका कहना था कि वे तो उन्हें एक मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। उनके साथ वहां सेवाएं देने वाली उनकी बैच की दूसरी महिला पायलट फ्लाइट लैफ्टीनेंट श्रीविद्या राजन ने भी उनके तमाम आरोपों का खंडन करते हुए फिल्म रिलीज होन के कुछ दिनों बाद भारतीय वायुसेना ने सेंसर बोर्ड को पत्र लिखकर तमाम बातों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इस फिल्म के जरिएछवि धूमिल करने की कोशिश की गई। विद्याराजन उनके साथ ऊधमपुर में तैनात थी। वे इस मामले को लेकर जब अदालत में गई तो गुंजन सक्सेना ने अपना यह बयान वापस ले लिया कि वे कारगिल युद्ध में हिस्सा लेने वाली अकेली महिला पायलट थी व उनको शौर्य चक्र भी दिया गया था। फिल्म में उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रम में शौर्य चक्र प्रदान किए जाते हुए दिखाया गया है। वायुसेना के वरिष्ठ अफसरो का मानना है कि वास्तव में ऐसा कभी नहीं होता है। फिल्म की आलोचना किए जाने की सबसे बड़ी वजह उसमें यह साबित करना है कि वहां पुरूष अधिकारी अपनी सहयोगी महिला अधिकारी के साथ भेदभाव करते हैं व उन्हें अपने बराबर का नहीं समझते। फिल्म में उनकी भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री जाहनवी कपूर के ऊधमपुर एयरफोर्स स्टेशन की बैठक एकमात्र व देश की पहली महिला अधिकारी दिखाया गया है। नियमित टीम ब्रीफ्रिंग में कुछ अहम सवाल पूछने पर  आपत्ति जताती है तो उसे वहां से चले जाने के आदेश दिए जाने को कहा जाता है। उसे एक पुरुष सहयोगी के साथ कुश्ती लड़ने के लिए कहा जाता है। गुंजन सक्सेना की शिकायत रही है कि महिला अफसरो के लिए वहां अलग से बाथरूम नहीं थे जहां जाकर वे अपने कपड़े बदल से। वहीं एक अन्य महिला अफसर उनके आरोपो का खंडन करते हुए कहती है कि पुरुष अधिकारी हमारा बहुत टकराव करते थे व अक्सर हम लोग वहां महिला डाक्टरो द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले टायलेट का इस्तेमाल किया करते थे। उनकी बैच की ही अधिकारी रही विंग कमांडर अनुपमा जोशी की दलील है कि शुरू में थोडी बहुत मुश्किले आती है। इनमें सबसे बड़ी मुश्किल अकेलेपन की होती है। महिलाओं को महिला होने के कारण सौतेला बरताव का शिकार बनना पड़ता है। पूर्व दिवंगत वायुसेना उपाध्यक्ष जनरल मिलन नायडु की पत्नी नीहरिका नायडू ने तमाम आरोपों का प्रतिवाद करते हुए लिखा है कि उनकी पुत्रवधू नम्रता चांडी भी गुंजन सक्सेना द्वारा किए गए कथित खुलासे देखकर दुखी है।  वह खुद भी एयरफोर्स में महिला एयरफोर्स में महिला पायलट रही है व उन्होंने 15 साल तक अपनी सेवाएं दी हैं। सच्चाई है कि हमारे पुरुष अफसर महिला सहयोगियों का बहुत सम्मान करते हैं। पर लेखक ने अपनी मनमानी में कभी खुशी कभी गम की तरह कहानी बनाई। मुझे नहीं पता कि गुंजन ने पटकथा लेखको को क्या बताया मगर मेरा विश्वास है कि वायुसेना में काम कर चुका कोई भी इंसान उसे बदनाम करने की कोशिश नहीं करेगा। वे लिखती है कि पाकिस्तान से लगने वाली देश की सीमाओं पर उड़ान भरने वाली मैं देश की पहली महिला पायलट रह चुकी हैं। मैं लेह में तैनात की जाने वाली पहली ऐसी महिला पायलट थी जो सियाचीन ग्लेशियर में चीता हैलीकाप्टर उड़ाती थी। वहां यह आम अफवाह थी कि महिलाएं इस इलाके के लिए शुभ नहीं है। इसके बावजूद मुझे कभी किसी ने कुछ नहीं कहा। अफसर तो अफसर ही होते हैं भले ही उनके बाल छोटे हो अथवा लंबे। वे गंदे अशिष्ट तरीके से ब्रीफ्रिंग के दौरान अपनी बातें नहीं कहते। मेरी साथी भी इस फिल्म में गुंजन के पात्र के द्वारा कही गई बातों से बहुत दुखी है। वहीं गुंजन सक्सेना का कहना है कि यह कहना गलत होगा कि पुरूष अफसरों की सोच बहुत खराब थी। फिल्म को सब पर लागू करना उचित नहीं होता है। मेरे पेशेवर विकास पर कुछ भी असर नहीं पड़ा। मेरा उद्देश्य तो इस फिल्म के जरिए लोगों को जीवन में आगे बढ़ने व अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रेरित करना था। गुंजन सक्सेना अब 45 साल की हो चुकी है व अपने परिवार के साथ रहती है। उनके पति वायुसेना में अधिकारी हैं।
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