चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस ने अपने देश के सीमावर्ती इलाकों को लेकर कानून पारित किया है जो नए साल से लागू हो गया है। उनके मुताबिक चीन की सीमाओं की एकता व सार्वभौमिकता बहुत ही पवित्र है। इसका सीधा अर्थ यह है कि वह अपनी सीमाओं की सुरक्षा बढ़ा सकता है। उन्हें खोलकर वहां आर्थिक विकास के नाम पर निर्माण भी कर सकता है। आर्थिक, सामरिक विकास के नाम पर सीमावर्ती इलाकों में कुछ भी कर सकता है।
चीन बेहद ही शरारती देश है। वह भारत की जमीन पर सालों से नजर गड़ाता आया है। इस समय भी उसके साथ सीमा विवाद को लेकर संबंधों में तनातनी है। उसने अभी अभी अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सा के नाम ही बदल दिए। हाल ही में उसके भारत स्थित दूतावास ने हद ही कर दी जबकि एक मंत्री समेत कई सांसदों को पत्र लिखकर उसने तिब्बत के एक कार्यक्रम में भोज में हिस्सा लेने पर अपनी आपत्ति जताई।
इसके पहले चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस ने अपने देश के सीमावर्ती इलाकों को लेकर कानून पारित किया है जो नए साल से लागू हो गया है। उनके मुताबिक चीन की सीमाओं की एकता व सार्वभौमिकता बहुत ही पवित्र है। इसमें चीन की भूमि सीमा के संरक्षण करने और उस पर अतिक्रमण को रोकने की बात कही गई है। इसका सीधा अर्थ यह है कि वह अपनी सीमाओं की सुरक्षा बढ़ा सकता है। उन्हें खोलकर वहां आर्थिक विकास के नाम पर निर्माण भी कर सकता है। आर्थिक, सामरिक विकास के नाम पर सीमावर्ती इलाकों में कुछ भी कर सकता है। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि वह अपने सीमावर्ती इलाकों में निर्माण से लेकर आर्थिक विकास के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है।
वहीं इस कानून में कहा गया है कि वह बराबरी व आपसी विश्वास के नियमों पर अमल करते हुए अपने पड़ौसी देशों से लंबे समय से चले आ रहे सीमा संबंधी विवादों को हल करने की कोशिश करेगा। इस कानून में सीमाएं बंद कर देने से लेकर आपातकालीन कदम उठाने के लिए प्रावधान तक किए गए। पहला व अहम सवाल तो यह है कि चीन को ऐसा करने की जरुरत क्यों पढ़ी। माना जाता है कि यह कानून बनाया जाना साबित करता है कि चीन अपने सीमा संबंधी विवादों को लेकर चिंतित है जो कि लंबे अरसे से चलते आए हैं। पिछले साल भी सीमा विवाद को लेकर भारत व चीन के बीच खूनी टकराव की नौबत आ गई थी व चीन ऐसे हालात पैदा होने पर अपनी जमीनी व समुद्री ताकत दिखा सकता है।
कोविड के दौरान जिस तरह से चीन ने सीमावर्ती इलाकों में अपना प्रभुत्व दिखाने की हरकतें की है वह किसी से छिपी नही है। जबकि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी हुई है और वहां तालिबान ने अपना कब्जा जमाया है। इसलिए चीन को यह भी खतरा है कि कहीं अफगानिस्तान में बढ़ने वाला आतंकवाद उसके सिंक्यांग प्रांत को अपनी चपेट में न ले ले। चीन की हरकतों का एक बड़ा कारण उसकी घरेलू राजनीति हो सकती है। इस साल होने वाली पार्टी की बैठक में राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपनी राजनीतिक स्थिति को और मजबूत करना चाहते हैं। जहां वे अपना तीसरा कार्यकाल हासिल करना चाहते हैं। यह माना जाता है कि भारत और चीन के बीच में 3488 किलोमीटर लंबी सीमाओं को देखते हुए भारत इस नए चाईनीज कानून की अनदेखी नहीं कर सकता है।
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चीन की मंगोलिया व रूस समेत 14 देशों के साथ सीमा लगती है। जिन की लंबाई 2,24,576 किलोमीटर है भारत की सीमाओं की उसकी दूरी तीसरे नंबर पर आती है। उसकी भूटान से लगने वाली सीमाओं की लंबाई 477 किलोमीटर है। चीन का उसके साथ भी सीमा विवाद चला आ रहा है। जानकारों का मानना है कि भारत- चीन सीमा पर चले आ रहे विवादों को टालने के लिए चीन ने यह कानून बनाया है ताकि वह समुद्री व धरती की सीमाओं पर खुद को मजबूत कर सके व मध्य एशिया में अपना दबदबा बनाए रख सके। चीन के साथ डोकलाम कांड के बाद हुई बैठकों का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। अभी तक उसने गोलमेज सम्मेलन के लिए कोई तारीख तय नहीं की है।
आशंका यह है कि नए कानून की आड़ में वह अपने पक्ष को मजबूत बनाने की कोशिश कर सकता है। उसने पेट्रोलिंग पोस्ट पीपी-15 पर चले आ रहे विवाद को अभी तक समाप्त नहीं किया है। जबकि देपलाग के मैदानी इलाकों पर उसके साथ विवाद चला आ रहा है। वहीं कुछ तथाकथित उसके स्थानीय नागरिकों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास भारतीय सीमाओं में अपने टेंट लगा रखे है। बार बार कहने के बाद भी उन्हें वे खाली नहीं कर रहे हैं। उसके कानून के मुताबिक भारत की सीमाओं के निकट अपने इलाकों में कोई भी निर्माण उसकी अनुमति के बिना नहीं कर सकेगा।
ध्यान दिला दे कि भारत व चीन दोनों ही अपनी सीमाओं के निकट सड़के, पुल बना रहे है। दोनों के बीच इस मुद्दे पर विवाद होते चले आए है। चीन भारतीय सीमाओं में होने वाले निर्माण का काफी पहले से ही विरोध करता आया है। देखना यह है कि यह नया कानून पारित होने के बाद भविष्य में ऐसे मामलो में क्या रुख रहता है। हालांकि जानकारों का मानना है कि चीन की नियत शुरु से ही खराब रही है। नए कानून की जरुरत वह भारत के प्रति आक्रामक रवैया अपनाने के लिए ही उसका दुरुपयोग करेगा। पहले भी वह भारत के प्रति आक्रामक रुख अपनाता ही आया है।
अपने नए कानून को पारित करने बाद वह अपने सीमा संबंधी विवादों का वह अपनी शर्त पर ही हल चाहता है। असली समस्या यह है कि वह कानून सीमा संबंधी इलाको की भूमि को लेकर है। भारत व चीन के सीमा विवाद लंबे समय से चले आ रहे हैं। जब सीमाएं ही तय नहीं है तो उनका विवाद का हल कैसे निकलेंगे। हर देश को अपनी सीमाओं की रक्षा करने का अधिकार होता है। उसके लिए कानून बनाने की जरुरत नहीं पड़ती। उसने पूर्व लद्दाख में क्या किया, यह पूरी दुनिया जानती है। उसने साबित कर दिया है कि वह अपने सीमा संबंधी विवादों को बातों से नहीं बल्कि ताकत से हल करना चाहता है। चीन संबंधी जानकार एक आला अधिकारी के मुताबिक यह कानून और कुछ नहीं बल्कि चीन द्वारा अपनी सीमाओं की घोषणाएं करने के लिए उठाया गया कदम है। इसके कारण भारत के लिए ज्यादा खतरे होंगे। इसका रास्ता सैन्य ताकत के जरिए ही निकलेगा। इस कानून में चीन ने भारत की सीमा के निकट लोगों की बसावट बढ़ाने में मदद करेगा। हाल ही में शी जिंनपिंग ने सीमा के निकट तिब्बत व उससे पहले जुलाई में अरुणाचल के निकट चीनी इलाकों का दौरा किया था। पिछले साल अक्टूबर माह में सेना ने पूर्वी सीमाओं के कमांडर ले जनरल ने कहा था कि चीन सीमा के निकट अपने माडल गांव बसा रहा है जो उसकी नीति का हिस्सा है। ध्यान दिला कि वहां सिक्किम से अरुणाचल प्रदेश तक की 1346 किलोमीटर की हमारी सीमा चीन के साथ लगती है। यह हमारे लिए बहुत चिंता का विषय है। वहां लोगों का बसाया जाना भविष्य में हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
चीन का सीमा कानून है शरारती
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