रिपोर्टर डायरी

नदियों का जोड़ना जरूरी

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नदियों का जोड़ना जरूरी
नदियों को जोड़ने की कहानी बहुत पुरानी है। उन्नीसवीं सदी में केरल की पेरियार नदी घाटी से पानी तमिलनाडु में वैगाई नदी घाटी में भेजा गया। 1960-70 के दशक में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और केंद्र सरकार ने एक संयुक्त परियोजना बनाई। इसके तहत रावी नदी पर बांध बनाया गया और और वहां से पानी को व्यास नदी में और फिर व्यास नदी से सतलुज नदी में भेजा गया। बात उन दिनों की है जब मैं जनसत्ता में था। एक बार एक खबर करते हुए मुझे बहुत खुशी हुई। तब की बात है जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और उन्होंने नदियों को जोड़ने की बात कही थी ताकि जिन नदियों में बाढ़ आ जाती थी उसके अतिरिक्त पानी को उन इलाको तक ले जाया जा सके जो कि सूखे की समस्या से जूझ रहे थे। उसी के साथ देश में नदी जोड़ नहर की शुरुआत हुई। इनमें केनबेतवा नदी को जोड़ने को बहुत अहमियत दी गई। देश में नदियों को जोड़ने की यह पहली परियोजना थी। यह 1980 में नदियों को जोड़ने के लिए तैयार की गई परियोजनाओं में शामिल थी इसके अलावा 14 और नदियों को जोड़ने की परियोजना तैयार की गई। केन और बेतवा दोनों ही यमुना नदी से निकलती है। इसके अलावा हिमालय नदी विकास योजना के तहत 14 नदियों को जोड़ने के बाद 10.62 लाख हैक्टेयर की खेती की सिंचाई के लिए व 62 लाख लोगों को पीने का पानी उपलब्ध कराया जा सकता है। इसके अलावा इस परियोजना की मदद से 103 मेगावट पावर व 27 मेगावाट सौर उर्जा मिलने की भी उम्मीद है। यह परियोजना बुंदेलखंड की तस्वीर बदलने वाली है। इस योजना के जरिए इस क्षेत्र के 13 जिलों में सूखे को समाप्त किया जा सकता है। इस योजना के यह जिले उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में आते हैं। इनमें पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, रायसेन सरीखे मध्यप्रदेश के व बांदा, महोबा, झांसी, ललितपुर सरीखे उत्तरप्रदेश के सूखा ग्रस्त जिले शामिल है। दूसरा इन सूखा ग्रस्त जिलों के किसानों को खेती के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध करवाकर उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाया जा सकता है। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा इस परियोजना को मंजूरी दे दी गई है। 2020-21 में केंद्र सरकार ने इस परियोजना के लिए 44605 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। इनमें से 39317 करोड़ रुपए केंद्रीय सहायता के रुप में होगी जबकि 3628 करोड़ एक अनुदान के रुप में दिए जाएंगे व 3.02 करोड़ रुपए कर्ज के रुप में लिए जाएंगे यह एक राष्ट्रीय परियोजना है। इसके लिए एसपीवी (स्पेशल पर्पज व्हीकल) गठित करने का प्रस्ताव है जिसे केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना प्राधिकार केबीएलपीए कहा जाएगा जिसे नेशनल हाईवे अथारटी एनएचएआई की तरह ही गठित किया गया है। यह संस्था ही इस परियोजना का पूरी तरह से निर्माण करेगी जिनमें नहरे व डैम दोनों ही शामिल है। इसके अलावा केंद्र सरकार ने नेशनल इंटरलिंक आॅफ रिवर अथारटी पहले ही गठित कर दी है। जिसका काम तमाम नदियों को जोड़ने की योजना तैयार करने से लेकर उसे लागू करने तक की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसके जरिए विद्युत उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी की जाएगी। केन बेतवा नदियों से जोड़ के लिए सबसे पहले इन्हें जोड़ने वाली लिंक नहर का निर्माण किया जाएगा। Read also किसान आंदोलन से मिला संघर्ष का टेम्पलेट! नदियों को जोड़ने की कहानी बहुत पुरानी है। उन्नीसवीं सदी में केरल की पेरियार नदी घाटी से पानी तमिलनाडु में वैगाई नदी घाटी में भेजा गया। 1960-70 के दशक में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और केंद्र सरकार ने एक संयुक्त परियोजना बनाई। इसके तहत रावी नदी पर बांध बनाया गया और और वहां से पानी को व्यास नदी में और फिर व्यास नदी से सतलुज नदी में भेजा गया। सतलुज प्रोजेक्ट में बहुत जोर शोर से काम शुरु किया गया मगर हरियाणा और पंजाब की राजनीति के कारण इसे पूरा नहीं किया जा सका। यहां यह याद दिलाना जरुरी हो जाता है कि नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी गठित कर 30 नहरों को उसके तहत लाया गया व अटल बिहारी सरकार के कार्यकाल में केन बेतवा नदियों को जोड़ने के काम में सरकार ने तेजी लायी। यह काम काफी दिक्कत भरा है क्योंकि सबसे पहले सरकार को केंद्रीय जल आयोग से तकनीकीआर्थिक सहमति लेनी पड़ती है। इसके अलावा वन व पर्यावरण मंत्रालय की भी सहमति मिलना जरुरी है। चूंकि बड़ी संख्या में लोगों को पुर्नस्थापना होता है अतः इस मंत्रालय की भी सहमति जरुरी होती है व इसमें सालो साल लग जाते हैं। विभिन्न अड़चनों के कारण इसे अब तक नहीं शुरू किया जा सका है। जिनमें पन्ना टाइगर रिजर्व, पर्यावरण मंजूरी, पारिस्थितिकी को होने वाले नुकसान से जुड़े मुद्दे, राज्यों के बीच विवाद, फसलों पर पड़ने वाला प्रभाव आदि शामिल हैं। अततः विश्व जल दिवस पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने देश के इस बहुत बड़े नदी जोड़ समझौते पर उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश के सरकारों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए।  इस वक्त केन नदी का पानी एक कंक्रीट की नहर के जरिए बेतवा नदी तक पहुंचाया जाएगा व उस अतिरिक्त पानी को बुंदेलखंड इलाकों में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया जाएगा। सबसे पहले इस परियोजना को स्वीकृति देने के पर्यावरण मंत्रालय ने अड़गा लगा दिया है और वह और जलाशय के लिए स्वीकृति नहीं दे रहा था। इस परियोजना के पन्ना नेशनल पाक का कुछ हिस्सा डूब जाने का खतरा पैदा हो गया था। अतः वन मंत्रालय ने इसे स्वीकृति देने के लिए अपनी आपत्तियां लगा दी। जिनमें पानी को इस तरह से ले जाया जाना था कि ताकि पन्ना के टाइगर रिजर्व को नुकसान न पहुंचे। बुंदेलखंड दशकों से सूखे का शिकार रहा है। इस कारण यहां बहुत गरीबी व्याप्त है व यहां लोगों का पलायन भी बहुत ज्यादा होता है। यहां सिंचाई से लेकर पीने के पानी तक की बहुत ज्यादा कमी है। याद दिला दे कि 17 साल बाद इस महत्वाकांक्षी परियोजना को कैबिनेट की मुहर लगा दी है। मध्यप्रदेश के आठ व उत्तरप्रदेश के चार जिलों की तस्वीर बदल जाएगी। याद रहे कि कुछ महीनों बाद उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इस योजना के तहत यूपी में डेम बनाए जाएंगे पानी के साथ साथ उसे बिजली का भी फायदा मिलेगा। अतः सरकार बहुत जल्दी ही यहां काम शुरु करने जा रही है ताकि इस क्षेत्र के मतदाताओं को मोहित कर सके। इस परियोजना के सर्वेक्षण पर 30 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इस परियोजना का मुख्य बांध पन्ना टाइगर रिजर्व के दोधन गांव पर बनाया जाना है। बांध व नहरों के कारण सवा पांच हैक्टेयर क्षेत्र नष्ट हो जाएगा व छतरपुर जिले के 10 गांव भी पानी में डुब जाएंगे। केन बेतवा का जोड़ने का सपना अटल बिहारी वाजपेयी ने देखा था जिसे नरेंद्र मोदी पूरा कर रहे हैं। उन्होंने 37 नदियों को जोड़ने का सपना देखा था उनमें से एक केन बेतवा परियोजना भी थी।
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