रिपोर्टर डायरी

वोटर लिस्ट में भी घुसा आधार कार्ड

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वोटर लिस्ट में भी घुसा आधार कार्ड
सरकार के मुताबिक संसद के स्थायी समिति ने इस साल मार्च महीने में ऐसा किए जाने की सिफारिश की थी। कानून मंत्री किरण रिजिजू का कहना है कि यह स्वैच्छिक है। किसी को ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। उनके मुताबिक इस मुद्दे पर सरकार व चुनाव आयोग के बीच तमाम बैठकें भी हुई। उसके बाद ही यह विधेयक लाया गया। linking voter rolls Aadhaar पिछले दिनों राज्यसभा ने ध्वनिमत से चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक 2021 पारित हुआ। इसके साथ ही मतदाता सूची को आधार कार्ड से जोड़े जाने की संसद से सहमति मिल गई। लोकसभा इसे एक दिन पहले ही पारित कर चुकी थी। इसे लेकर विपक्ष ने काफी विरोध किया जबकि सरकार का कहना था कि ऐसा किया जाना अरसे से लटके हुए चुनाव सुधारों में शामिल है। सरकार का कहना था कि आधार कार्ड को मतदाता सूची से जोड़ देने के बाद एक ही व्यक्ति का कई जगहों पर मतदाता सूची में नाम शामिल कर पाना असंभव हो जाएगा। किसी जगह भी मतदाता सूची में पंजीकरण करते ही आधार संख्या यह बताएंगी कि वह पहले मतदाता सूची में अपना पंजीकरण करवा चुका है। इससे एक व्यक्ति एक ही जगह मतदाता सूची में नाम जोड़ पाएगा। सरकार के मुताबिक संसद के स्थायी समिति ने इस साल मार्च महीने में ऐसा किए जाने की सिफारिश की थी। कानून मंत्री किरण रिजिजू का कहना है कि यह स्वैच्छिक है। किसी को ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। उनके मुताबिक इस मुद्दे पर सरकार व चुनाव आयोग के बीच तमाम बैठकें भी हुई। उसके बाद ही यह विधेयक लाया गया। वैसे मार्च 2015 में चुनाव आयोग ने इस दोहराव को रोकने के लिए चुनाव की मतदाता सूचियों को शुद्ध करने का काम शुरु किया था। इस संबंध में चुनाव आयोग ने राज्यों के चुनाव अधिकारी को पत्र जारी कर उनसे कहा था कि वे लोग किसी मतदाता को अपना आधार कार्ड मतदाता सूची में जोड़ने के लिए बाध्य न करे क्योंकि यह कदम स्वैच्छिक है। ध्यान रहे उसी साल सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मतदाता सूची में आधार कार्ड जोड़ने का कदम तब तक अनिवार्य नहीं किया जा सकता है जब तक कि कोर्ट इस संबंध में अपना कोई फैसला न दे दे। इस साल 16 नवंबर को कानून मंत्रालय ने कहा कि चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ विचार विमर्श करके कुछ चुनाव सुधारों को अंतिम रुप दिया है। इस बारे में कांग्रेस का कहना है कि आधार को मतदाता सूची से जोड़ने से निजता के मूलभूत अधिकार का हनन होता है जैसा कि सुपीम कोर्ट अपने एक फैसले में स्पष्ट कर चुका है। वहीं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सांसद असासुद्दीन ओवेसी ने दलील  दी कि ऐसा किए जाने से सरकार कुछ नागरिकों के मतदान का अधिकार समाप्त कर सकती है। यह विधेयक इस सदन के अधिकार के बाहर आता है। वैसे भी यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। Voting and Aadhar Card Read also हम हिंदुओं के पोर-पोर में ‘भयाकुलता’! रिजिजू का कहना था कि मौजूदा कानूनी प्रावधानों में कुछ कमियां हैं। सरकार ने चुनाव आयोग से बातचीत करके कुछ संशोधन करने का फैसला किया है। इसके लिए जन प्रतिनिधित्व कानून 1950 व जनप्रतिनिधित्व कानून 1957 में संशोधन करने पड़े हैं। जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 के मुताबिक कोई भी नागरिक मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वा सकता है व संबंधित अधिकारी उससे उसका आधार कार्ड मांग सकता है ताकि उसकी पहचान स्थापित की जा सकें। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यह तभी होना चाहिए जब फरजी मतदान की खबरें मिली हो या किसी ने एक बार से ज्यादा मतदान किया हो। विपक्ष का कहना है कि आधार को मतदाता सूची से जोड़ने के बाद जो लोग नागरिक नहीं है वैसे भी मतदान कर सकेंगे। कुछ लोगों का कहना था कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं होता है। ऐसे लोग जो कि भारत के नागरिक नहीं है उनके पास भी आधार कार्ड हो सकता है। वहीं माकपा का कहना है कि इससे सरकार को यह पता लग जाएगा कि किस मतदाता ने किस को वोट दिया है और गुप्त मतदान का सिद्धांत ही समाप्त हो जाएगा। वहीं कुछ की दलील है कि एक से ज्यादा पहचान पत्र होने से लोगों को दिक्कतें और ज्यादा बढ़ेगी। वैसे भी जब कोई मतदान करने जाता है तो उससे मतदाता पत्र के जरिए पहचान कर ली जाती है। अतः आधार के जरिए लोगों की सूची तैयार कर उनके खिलाफ राजनीतिक कार्रवाई की जा सकती है। यह चुनावी आचार संहिता के खिलाफ है। अप्रैल 2019 में यूनीक आइडेंटी फिकेशन अथारटी आफ इंडिया (यूआईडीएआई) ने पुलिस शिकायत की थी कि हैदराबाद स्थित एक साफ्टवेयर कंपनी ने 7.82 लाख आधार धारकों के गैरकानूनी तरीके से विववरण हासिल किए थे। सरकार ने यह मामला एसआईटी के हवाले कर दिया। पर उसकी जांच में प्रगति की कोई खबर नहीं हैं।
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