रिपोर्टर डायरी

तीसरी लहर में बूस्टर डोज की बहस

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तीसरी लहर में बूस्टर डोज की बहस
विश्व स्वस्थ संगठन डब्ल्यूएचओ ने कोविड वैक्सीन ले चुके लोगों को बूस्टर डोज लगाए जाने की सोचने को कहा है। पर यह डोज तभी लगे जबकि इसके सकारात्मक परिणामों के प्रमाण मिल चुके हो। अभी तक के परिणाम यही बताते हैं कि वैक्सीन लगवाने के छह माह बाद उसका असर कम होने लगता है। हाल ही में 7 दिसंबर को डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञों के एक समूह ने कहा है कि उन्होंने इस बारे में जो 18 अध्ययन किए है उनके चौकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। दुनिया में कोरोना की चौथी लहर की आशंका के बीच दो वैक्सीन लगवा चुके लोगों को बूस्टर डोज दिए जाने की चर्चा शुरू हो गई है। विश्व स्वस्थ संगठन डब्ल्यूएचओ ने कोविड वैक्सीन ले चुके लोगों को बूस्टर डोज लगाए जाने की सोचने को कहा है। पर यह डोज तभी लगे जबकि इसके सकारात्मक परिणामों के प्रमाण मिल चुके हो। अभी तक के परिणाम यही बताते हैं कि वैक्सीन लगवाने के छह माह बाद उसका असर कम होने लगता है। हाल ही में 7 दिसंबर को डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञों के एक समूह ने कहा है कि उन्होंने इस बारे में जो 18 अध्ययन किए है उनके चौकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। जिन देशों में यह अध्ययन किए गए उनमें भारत शामिल नहीं है। 17 जून व 2 दिसंबर के बीच किए गए अध्ययनों के मुताबिक वे लोग जिन्होने फाइजर. माडरेना, एस्ट्राजेनेका (हमारी कोवीशील्ड), जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन लगवा रखी थी उनके अध्ययनों से पता चला कि तमाम मामले में वैक्सीन का प्रभाव लोगों में छह माह में घटता हुआ नजर आया। यह 50 साल से ज्यादा के लोगों में 9.7 फीसदी कम असर रहा व सभी आयु के लोगों में 25.4 फीसदी कम असरदारी साबित हुआ। इसलिए जरूरत पड़ने पर बूस्टर डोज देना पड़ सकता है। ओमीक्रॉन वेरिएंट के बारे में कुछ पता नहीं चला है। भारत के जाने-माने जनस्वस्थ फाउंडेशन के अध्यक्ष डा. श्रीनाथ रेड्डी के मुताबिक हमें यह देखना होगा कि किस आयु वर्ग में वैक्सीन का असर कितना कम हुआ है। खासतौर से 50, 60 व 70 साल से ज्यादा उम्र वालों में वैक्सीन का कितना प्रभाव कम हुआ है? हमें पता चला है कि 60 से ज्यादा आयु वाले लोगों में यह 18 फीसदी व 70 साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों में 25 फीसदी कम प्रभावशाली साबित हुआ है। वहीं राष्ट्रीय कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख डा. वीके पाल के मुताबिक हर वैक्सीन के असर घटने का असर अलग-अलग होता पाया गया है। जहां महाराष्ट्र, केरल व दिल्ली सरीखे राज्यों ने केंद्र से बूस्टर डोज दिए जाने की मांग करनी शुरू कर दी है। वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन व कुछ विशेषज्ञ भी बूस्टर डोज दिए जाने की मांग करने लगे है। कह रहे हैं कि हो रही देरी को लेकर हम सब बहुत परेशान हैं क्योंकि ब्रिटेन व कुछ और देशों में लोगों को वैक्सीन का तीसरा डोज भी दिया जाने लगा है। हमारा मानना है कि तीसरा डोज दिए जाने के पहले हमें इस बात के प्रमाण देखने है कि हमें वास्तव में ऐसा करने की जरुरत है। आईसीएमआर का कहना है कि ऐसा करने से सरकार को जरा भी देरी नहीं करनी चाहिए। दूसरा डोज देने के बाद बूस्टर डोज दिया जाना बहुत जरुरी हो जाता है। वहीं यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हम सबको प्राइमरी डोज जरुर दे दे। यह दोनों काम हमें साथ-साथ करने हैं। खासतौर पर स्वास्थ्यकर्मियों व डॉक्टरो को तो हमें हर हालत में तीसरा डोज जरुर दे देना चाहिए। वहीं नेशनल टैक्निकल एडवाजरी ग्रुप ऑफ इम्यूनाइजेशन, भारत व दुनिया भर से मिले डाटा की तीन मामलों में अध्ययन कर रही है। पहली यह कि वैक्सीन से एंटीबाडी टी सैल पर क्या असर रहता है। हर अलग अलग वैक्सीन पर इसका क्या असर होता है। इंजेक्शन लगाए जाने के कितनी देर बाद तक शरीर में वायरस से लड़ने की क्षमता रहती है। आईसीएमआर के मुताबिक देश के दो फीसदी जनता में इनफेक्शन हुआ जबकि डाक्टर व नर्स में इनफेक्शन का प्रतिशत सात फीसदी है। ये लोग शरीर के अंदर भी इनका असर देख रहे हैं। इसमें कुछ चीजों का काफी महत्व है। Read also बीमार व्यवस्था पर कोरोना की मार भारत में ज्यादातर लोगों को पहली डोज इसकी दूसरी लहर आने के पहले दी गई थी व उन्हें दूसरे डोज दूसरी लहर आने के बाद दी गई। वहीं तमाम लोगों को अप्रैल में डेल्टा के प्रभाव के कारण शरीर में एंटीबाडी के बनाने की क्षमता पैदा हुई जो कि तीसरे डोज की तरह ही है। इसका रोगों से लड़ने की क्षमता पर किस तरह से क्या असर पड़ेगा, इसका अभी अध्ययन किया जाएगा। अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया में एस्ट्राजेनिका का काफी अच्छा असर रहा। उसको लगवाने वाले को तीसरे डोज की जरुरत नहीं पड़ेगी। एस्ट्राजेनिका ओमीक्रान से निपटने में कामयाब साबित हुई है। इनमें हैदराबाद स्थित एक कंपनी ने कारबोवैक्स तैयार की है जो कि वायरस से रक्षा करने में काफी सफल साबित हो रही है। सीरम इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया नैनो पार्टिकल पर आधारित वैक्सीन बना रहे हैं जो वायरस से निपटने में कामयाब मानी जाती है। सीरम व अमेरिका की नोवावैक्स को आपातस्थिति में इस्तेमाल की इजाजत मिल गई है। वहीं भारत बायोटेक नाक के जरिए ली जाने वाली वैक्सीन बना रही है। जिसके जनवरी माह तक बाजार में आ जाने की संभावना है। इसके साथ पुणे के आरएनए आधारित जेनोवा बायोफार्मस्यूटिकल्स से सरकार ने 6 करोड़ डोज बनवाई थी। इस दिशा में अभी भी काम चल  रहा है। उधर अमेरिका में दक्षिण अफ्रीका से आने जाने पर लगी पाबंदी हटा ली है। ऐसा माना जा रहा है कि वहां ओमीक्रान की लहर पहले जैसी नहीं रही है। माना जा रहा है कि ओमीक्रान दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार डेल्टा वैरिएंट की तुलना में कम खतरनाक है। लोगों को बड़ी तादाद में अस्पतालों में भरती कराने की जरुरत नहीं होगी। ओमीक्रान के खतरे को देखते हुए वहा 3 जनवरी से 15 साल से 18 साल के बच्चों व हेल्थ केयर वर्करों के लिए बूस्टर डोज का टीका लगवाना जरुरी कर दिया है। साथ ही 60 साल और ज्यादा उम्र के बुजुर्ग को भी तीसरे डोज देने की बात कहीं गई है मगर गंभीर रोगों से पीड़ित लोगों को यह डोज लेने के पहले डाक्टरों की सलाह लेना जरुरी होगा।
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