मध्यप्रदेश के बाद जब कांग्रेस शासित राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार पर संकट आया और उसे गिराने की कोशिशे शुरू हुई तो लगता था कि एक और राज्य में हमें विधायको की खरीद-फरोख्त देखने को मिलेगी। मगर समय का फेर देखिए कि वहां का अंकगणित ऐसा हुआ कि सचिन पायलट को सरकार गिराने के लायक पर्याप्त विधायक ही नहीं मिले और अदालतबाजी का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि उसने सारे हालात ही बदल दिए। न तो सचिन पायलट बिना कुछ हासिल किए मतलब मुख्यमंत्री बने और न भाजपा के समर्थन से सरकार बनाना चाहते हैं और न ही अशोक गहलोत खेमे के कांग्रेसी विधायको पर मुख्यमंत्री की पकड़ कमजोर हो रही है।इसलिए अब राज्य में विधानसभा का सत्र बुलाने को लेकर अदालतबाजी चल रही है तो मैं इस खबर पर नजर लगाए हुए हूं कि वहां विधायको का कितना दाम लगाया जाता है। वहां जो कुछ हुआ है उसका परिणाम आने वाले दिनों में दिखाई पड़ेगा मगर वहां की घटना से भारतीय राजनीति में पिछले कुछ समय से इस्तेमाल किए जाने वाले ‘हार्स ट्रेडिंग’ शब्द को चर्चा में ला दिया है।
जब पढ़ते थे तब हार्स पॉवर या अश्व शक्ति शब्द ही पढ़ा व सुना था। मगर फिर हार्स ट्रेडिंग दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में खरीदी शब्द की तरह देश की राजनीति पर हावी हो गया। पहले तो लगता था कि सीबीआई ही प्रधानमंत्री व केंद्र सरकार की दरोगा होती है। मगर राजस्थान में जारी घटना ने साबित किया है कि इसके अलावा प्रवर्तन निदेशालय समेत कुछ अन्य जांच एजेंसियां भी प्रधानमंत्री व केंद्र सरकार के थाने के अधिकारियों के रूपों में है।केंद्र सरकार राज्य सरकार गिराने पर व गहलोत सरकार उसे बचाने पर आमदा नजर आती है। इस पूरे प्रकरण पर जो राजनीति हो रही है व जो कहा सुना जा रहा है व बहुत अहम हो गया है। हमारे नेता ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।
हाल ही में राजस्थान में चल रही पार्टी विरोधी घटनाओं पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने गजब बयान दिया। कांग्रेस राजस्थान में कब होश में आएगी? क्या हम तब जागेंगे, जब घोड़े अस्तबल से निकल जाएंगे। जाहिर है वे उनके दल-बदल कर सरकार गिराने की आशंका से परेशान थे। इस पर घोड़ों पर चर्चा हुई। भाजपा की एक नेशनल सोशल मीडिया प्रभारी प्रीति गांधी ने तंज कस्ते हुए कहा, ‘ लेकिन घोड़े कहाँ हैं ?? आपके अस्तबल में केवल गधे हैं !!.’
इस सब पर मुझे राहुल गांधी के पिता की बेबाकी याद हो आई। मुझे दिसंबर 1988 में काग्रेस शताब्दी वर्ष के मौके पर मुंबई में कांग्रेस अधिवेशन में राजीव गांधी का दिया वह भाषण याद हो आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस दलालो की पार्टी है। हम जो एक रूपया राज्यो में भेजते हैं इसमें सिर्फ 10 पैसे ही पहुंच पाते हैं।
जो हो, मुझे जनप्रतिनिधियो के लिए दलाल या घोड़ा शब्द इस्तेमाल किया जाना अच्छा नहीं लगता है। इसकी शुरुआत भारत में नहीं बल्कि अमेरिका में हुई थी। 19वीं शताब्दी में जब वहा कारे नहीं थी तो वहां लोग यात्रा करने के लिए घोड़ा का इस्तेमाल करते थे। बेचने वाले व्यापारी अपने घोड़ा की कीमत बढ़ाने के लिए उनके बारे में बड़े-बड़े दावे कर पैसे कम न करने पर अड़ जाते थे। उनके लिए हार्स ट्रेडिंग शब्द इस्तेमाल किए जाने लगा। हालांकि बाद में काउ ट्रेडिंग शब्द भी इस खरीद-फरोख्त के लिए इस्तेमाल होने लगा।
मै घोड़ो व कुत्तो की बहुत इज्जत करता हूं। उन्हें बहुत ईमानदार व स्वामी भक्त मानता हूं। इसलिए जब किसी को कुत्ता कह कर अपशब्द कहते हैं तो मुझे बहुत बुरा लगता है। घोड़े का नाम लेते ही मेरे दिमाग में राणा प्रताप, रानी लक्ष्मी बाई के घोड़ो की शक्ल याद हो आती है जिन्होंने अपनी ताकत व स्वामीभक्त के रिकार्ड बनाए थे। चेतक का तो कहना ही क्या। बड़े हो कर डाकू खड़कसिंह के घोडों पर आधारित कहानी पढ़ी थी।
पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं के लिए घोड़ा शब्द का इस्तेमाल किया जाना मुझे अच्छा नहीं लगता है। यह बात अलग है कि हम लोग अक्सर गधे को घोड़ा समझ लेते हैं। बचपन में यह कहावत भी सुनी थी कि अरब में सब घोड़े नहीं होते हैं। हमें यह कहावत भूलते हुए घोड़ो के प्रति अपना सम्मान बनाए रखना चाहिए। एक बार मैं किसी शादी में घोड़े पर बैठे दूल्हे के साथ चल रहा था। उसके आसपास उसके कुछ साथी धुत होकर नाच रहे थे। घोड़े वाले ने उन्हें डांटते हुए वहां से दूर जाने को कहा। उसका कहना था कि यह घोड़ा है आदमी नहीं जोकि तुम शरातियो की सारी बदतमीजी सह लेगा। ऐसी लात मारेगा कि तुम जिदंगी भर याद रखोगे।
चूकि हमारे विद्वान जन प्रतिनिधि एक सम्मान घोड़े की तरह अपनी कीमत खुद तय करते हैं। अतः उनकी खरीद-फरोख्त के लिए हार्स ट्रेडिंग शब्द इस्तेमाल किया जाने लगा होगा। हमारे कानपुर में भगवती प्रसाद दीक्षित नामक एक निर्दलीय नेता हुआ करते थे। वे घोड़े पर राबिनहुड की तरह झंडा लेकर शहर में निकलते। दिवंगत इंदिरा गांधी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ते व रास्ते में वह कहीं रूकते तो उनके चारो और भीड़ जुट जाती थी व उनका दरबार शुरू हो जाता था। वे जनता के सवालो का जवाब दिया करते थे।
एक बार किसी ने उनसे पूछा कि पंडितजी अगर आप जीत गए तो अपना घोड़ा कहां बांधेगे? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि जिस संसद में गंधे बांधे जाते हैं वहां मेरा एक घोड़ा भी बंध जाएगा। मुझे लगता है कि कपिल सिब्बल ने कभी उनकी इसे अदालत में भी महसूस किया होगा। जब नेता आपसी बातचीत में अपने सांसदों तक को घोड़ा ,गधा मान रहे हो तो वे अकेले में उन पर कैसी लात चलाते होंगे। इसकी कल्पना करते हुए नेताओं के पार्टी छोड़ने के हाव-भाव का आकलन किया जा सकता है।
जनप्रतिनिधी को घोड़ा मानना ठिक नहीं
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