85 वर्षीय परमाणु वैज्ञानिक को देश के परमाणु बम के जनक या पिता के रुप में माना जाता था। तब उनका कहना था कि उन्होंने पाकिस्तान को भारत के बराबर ला खड़ा करने के लिए परमाणु बम विकसित किया। ...कोरोना काल में खान को काविड हो गया। उसे रावलपिंडी के सैनिक अस्पताल में भर्ती करवाया गया। ठीक हो जाने पर रिहा कर दिया गया। मगर वह अपने घर आने के बाद मर गया। सोचे जिस वैज्ञानिक ने लाखों निर्दोष लोगों को मार देने के लिए परमाणु बम बनाया था उसे एक छोटे से वायरस ने मार दिया। Scientist Dr. Qadir Khan
पाकिस्तान अजीबो गरीब देश है। कभी वह किसी को हीरो बनाता है लेकिन फिर वह उसे जीरो बनाते भी देर नहीं करता है। वह अपने शासकों से सत्ता छीन कर उन्हें जेल भेजने से लेकर निर्वासित तक करने में जरा भी शर्म महसूस नहीं करता है। उसने अपने प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को फांसी पर चढ़ा दिया था। जब हाल ही में उसके जाने माने परमाणु वैज्ञानिक डा अब्दुल कादिर खान की मृत्यु की खबर पढ़ी तो यह बात याद हो आई कि वे भारतीय मूल के थे व भोपाल में उनका जन्म हुआ था। मगर देश के विभाजन के समय उन्होंने पाकिस्तान जाना पसंद किया।
इस 85 वर्षीय परमाणु वैज्ञानिक को देश के परमाणु बम के जनक या पिता के रुप में माना जाता था। तब उनका कहना था कि उन्होंने पाकिस्तान को भारत के बराबर ला खड़ा करने के लिए परमाणु बम विकसित किया। हालांकि उनके कारण पूरी दुनिया में पाकिस्तान की थू-थू हुई। 1936 में भोपाल में जन्मे इस वैज्ञानिक की अपने देश में बहुत इज्जत थी व उन्हें वहां हीरो की तरह माना जाता था। पाकिस्तान ने उन्हें बेशकीमती अवार्ड निशाने पाकिस्तान से सम्मानित किया। उन्हें वहां का मोहसिन-ए-पाकिस्तान अवार्ड भी मिला। मगर दुनिया में उन्हें परमाणु तस्कर व बरबादी के विक्रेता के रुप में जाना जाने लगा।
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डा. खान धातु विज्ञान की शिक्षा हासिल करने के लिए व आगे की पढ़ाई के लिए विदेश गए। उन्होंने नीदरलैंड व बैल्जियम सरीखे देशों में पढ़ाई की और परमाणु विज्ञान में रूचि दिखाने के साथ उसकी पढ़ाई करते हुए नीदरलैंड के एक परमाणु विज्ञान शास्त्री के संपर्क में आए। उससे तमाम बारीकियां समझी। वे बहुत होशियार थे। उन दिनों छोटे बेहतर कैमरे नहीं हुआ करते थे। इसलिए उन्होंने परमाणु ईधन को परिष्कृत करने वाली सेंटी फ्यूगल तकनीकी की जानकारी हासिल की। साथ ही वहां लगी परमाणु भट्टी की शक्ल याद कर घर आकर याददास्त के जरिए पेंसिल से उसकी ड्राइंग तैयार की व अपने देश उसे भेज दिया। Scientist Dr Qadir Khan उनके खिलाफ नीदरलैंड की सरकार ने आपराधिक मामला दर्ज किया व उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया। वे भागकर पाकिस्तान आ गए व तत्कालीन प्रधानमंत्री भुट्टो के पसंदीदा बन गए जो कि हर कीमत पर परमाणु बम हासिल करना चाहते थे। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर यह कहा था हम पाकिस्तानी घास खा कर गुजारा कर लेंगे मगर परमाणु बम हासिल करके रहेंगे। उन्होंने यूरेनियम को परिष्कृत कर परमाणु बम बनाया। जब भारत ने दोबारा परमाणु बम का परीक्षण किया तो उन्होंने भी पाकिस्तान में परमाणु बम का परीक्षण किया।Read also बीएसएफ का दायरा बढ़ाने से क्या होगा?
इसके बाद उन्होंने परमाणु बम तैयार करने के लिए लीबिया, उत्तर कोरिया, ईरान आदि देशों की मदद की। फरवरी 2004 में अमरीका ने पाकिस्तान के तत्कालीन सैनिक शासक परवेज मुशर्रफ को बुलाकर उनके द्वारा लीबिया, ईरान, उत्तरी कोरिया जैसे देशों को सेंट्रीफयूज तकनीक व बम बनाने के लिए पुर्जे भेजा जाने के बारे में छानबीन की। इसके बाद उन्होंने डा. खान की भूमिका को सबसे अधिक संदिग्ध माना। इसके बाद डा. खान ने अपने को जैसे तैसे बचाया। परवेज मुशर्रफ ने उन्हें माफ तो कर दिया पर उन्हें घर में ही कैद रहने की सजा दी गई। वे पाकिस्तान में हीरो बन गए। दुकानों पर उनकी तस्वीरे बिकने लगी व अमेरिका व पश्चिमी देश उनकी हरकतों से घबरा कर उन पर नजर रखने लगे। पाकिस्तान ने उनकी सुरक्षा बढ़ा दी। पाकिस्तान ने उसके साथ ही अपने परमाणु ऊर्जा आयेाग का अध्यक्ष बनाकर अपना परमाणु बम बनाने की जिम्मेदारी दे दी। परवेज मुशर्रफ ने उन्हें 2001 में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। बाद में उन्हें खान रिसर्च लेबोरेटी का सलाहकार बनाया गया। डा. खान की पाकिस्तान में हैसियत बढ़ती गई मगर उन्होंने तब देश की परमाणु तकनीक व पुर्जे निर्यात कर मोटी कमाई की। पूरी दुनिया में उसे एक गुंडा वैज्ञानिक माना जाता था। उसने जाने माने भारतीय पत्रकार कुलदीप नैय्यर को पाकिस्तान बुलाकार इंटरव्यू दिया व दावा किया कि पाकिस्तान के पास अनेक परमाणु बम है और अमेरिका को पता है कि सीआईए का यह कहना सही है कि हमारे पास अनेक परमाणु बम है। उसे हमारी क्षमता पर विश्वास नहीं था व वे कहते थे कि हमारी क्षमता व योग्यता इतनी नहीं है कि हम परमाणु बम बना सके। Scientist Dr Qadir KhanRead also दो बच्चों की नीति जरुरी
जब कुलदीप नैय्यर ने उनसे कहा कि पाकिस्तान ने इस बात का खुलासा क्यों नहीं किया तो उन्होंने कहा कि अगर तब ऐसा करता तो अमेरिका हमें दी जाने वाली मदद पर रोक लगा देता। अगस्त 2008 में राष्ट्रपति मुशर्रफ सत्ता से उतरने वाले थे तो खान ने इस्लामाबाद हाईकोर्ट में अपनी रिहाई की याचिका डाली तब तक पीपीपी की सरकार सत्ता में आ चुकी थी। उसने राजनीतिक दबाव के चलते 2009 में उसे रिहा कर दिया। इसके पहले उसने यह गुप्त समझौता किया कि वह कभी इस तरह के खुलासे नहीं करेगा। बाद में विकीलीक्स में भी उनकी हरकतों का खुलासा हुआ। पाकिस्तान के आंतरिक सचिव कमल शाह ने अमेरिकी दूतावास से कहा कि उसे अपनी हद में रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त ताकत है। बहरहाल हाऊस अरेस्ट से रिहा होते ही खान ने अपने घर पर प्रेस कान्फ्रेंस करने के बाद एक राजनीतिक दल बनाने का फैसला किया। उसने तहरीके तहस्सुम नामक पार्टी बनायी। काफी चर्चित होने के बावजूद चुनाव में उसके सभी उम्मीदवार हार गए। 2019 में खान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उसे अपने लोगों से मिलने नहीं दिया जा रहा है। अदालत ने उससे उन लोगों के नाम की सूची मांगी व कहा कि खान पाकिस्तान की अच्छी तरह से देखभाल की जानी चाहिए। कोरोना काल में खान को काविड हो गया। उसे रावलपिंडी के सैनिक अस्पताल में भर्ती करवाया गया। ठीक हो जाने पर रिहा कर दिया गया। मगर वह अपने घर आने के बाद मर गया। सोचे जिस वैज्ञानिक ने लाखों निर्दोष लोगों को मार देने के लिए परमाणु बम बनाया था उसे एक छोटे से वायरस ने मार दिया।
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