आज जब कोरोना काल के दौरान देश के जाने माने उद्योगपति जैसे अंबानी, अदानी फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार आदि के बारे में पढ़ता हूं तो मुझे बचपन की एक कहावत याद हो आती है। वह यह हुआ करती थी कि ‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर’ इसका मतलब था कि इंसान को खजूर के पेड़ की तरह बड़ा नहीं होना चाहिए जो कि लंबा ऊंचा तो बहुत होता है मगर उसमें पक्षी जैसे के लिए डालिया नहीं होती है व फल इतनी ऊंचाई पर लगते हैं कि उनको तोड़ पाना भी इंसान के लिए मुश्किल हो जाता है।
जब मैंने कोरोना काल के दौरान सोनू सूद द्वारा अपने घरों से दूर दराज फंसे लोगों को घर तक पहुंचाने के लिए यातायात व परिवहन की सुविधाएं उपलब्ध कराने की खबर सुनी तो मुझे वह कहावत याद आ गई। मैंने उपरोक्त तथाकथित रईसों द्वारा इस महामारी के कष्ट के दौरान किसी को पूड़ी सब्जी तक बांटने व इलाज का प्रबंध किए जाने की एक खबर तक नहीं पड़ी। ऐसे में एकमात्र नाम सोनू सूद का है। इस 47 वर्षीय फिल्म कलाकार ने कमाल कर दिखाया है। सोनू सूद का जन्म पंजाब के मोगा शहर में हुआ था। उनके पिता शांति प्रसाद सूद एक व्यापारी व मां अध्यापिका थी। उनका बचपन पंजाब में ही बीता। फिर उन्होंने नागपुर से इलेक्ट्रानिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। शुरुआत माडलिंग से हुई थी। उन्होंने . एयरटेल आदि कंपनियों में बचपन में माडल का काम किया।
सोनू सूद ने अपनी पहली बार एक्टिंग तमिल फिल्म से शुरु की। फिर उन्होंने तेलगू व कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया। उन्हें 2002 में शहीदे आजम फिल्म से बालीवुड में एक्टिंग शुरु की। ‘आशिक बनाया आपने’ फिल्म के कारण प्रसिद्ध हुए। उन्होंने उर्दू व चीनी फिल्मों में भी काम किया। वे कई बार अपनी संपत्तियों को लेकर विवादों में फंसे मगर सारे विवाद शांत हो गए। उनका एक बेटा व एक बेटी है।
सोनू सूद ने दान और मदद करने के क्षेत्र में तमाम झंडे गाड़े। उसने जुहू स्थित अपने होटालों में कोरोना मरीजों की देखभाल में जुटे डाक्टरों व नर्सों के रुकने का इंतजाम किया। रमजान के दौरान मुंबई में रह रहे 25000 बाहर से आए गरीब लोगों के भोजन का इंतजाम किया। उत्तर भारत से होने के बावजूद व दक्षिण भारत से लेकर कश्मीर तक के लोगों की मदद करने में पीछे नहीं रहते।कर्नाटक जाने की कोशिश में दर-दर की ठोकरे खा रहे 350 प्रवासी मजदूरों के लिए 10 विशेष बसों का प्रबंध किया। मुंबई से हर रोज कोरोना के शिखर पर होने के कारण लाकडाउन के दौरान रोज वहां से विशेष ट्रेने चले जाने की खबरें सुनकर स्टेशनों पर भीड़ लगाकर अपनी बारी की बांट जोहने वाले प्रवासी मजदूरों की तस्वीरें व खबरें सूचना माध्यमों पर जब छायी हुई थी तो उन्होंने निसर्ग तूफान के दौरान, उससे प्रभावित 28,000 लोगों के लिए सहायता उपलब्ध करवायी।
उन्होंने कोचीन में पड़ रही उड़ीसा की 177 छात्राओं को वहां से उनके घर तक पहुंचाने के लिए विशेष विमान का प्रबंध करवाया। लोगों की हर तरह की सहायता देने के लिए उन्होंने अपना विशेष टोल फ्री नंबर जारी किया। मुंबई में धक्के खाते प्रवासी मजदूरों को बिहार तक भेजने के लिए उन्होंने विशेष बसें उपलब्ध करवायी। जब ट्रेन रद्द हो जाने के कारण सैकड़ों की तादाद में लोग विक्टोरिया टर्मिनल स्टेशन के बाहर धक्के खा रहे थे तो सोनू सूद ने न केवल उनको घर भेजने का प्रबंध करवाया बल्कि उनके रुकने के लिए पास के स्कूल में ठहरने व खाने का इंतजाम भी किया।
कुछ लोगों का कहना था कि उन पर पूरा भरोसा है अगर सरकार कुछ न भी करे तो सोनू सूद हमारे लिए कुछ जरुर करेंगे। वह उनके लिए एक मसीहा के रुप में उभरे। उनका कहना था कि शुरु में मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था पर मेरे मन मे सिर्फ लोगों को उनके घर तक भेजने की भावना जोर मार रही थी। मैं यह नहीं चाहता था कि प्रवासी मजदूर परेशान होकर भूखे प्यासे ही पैदल अपने घरों के लिए रवाना हो जाए।
उन्होंने यह सारा काम अपनी दिवंगत मां सरोज के नाम पर स्थापित ट्रस्ट प्रोफेसर सरोज सूद ट्रस्ट की ओर से किया। वे बताते हैं कि उन्होंने अपनी अध्यापिका मां को गरीब लोगों की मदद करते व अपने व्यापारी पिता को मोगा में उनके लिए लंगर आयोजित कर खाना खिलाते हुए बचपन में देखा था। आपकी सफलता तभी सफल होती है जबकि आप दूसरों की मदद करे। वे व उनके दोस्त नीति गोयल से तब मिलकर करीब 50,000 प्रवासी मजदूरों को घर भेजने व कोविड रोगियों की देखभाल व मदद कर रहे हैं।
उनका कहना है कि उनका लक्ष्य एक लाख लोगों को अपने घरों तक पहुंचाने का है। जाने माने अभिनेता बोमन ईरानी के मुताबिक वे सोनू सूद के काम से इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि वे भी उनकी मदद करने के लिए उनके साथ आ गए। जब वे किसी को परेशानी की खबर पढ़ते तो अपनी हथेली अपने सीने पर मार कर कहते कि तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारे साथ हूं। वे उसकी मदद भी करते।
हम में से ज्यादातर लोग जज्बाती होते हैं मगर उससे काम नहीं चलता है। आदमी का जज्बाती होकर कुछ कर दिखाना भी जरुरी होता है। वे एक अक्लमंद आदमी भी है जिनके पास लोगों की मदद करने की योजना है व वे ऐसा कर सके भगवान ने उन्हें इस काबिल भी बनाया है। वे आर्थिक रुप से सक्षम भी है। यहां यह याद दिलाना जरुरी हो जाता है कि उन्होंने खाना चाहिए संगठन के साथ मिलकर लाकडाउन के शुरु होने पर हर रोज 45,000 लोगों को खाना उपलब्ध करवाया।
उन्होंने हजारों लोगों को राशन की किटस भी बांटी बल्कि हजारों की तादाद में भूखे प्यासे पालतू जानवरों को भरपेट खाना खिलाने का प्रबंध किया। वे बताते हैं कि एक बार वे स्टेशन के बाहर घर जाने के लिए ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे लोगों को खाना देने गए तो एक बच्चे ने कहा कि हमें घर जाना है हमें आपका खाना नहीं घर जाने का प्रबंध चाहिए। उन्होंने सफलतापूर्वक वह काम कर दिखाया। जो हमारी केंद्र व राज्य सरकारें ने तमाम धन बल व हजारों सरकारी कर्मचारियों के होने के बावजूद कुछ नहीं कर पा रही थी। सच कहे तो आज उनकी छवि एक मसीहा जैसी हो गई है।
सोनू सूद से सीखों अदानी, अंबानी!
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