इन्हें टोटम स्तंभ कहा जाता है। ये स्तंभ 18 वीं सदी तक के पुराने हैं। इनकी खास बात यह है कि लकड़ी से बनाए गए ये स्तंभ काफी सुंदर है और आज भी इनकी स्थिति बहुत अच्छी है न तो वे सड़े हैं और न ही उनमें दीमक लगी है। यह अपने आप में वहां के ऐतिहासिक दस्तावेज है। जैसे कभी हमारे देश में शिलालेखों या ताम्रपत्तों पर लोगों के जीवन व कार्यों जानकारी लिखी जाती थी। यह लगभग वैसे ही है।
कनाडा में आप कहीं भी घूमन जाएं तो समुद्र किनारों से लेकर बड़े पार्क, मछलीघरों, कनाट प्लेस सरीखी जगहों पर बड़े—बड़े पेड़ों के खंबे लगे होते हैं जो कि 10-15 फुट ऊँचे आकार के होते हैं। इनमें मानवीय चेहरों से लेकर नक्काशी करने के साथ ही वहां के लोगों की प्राचीन मूल भाषा में कुछ इबारतें भी लिखी होती हैं। इन्हें टोटम स्तंभ कहा जाता है। यह स्तंभ 18 वीं सदी तक के पुराने हैं। इनकी खास बात यह है कि लकड़ी से बनाए गए ये स्तंभ काफी सुंदर है और आज भी इनकी स्थिति बहुत अच्छी है न तो वे सड़े हैं और न ही उनमें दीमक लगी है। यह अपने आप में वहां के ऐतिहासिक दस्तावेज है। जैसे कभी हमारे देश में शिलालेखों या ताम्रपत्तों पर लोगों के जीवन व कार्यों जानकारी लिखी जाती थी। यह लगभग वैसे ही है।
स्थानीय प्राचीन मूल के लोगों की भाषा में अंकित सूत्रों के साथ -साथ उन पर कुछ आश्रित चिन्ह भी बनाए गए हैं। बड़ी संख्या में टोटम स्तंभ अमेरिका के अलास्का में भी मिलते हैं। इसमें तत्कालीन लोगों की संस्कृति, पारिवारिक विवरण दिया हुआ है। आमतौर पर इन्हें किसी जाने माने स्थानीय व्यक्तियों, तत्कालीन जमींदार की वंशावली माना जाता है। वहां के सालिश समुदाय के लागों को अपनी वंशावली व परिवार के इतिहास को याद दिलवाने के लिए उस समय कागज नहीं बने थे। स्थानीय लोग लकड़ी के स्तंभों पर उन्हें अंकित करवाते थे। उसे उनके घर या गांव के बाहर ही लगा दिया जाता था।
लोगों का स्वागत करने से लेकर उन्हें अपमानित करने तक के लिए ये स्तंभ लगवाए जाते थे। यह तो लकड़ी में लिखे गए शिलालेख थे। इनमें जानवरों व ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण होता था। पहले अक्सर मकान में छज्जे की छत को बीच में रोकने के लिए भी इन्हे लगाया जाता था। इनकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है। यह अक्सर मौसम के उतार-चढ़ाव भी झेल लेने के कारण खुले आकाश में दशकों से अच्छी हालत में है। चूंकि लोहे व इस्पात की खोज काफी बाद में हुई है अथवा 18वीं शताब्दी में टोटम स्तंभ को पत्थरों के औजारों या उदबिलाव के नुकीले दांतों से कुरेदकर बनाया गया है। ऐसा करने में काफी समय लगता था। यह बहुत मेहनत वाला काम होता था। अतः इन्हें ज्यादातर तत्कालीन पैसेवाले या किसी बड़े ओहदेदार लोग ही बनवाते थे।
लोहे की खोज व उनसे हथियार बनने के बाद इन स्तंभों पर गहरी व पतली नक्काशी की जाने लगी। आमतौर पर किसी गांव में जैसे पैसे वाले लोग गांव व अपने घर के बाहर यह स्तंभ लगा देते थे। इसलिए 19 वीं शताब्दी के पहले की तुलना में कहीं ज्यादा संख्या में इन स्तंभों का निर्माण किया गया। सबसे पहले हैदा समुदाय के लोगों ने इन स्तंभों को बनाना शुरु किया। बताते हैं कि 19 वीं शताब्दी में अमेरिका व योरोप से बहुत बड़ी संख्या में लोग यहां आए व उनके साथ ही लोहे व स्टील के बने हथियार यहां आने लगे।
इससे पहले 1830 में फर अदबिलाव के बालों वाली खालों तथा खनिज पदार्थों की खेाज के कारण यहां के लोगों के पास बहुत पैसा भी आया था। वे लोग अपने खानदान व परिवार की जानकारी स्तंभों पर लिखवाने लगे। तब इसे किसी की हैसियत का प्रतीक माना जाता। ईसाई मिशनरी के यहां आने के पहले पुराने जनजातीय लोगों के अपने स्थानीय धर्म होते थे। इसाई धर्म के वहां फैलने के कारण स्थानीय धर्म समाप्त होने लगे। टोटम स्तंभ तैयार करने की परंपरा भी ठंडी पड़ती गई।
इसके साथ ही लोगों के अंदर शिक्षा का भी विकास हुआ। इसका फायदा यह हुआ कि 1938 में अमेरिका में राज्य वन सेवाओं का विकास हुआ। उसमें शामिल लोगों ने इनका संरक्षण करना शुरु कर दिया। शहर में यह स्तंभ जगह-जगह पर नजर आने लगे। हर स्तंभ में उकेरे गए चित्रों में कोई न कोई कहानी छिपी हुई है। इनके जरिए खानदानों या जनजातियों की पहचान की जा सकती है। इसमें पशु पक्षियों के जो चित्र उभारे गए है उनमें गिद्ध के दो दांतों वाले उदबिलाव के चित्र प्रमुख है। कुछ स्तंभों में साल भी जोड़ा गया है। शब्दों की जगह तस्वीरों व चित्रों के जरिए चीजें लिखी गई है।
कुछ स्तंभों पर तो लोगों के पैसे गरीबी कर्ज आदि का चित्रण भी किया गया है। कनाडा में यह स्तंभ ज्यादा नक्काशीदार है जबकि अमेरिका के ऐसे स्तंभ ज्यादातर खंबों जैसे है व उन्हें वहां के शमशान सरीखे इलाकों में गाड़ा गया है। इनमें उस समय होने वाले अपराधों जैसे लड़ाई झगड़ों, मारपीट, हत्याएं आदि का जिक्र है। ऐसा माना जाता है कि ये स्तंभ छह प्रकार के होते हैं। गांव के बाहर घरों के अंदर लगाए जाने में लोगों के सम्मान से लेकर उन्हें अपमानित करने के लिए ये स्तंभ तैयार करवाए जाते थे। घर के बाहर लगाए जाने वाले खंबों में उस घर के मालिकों, खानदान का विस्तार से विवरण होता है। उसमें परिवार को सुरक्षा प्रदान करने के लिए खंबे पर सबसे ऊपर एक चौकीदार की तस्वीर उकेरी जाती है। वहां के घरों के निर्माण में भी इनका काफी इस्तेमाल किया जाता है।
घर के अंदर बीच की छत की तल्ली को संभालने के लिए इन्हें कभी घर के अंदर खड़ा किया जाता था। इनकी लंबाई 7-10 फुट तक होती है। इनको शमशानों में किसी मृतक की कब्र के पास उसकी जानकारी देने के लिए भी लगाया जाता है। इसे मृतक के बारे में विस्तृत जानकारी, समाज में उसकी हैसियत व उसके मरने के बाद समाज या संस्था में उस जगह लेने वाले का नाम भी कूरेदा जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की मौत के बाद उनकी याद में ऐसे तमाम खंबे लगाए गए। बाद में उन्हें अलास्का ले जाकर नए सिरे से लगा दिया गया। इसमें दो वर्गो के बीच चली आ रही दुश्मनी के अलावा अमेरिकी लोगों के सुखद भविष्य की भी कामना की गई।
दो वर्गों के बीच यह टकराव 1869 में तब शुरु हुआ जब अमेरिका ने अपने अधिकार में अलास्का इलाके को लेने के बाद वहां कर की वसूली करना शुरु कर दी। कुछ बड़े अमरीकी नेताओं की बुराई व गलत बातें यादे दिलाने के लिए भी यह खंबे लगवाए जाते रहे। जब कोई कर्ज नहीं चुका पाता तो टोटम खंबों पर उनका नाम ब्यौरा लिखवा कर आम जनता के बीच उसे अपमानित किया जाता। आज यह काम पोस्टर द्वारा या सोशल मीडिया द्वारा किया जाता है।
लकड़ी के लंबे खंबे, कनाड़ा-अमेरिका के शिलालेख!
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