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भारत किसी का पिछलग्गू नहीं

रुस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव ने बर्र के छत्ते को छेड़ दिया है। उन्होंने रुस की अंतरराष्ट्रीय राजनीति परिषद को संबोधित करते हुए ऐसा कुछ कह दिया, जो रुस के किसी नेता या राजनयिक या विद्वान ने अब तक नहीं कहा था। उन्होंने कहा कि अमेरिका अपने मातहत चीन और रुस को करना चाहता है। वह सारे संसार पर अपनी दादागीरी जमाना चाहता है। विश्व-राजनीति को वह एकध्रुवीय बनाना चाहता है। इसीलिए वह भारत की पीठ ठोक रहा है और उसने भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका का चौगुटा खड़ा कर दिया है।

उसने प्रशांत महासागर क्षेत्र को ‘भारत-प्रशांत’ का नाम देकर कोशिश की है कि भारत-चीन मुठभेड़ होती रहे। उसकी कोशिश है कि रुस के साथ भारत के जो परंपरागत मैत्री-संबंध हैं, वे भी शिथिल हो जाएं। हो सकता है कि ट्रंप-प्रशासन की इसी नीति को आगे बढ़ाते हुए बाइडेन-प्रशासन रुस के एस-400 मिसाइल प्रक्षेपास्त्रों की भारतीय खरीद का भी विरोध करे। ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में जाते-जाते भारत के साथ ‘बेका’ नामक सामरिक समझौता भी कर डाला है, जिसके अंतर्गत दोनों देश गुप्तचर सूचनाओं का भी आदान-प्रदान करेंगे। रुसी विदेश मंत्री के उक्त संदेह निराधार नहीं हैं। उनको इस तथ्य ने भी मजबूती प्रदान की है कि इजराइल, सउदी अरब और यूएई, जो कि अमेरिका के पक्के समर्थक हैं, आजकल भारत उनके भी काफी करीब होता जा रहा है।

भारत के सेनापति आजकल खाड़ी देशों की यात्रा पर गए हुए हैं। लेकिन रुसी विदेश मंत्री क्या यह भूल गए कि रुस से अपने संबंधों को महत्व देने में भारत ने कभी कोताही नहीं की। पिछले दिनों भारत के रक्षामंत्री और विदेश मंत्री मास्को गए थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और व्लादिमीर पूतिन के बीच सीधा संवाद जारी है।यह ठीक है कि इस वक्त भारत और चीन के बीच तनाव कायम है। उसका फायदा कुछ हद तक अमेरिका जरुर उठा रहा है लेकिन भारत का चरित्र ही ऐसा है कि वह किसी का पिछलग्गू नहीं बन सकता है।

By वेद प्रताप वैदिक

हिंदी के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले पत्रकार। हिंदी के लिए आंदोलन करने और अंग्रेजी के मठों और गढ़ों में उसे उसका सम्मान दिलाने, स्थापित करने वाले वाले अग्रणी पत्रकार। लेखन और अनुभव इतना व्यापक कि विचार की हिंदी पत्रकारिता के पर्याय बन गए। कन्नड़ भाषी एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने उन्हें भी हिंदी सिखाने की जिम्मेदारी डॉक्टर वैदिक ने निभाई। डॉक्टर वैदिक ने हिंदी को साहित्य, समाज और हिंदी पट्टी की राजनीति की भाषा से निकाल कर राजनय और कूटनीति की भाषा भी बनाई। ‘नई दुनिया’ इंदौर से पत्रकारिता की शुरुआत और फिर दिल्ली में ‘नवभारत टाइम्स’ से लेकर ‘भाषा’ के संपादक तक का बेमिसाल सफर।

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