बेबाक विचार

आम आदमी पार्टी से किसको खतरा?

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आम आदमी पार्टी से किसको खतरा?
आप के चुनाव लड़ने और पैर फैलाने का एकमात्र नुकसान कांग्रेस को है। वह भाजपा के वोट पर असर नहीं डाल पाती है और क्षेत्रीय पार्टियों के वोट का नुकसान भी आप की वजह से नहीं होता है। जिस तरह से आप और तृणमूल ने गोवा में कांग्रेस का खेल बिगाड़ा वैसे ही आप ने उत्तराखंड में कांग्रेस का खेल बिगाड़ा। पंजाब में जहां आम आदमी पार्टी जीती है वहां भी उसने कांग्रेस का वोट ज्यादा खाया है। कांग्रेस को 2017 के चुनाव में 38.5 फीसदी वोट मिले थे और आप को 23.7 फीसदी वोट मिला था। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी यानी आप से किसको खतरा है? किस पार्टी के लिए आप ने सबसे बड़ी चुनौती पैदा की है? क्या प्रादेशिक पार्टियों को आप से डरना चाहिए या उसकी चिंता करनी चाहिए? दिल्ली के बाद पंजाब में आप की जीत ने ये सवाल पैदा किए हैं। लेकिन इस पार्टी की राजनीति का सिर्फ दो राज्यों के नतीजों से आकलन नहीं किया जा सकता है। अगर पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में से एक पंजाब में आप को जीत मिली को बाकी चार राज्यों में पार्टी बुरी तरह से हारी भी। तभी भाजपा की नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने मजाक उड़ाते हुए कहा कि चार राज्यों में जिस पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई, उसके नेता देश भर में लहर होने की बात कर रहे हैं। यह भी आप के नतीजों को देखने का एक नजरिया है। चाहे स्मृति ईरानी के नजरिए से देखें या देश भर में लहर होने का दावा करने वाले राघव चड्ढा और मनीष सिसोदिया के नजरिए से देखें, उससे एक बाद साफ होती है कि आप की राजनीति से खतरा सिर्फ कांग्रेस को है। बाकी किसी पार्टी को आप की राजनीति से कोई फर्क नहीं पड़ता है। अभी जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए उनके नतीजों में भी यही ट्रेंड दिख रहा है और इससे पहले पार्टी जहां भी चुनाव लड़ी वहां यही ट्रेंड देखने को मिला। सो, पहला निष्कर्ष तो यह है कि आप के लड़ने से कांग्रेस के वोट बंटते हैं और भाजपा को उसका फायदा होता है। दूसरा निष्कर्ष यह भी है कि आम आदमी पार्टी चाहे जितना जोर लगा ले लेकिन वह प्रादेशिक पार्टियों के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पाती है। Punjab election Channi Kejriwal Read also आम आदमी पार्टी से किसको खतरा? मिसाल के तौर पर आम आदमी पार्टी ने पूरी ताकत लगा कर पंजाब के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में भी चुनाव लड़ा था। उत्तराखंड में कर्नल अजय कोठियाल को और गोवा में सामाजिक कार्यकर्ता अमित पालेकर को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया गया था। ये दोनों नेता चुनाव हार गए। गोवा में आम आदमी पार्टी को 6.77 फीसदी वोट मिला और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 5.21 फीसदी वोट मिला। इन दोनों पार्टियों का कुल वोट 12 फीसदी रहा। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी को 23.46 फीसदी वोट मिला, जो भाजपा को मिले 33.30 फीसदी से 10 फीसदी कम है। भाजपा को पिछले चुनाव में 32.5 फीसदी वोट मिले थे। इसका मतलब है कि आप और तृणमूल के लड़ने से भाजपा के वोट पर कोई असर नहीं हुआ, उलटे उसका वोट करीब एक फीसदी बढ़ गया। कांग्रेस को पिछली बार 28.40 फीसदी वोट मिला था, जिसमें से पांच फीसदी कम हो गया। आप ने पिछली बार कांग्रेस के वोट का छह फीसदी हिस्सा खा लिया था और इस बार पांच फीसदी के करीब वोट तृणमूल ने खा लिया। इसी तरह उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी को 3.31 फीसदी वोट मिला। दूसरी ओर कांग्रेस और भाजपा को मिले वोट में छह फीसदी का अंतर है। कांग्रेस को 37.9 फीसदी और भाजपा को 44.3 फीसदी वोट मिला। जाहिर है कि आप को मिला वोट भाजपा या सत्ता विरोध का वोट था, जो उसके नहीं होने पर कांग्रेस को मिलता। सो, जिस तरह से आप और तृणमूल ने गोवा में कांग्रेस का खेल बिगाड़ा वैसे ही आप ने उत्तराखंड में कांग्रेस का खेल बिगाड़ा। पंजाब में जहां आम आदमी पार्टी जीती है वहां भी उसने कांग्रेस का वोट ज्यादा खाया है। कांग्रेस को 2017 के चुनाव में 38.5 फीसदी वोट मिले थे और आप को 23.7 फीसदी वोट मिला था। इस बार आप को 42 और कांग्रेस को 23 फीसदी वोट मिले। यानी कांग्रेस का 15 फीसदी से ज्यादा वोट टूटा और लगभग पूरा ही आप में चला गया। भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों- पंजाब लोकहित कांग्रेस और अकाली दल ढींढसा को मिला कर 6.60 फीसदी वोट मिले। यह कुल मिला कर भाजपा का वोट है। पिछली बार उसे 5.4 फीसदी वोट मिले थे, जिसमें एक फीसदी का इजाफा हुआ है। अगर कैप्टेन की वजह से कांग्रेस का एक फीसदी वोट भाजपा के साथ जुड़ गया हो तो वह अलग बात है। तब भी कांग्रेस का 14 फीसदी वोट आप को गया है। अकाली दल को पिछली बार 25 फीसदी वोट था और इस बार साढ़े 18 फीसदी वोट मिला है। उसका भी कुछ वोट आप को गया होगा लेकिन बड़ा नुकसान कांग्रेस का हुआ। सो, चाहे पंजाब हो, उत्तराखंड हो या गोवा हो इन तीनों राज्यों में आम आदमी पार्टी के चुनाव लड़ने और नरम हिंदुत्व का एजेंडा चलाने के बावजूद भाजपा के वोट पर उसका कोई असर नहीं हुआ। उलटे भाजपा का वोट तीनों राज्यों में बढ़ गया। इसके उलट तीनों राज्यों में आम आदमी पार्टी की वजह से कांग्रेस के वोट घटे या वह चुनाव जीतने लायक वोट नहीं हासिल कर पाई। इससे पहले दिल्ली की कहानी भी सबको पता है। आप 2013 में पहली बार चुनाव लड़ी थी और दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी। तब भाजपा नंबर एक पार्टी थी। उसके बाद दो चुनावों में आप ने ऐतिहासिक जीत हासिल की लेकिन उन दोनों चुनावों में भी भाजपा का वोट कम नहीं हुआ। भाजपा अपना वोट बैंक बचाए रखने में कामयाब हुई, जबकि कांग्रेस साफ हो गई। सो, आप के चुनाव लड़ने और पैर फैलाने का एकमात्र नुकसान कांग्रेस को है। वह भाजपा के वोट पर असर नहीं डाल पाती है और क्षेत्रीय पार्टियों के वोट का नुकसान भी आप की वजह से नहीं होता है। गोवा और पंजाब में यह देखने को मिला है। उत्तर प्रदेश में भी आम आदमी पार्टी के लड़ने से भाजपा या किसी क्षेत्रीय पार्टी की सेहत पर असर नहीं पड़ा है। इसलिए आगे के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी जहां लड़ने जाएगी वहां कांग्रेस का नुकसान करेगी और अरविंद केजरीवाल की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा अंततः भाजपा की जीत का कारण बनेगी।
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