सवाल है कि क्या भाजपा को अंदाजा नहीं है कि अब अति हो रही है और अगर विपक्षी पार्टियों को ज्यादा परेशान करेंगे तो उनके प्रति सहानुभूति बन सकती है? निश्चित रूप से भाजपा को अंदाजा होगा और इमरजेंसी के बाद के चुनाव का इतिहास भी पता होगा इसके बावजूद विपक्ष को खत्म करने का या कमजोर करने का अभियान थम नहीं रहा है। पहले प्रधानमंत्री ने कांग्रेस मुक्त भारत की बात कही थी और अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कह रहे हैं कि कोई नहीं बचेगा, सिर्फ भाजपा बचेगी। सोचें, इस आत्मविश्वास का क्या कारण है? क्यों भाजपा इस आत्मविश्वास में है कि वह विपक्षी पार्टियों के खिलाफ कुछ भी करे, उसका कुछ नहीं बिगड़े उलटे उसको फायदा होगा?
इसके दो कारण हैं। पहला कारण यह है कि भाजपा ने पिछले आठ साल में मीडिया और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके विपक्ष के सभी नेताओं की साख बिगाड़ी है। विपक्षी नेताओं के बारे में झूठे-सच्चे (ज्यादातर झूठे) प्रचार से उनके बारे में एक धारणा बनवाई है। उनको भ्रष्ट या मुस्लिमपरस्त ठहराया गया है। उनके खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की जांच शुरू कराई गई है ताकि लोगों के मन में यह बात बैठे की अमुक नेता भ्रष्ट है। इसके लिए सबसे पहले मीडिया संस्थानों को काबू में किया गया। अखबार और टेलीविजन चैनल वहीं दिखाते हैं, जो सरकार कहती है। विपक्षी नेताओं के झूठे बयान या फोटोशॉप की हुई फोटो और एडिटेड वीडियो वायरल कराए जाते हैं और मीडिया उसे जस का तस चलाता है। ऐसे ही वीडिया के जरिए विपक्ष के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी को ‘पप्पू’ ठहराया गया है। ममता बनर्जी को ‘ममता आपा’ बता कर उनको मुस्लिमपरस्त ठहराया गया है। अखिलेश यादव के खिलाफ कुछ नहीं मिला तो आरोप लगा कि मुख्यमंत्री आवास खाली करते समय वे बाथरूम की टोंटी खोल कर ले गए। मुलायम सिंह के लिए ‘मौलाना मुलायम’ और लालू प्रसाद के लिए ‘चारा चोर’ का पुराना जुमला चलता है। हेमंत सोरेन के लेकर उद्धव ठाकरे तक के नेताओं और करीबियों को गिरफ्तार करके जेल में डाला गया है। भाजपा मानती है कि 1975 की इमरजेंसी के समय गिरफ्तार नेताओं की नैतिक सत्ता थी और जनता उन्हें भ्रष्ट नहीं मानती थी इसलिए उनका साथ दिया, जबकि अब नेताओं को भ्रष्ट ठहरा दिया गया है इसलिए जनता साथ नहीं देगी।
भाजपा के आत्मविश्वास का दूसरा कारण हिंदू-मुस्लिम का नैरेटिव है। इसे भी मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए भाजपा ने बखूबी जनमानस में बैठाया है। अलग अलग घटनाओं, कानूनों, भाषणों, टेलीविजन बहसों आदि के जरिए यह स्थापित किया गया है कि मुसलमानों से हिंदुओं को खतरा है और उन्हें नरेंद्र मोदी ही बचा सकते हैं। यह धारणा बनवाई गई है कि भारत असल में 2014 में आजाद हुआ, जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इसे हिंदुओं की आजादी बताया जा रहा है। राममंदिर निर्माण, कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति, नागरिकता कानून आदि के जरिए यह धारणा बनाने में मदद मिली। मंदिरों की मुक्ति और शहरों, रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने जैसे जैसे छोटे छोटे कामों से भी हिंदुओं को बताया जा रहा है कि यह काम तभी होगा, जब नरेंद्र मोदी और भाजपा की सरकार होगी। भाजपा इस आत्मविश्वास में है कि लोग राम के आगे रोटी भूले हुए हैं, मंदिर के आगे महंगाई नहीं देख पा रहे हैं और विभाजनकारी एजेंडे के आगे बेरोजगारी उनको महसूस नहीं हो रही है। उनके दिमाग में यह बात बैठाई जा रही है कि हिंदुओं के साथ जो अन्याय हुआ है उसके लिए आज का विपक्ष जिम्मेदार है।