रघुराम राजन ने उचित ही बनाई गई धारणाओं को लेकर आगाह किया है। उन्होंने कहा है कि असल में भारत उत्पादन के बजाय असेंबलिंग का केंद्र बनकर उभरा है। मोबाइल कंपनियां बाहर से पाट-पुर्जे लाकर यहां उन्हें असेंबल कर रही हैँ।
भारत में इस बात पर सुखबोध का माहौल है कि देश तेजी से मोबाइल फोन के निर्यात का केंद्र बनता जा रहा है। इसे केंद्र सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) योजना की एक बड़ी सफलता के रूप में पेश किया गया है। हालांकि इस दावे पर पहले भी कई हलकों से सवाल उठाए गए हैं, लेकिन अब भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने उचित ही इस बारे में बनी धारणाओं को लेकर आगाह किया है। उन्होंने कहा है कि असल में भारत मैनुफैक्चरिंग के बजाय असेंबलिंग का केंद्र बनकर उभरा है। इस खामी के लिए उन्होंने पीएलआई योजना के इस प्रावधान को भी जिम्मेदार ठहराया कि सरकार किसी उत्पाद को सब्सिडी फिनिशिंग के बाद ही दे रही है। इस कारण कंपनियां बाहर से पाट-पुर्जे लाकर यहां उन्हें असेंबल कर रही हैँ। इससे देश का आयात बिल बढ़ रहा है। इसके पहले अन्य विशेषज्ञ इस विडंबना की ओर ध्यान खींचते रहे हैं कि पीएलआई स्कीम के कारण भारत में चीन से आयात बढ़ा है, जबकि सरकार की नीति चीन पर निर्भरता घटाने की रही है। आयात-निर्यात के ताजा आंकड़ों ने यह बताया है कि चीन से आयात बढ़ने का रुझान इस वर्ष भी बदस्तूर जारी है।
इस वर्ष जनवरी से अप्रैल तक चीन से आयात में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई और आयात बिल 37.86 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। इस अवधि में दोनों देशों के बीच कुल 44.34 बिलियन डॉलर का कारोबार हुआ। जाहिर है, इसमें भारत से होने वाले निर्यात का हिस्सा 6.48 बिलियन डॉलर है। मुद्दा यह है कि पाट-पुर्जे आयात कर असेंबलिंग करने को प्रोत्साहित करना क्या सभी देशवासियों के हित में है? जब तक उत्पादन की पूरी शृंखला देश के अंदर नहीं नहीं बनती, तब तक असेंबलिंग कार्य से रोजगार के सीमित अवसर ही पैदा होंगे। उधर रघुराम राजन ने आगाह किया है कि डब्लूटीओ नियमों के तहत भारत पीएलआई स्कीम को वैल्यू एडिशन से जोड़ने की स्थिति में नहीं है। स्पष्टतः इसके जरिए व्यापक आधार वाली उत्पादन व्यवस्था नहीं बन सकती। ऐसे में उनका सवाल उचित है- ‘क्या यह योजना नाकामी की ओर बढ़ रही है?’