बेबाक विचार

क्या मुस्लिम बंट पाएंगे?

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क्या मुस्लिम बंट पाएंगे?
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जब तीन तलाक को अपराध बनाने का कानून बनाया तब इस बात का जोर-शोर से प्रचार किया गया कि मुस्लिम महिलाएं इससे बहुत खुश हैं। उसके बाद भाजपा के हर बड़े कार्यक्रम में बड़ी संख्या में बुर्का पहनने वाली महिलाओं को बैठाया जाता है और उन्हें टीवी पर दिखाया जाता है। हर चुनाव के बाद यह दावा किया जाता है कि इतने प्रतिशत मुस्लिम महिलाओं ने भाजपा के लिए वोट किया। यह अलग बात है कि मुस्लिम महिलाएं सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को अवैध किए जाने से ही संतुष्ट थीं लेकिन सरकार इतने से संतुष्ट नहीं हुई। उसने सर्वोच्च अदालत की ओर से अवैध कर दिए गए प्रैक्टिस को कानून बना कर अपराध बनाया। उसके बाद से ही कहा जा रहा है कि मुस्लिम महिलाएं बहुत खुश हैं और भाजपा को वोट कर रही हैं। अब मुस्लिम महिलाओं के बाद भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निशाना पसमांदा मुसलमान हैं। उन्होंने हैदराबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भाजपा के कार्यकर्ताओं को संदेश दिया कि वे समाज के गरीब व वंचित वर्ग तक पहुंचने का प्रयास करें। उन्होंने इसी सिलसिले में पसमांदा मुसलमानों का जिक्र किया। मीडिया की खबरों के मुताबिक उन्होंने मुस्लिम और ईसाई दोनों में गरीबों तक पहुंचने का निर्देश दिया है। ध्यान रहे मुसलमानों में जाति नहीं होने के मिथक के बावजूद सबको पता है कि हिंदुओं की तरह वहां भी कई जातियां हैं। एक तरफ शेख, सैयद जैसी ऊंची जातियां हैं तो दूसरी ओर पिछड़ी जाति के पसमांदा मुसलमान हैं। बिहार में नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ रहते पसमांदा मुसलमानों की खूब राजनीति की थी। पसमांदा मुस्लिम राजनीति के तहत ही नीतीश कुमार ने उस समाज से आने वाले अली अनवर को राज्यसभा सांसद बनाया था। बिहार में लगातार पसमांदा मुसलमानों के सम्मेलन होते रहे और नीतीश कुमार के भाजपा के साथ होने के तथ्य के बावजूद पसमांदा मुस्लिमों का एक समूह जदयू को वोट देता रहा। उसी लाइन पर भाजप मुस्लिम वोट का विभाजन कराने और केंद्र सरकार की राहत व कल्याण वाली योजनाओं के सहारे पसमांदा मुस्लिमों को अलग करना चाहती है। ध्यान रहे पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया में यह प्रचार जोर-शोर से चल रहा है कि देश की साढ़े 14 फीसदी मुस्लिम आबादी केंद्र सरकार की योजनाओं की सबसे बड़ी लाभार्थी है। टेक्स्ट के जो स्लाइड सोशल मीडिया में देखने को मिल रहे हैं उनके मुताबिक कई योजनाओं के 30 फीसदी तक लाभार्थी मुस्लिम हैं। हालांकि स्वतंत्र रूप से इन आंकड़ों की पुष्टि नहीं की गई है लेकिन प्रचार हो रहा है तो इसका कोई न कोई मकसद होगा। एक तरफ यह प्रचार है और दूसरी ओर पसमांदा मुसलमानों तक पहुंच बनाने का प्रयास है। इन दोनों को मिला कर देखने पर एक तस्वीर उभरती है। लेकिन सवाल है कि क्या बिहार में जो काम नीतीश कर पाए थे वह भाजपा और नरेंद्र मोदी कर पाएंगे? नीतीश और उनकी पार्टी ने भाजपा के साथ होने के बावजूद कभी मुसलमानों की धार्मिक भावना को आहत करने वाली टिप्पणियां नहीं की और न कोई वैसा काम किया। लेकिन भाजपा के दर्जनों बड़े नेता खुल कर उन लोगों के साथ खड़े हैं, जो मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहे हैं। भले आर्थिक और सामाजिक रूप से मुस्लिम समाज बंटा हुआ हो लेकिन धार्मिक आधार पर वहां बंटवारा नहीं है। वहां कुरान और हदीस सबके लिए समान रूप से पवित्र हैं और पैगंबर मोहम्मद का अपमान पसमांदा मुसलमान को भी बरदाश्त नहीं है। इसलिए कल्याणकारी योजनाओं से गरीब मुसलमान को पटाने की योजना से पहले उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करना बंद करना होगा।
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