सवाल है जब भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पूरी सरकार के साथ मिल कर देश के 140 करोड़ लोगों के सामने अपनी कूटनीतिक सफलता का डंका बजाएंगे तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी क्या करेंगे? जब प्रधानमंत्री मोदी त्रिपुंड तिलक लगा कर और भगवा कपड़े में पवित्र सरयू नदी से डुबकी लगा कर निकलेंगे और भव्य राममंदिर का लोकार्पण करेंगे तो राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल क्या करेंगे? क्या ये दोनों कूटनीति और धर्म के मोर्चे पर नरेंद्र मोदी का मुकाबला कर पाएंगे? क्या ये कूटनीति और धर्म को वैसे बेच पाएंगे, जैसे मोदी बेचेंगे?
पहले कूटनीति की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी ने अभी से जी-20 की अध्यक्षता और अगले साल होने वाले सम्मेलन को बेचने की तैयारिया शुरू कर दी हैं। पांच और छह दिसंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी की कोर कमेटी की बैठक बुलाई है, जिसमें लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा की जाएगी। सूत्रों के हवाले से आई खबरों में कहा गया है कि कोर कमेटी की बैठक में इस बात पर भी विचार किया जाएगा कि जी-20 की अध्यक्षता भारत को मिली है और अगले साल सितंबर में दुनिया के सबसे ताकतवर 20 देशों के नेताओं की बैठक भारत में होगी तो उसका कैसे राजनीतिक लाभ लिया जाए। यह भाजपा कोर कमेटी की बैठक का एजेंडा है कि इस सम्मेलन को राजनीतिक रूप से कैसे भुनाया जा सकता है या अधिकतम लाभ लिया जा सकता है। बताया जा रहा है कि बैठक में प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल हो सकते हैं।
जिस तरह से जी-20 की अध्यक्षता का प्रचार हो रहा है उसी तरह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक महीने के लिए मिली अध्यक्षता का भी प्रचार है। जो चीजें रूटीन में हो रही हैं और पहले भी होती रही हैं उन सबको ऐसे पेश किया जा रहा है, जैसे पहली बार हो रहा है और मोदी के कारण हो रहा है।
ठीक विपरीत राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल का इन चीजों पर फोकस ही नहीं है। राहुल अपनी यात्रा से सब कुछ बदल जाने की उम्मीद कर रहे हैं तो केजरीवाल को लग रहा है कि मुफ्त की रेवड़ी बांटने की उनकी योजना उनको जीत दिला देगी। दोनों अपने अपने मुगालतों में हैं। वैसे भी जो विपक्ष में है वह कूटनीतिक मामलों में कुछ कर भी नहीं सकता है। यह ऐसा मुद्दा है कि अगर इसका विरोध किया या आय़ोजन पर सवाल उठाए तो उसका और नुकसान हो जाएगा।
यही स्थिति धर्म के मामले में है। कांग्रेस या आम आदमी पार्टी कोई भी राममंदिर के उद्घाटन या लोकार्पण का विरोध नहीं कर सकता है। किसी भी धार्मिक आयोजन का विरोध दोनों नेताओं को हिंदू विरोधी बना देगा। पहले ही इनकी इमेजी इसी तरह की बन गई है। अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में जब कहा कि उनकी सरकार बनी तो वे राज्य के बुजुर्गों को अयोध्या की यात्रा कराएंगे तो भाजपा ने पुरानी खबरें निकाल कर बताया कि केजरीवाल अयोध्या में भव्य राममंदिर निर्माण का विरोध कर चुके हैं। सो, राहुल हों या केजरीवाल दोनों किसी भी धार्मिक आयोजन का विरोध नहीं करेंगे। फिर सवाल है कि क्या करेंगे? जब अयोध्या में राममंदिर का उद्घाटन होगा, विंध्यवासिनी कॉरिडोर का लोकार्पण होगा या काशी कॉरिडोर के दूसरे चरण का काम पूरा होगा या इस तरह का कई भी बड़ा धार्मिक आयोजन होगा तो ये दोनों क्या करेंगे? इनकी मजबूरी है कि विरोध करने की बजाय भाजपा और नरेंद्र मोदी की तरह ये भी धार्मिक आयोजनों में शामिल हों और अपने धार्मिक होने का प्रमाण पेश करते हैं।
यह विडंबना है कि जिस तरह भारत के मुसलमानों को हर समय अपनी देशभक्ति का प्रमाण देना होता है उसी तरह दो मुख्य विपक्षी पार्टियों कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं को अपने हिंदू होने का प्रमाण देना होता है। तभी राहुल गांधी मध्य प्रदेश में अपनी भारत यात्रा के दौरान जब उज्जैन पहुंचे तो महाकाल के दरबार में गए और साष्टांग लेट कर महादेव को प्रणाम किया। वे अपने को शिव भक्त बताते रहते हैं। हालांकि सबको पता है कि उनकी कैलाश मानसरोवर की यात्रा हो या महाकाल के मंदिर में साष्टांग प्रणाम हो उससे वे वैसा माहौल नहीं बना सकते हैं और न वैसी धारणा बना सकते हैं, जैसी प्रधानमंत्री मोदी बनाते हैं। इसके कई कारण हैं, जिनमें एक उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि है, उनकी अपनी शिक्षा-दीक्षा है और उनके खिलाफ निरंतर चलाया गया अभियान है।
राहुल गांधी के मुकाबले अरविंद केजरीवाल ने चुपचाप अपनी हिंदू नेता की इमेज बनाई है। शुरुआती कुछ घटनाओं को छोड़ दें तो उन्होंने अपने को भाजपा नेताओं से ज्यादा हिंदू साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वे भी मुसलमानों को टिकट नहीं देते हैं या देते हैं तो सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए। वे पहले हनुमान चालीसा पढ़ते रहे और फिर अपने को कंस का वध करने वाला कृष्णावतार घोषित किया है। उन्होंने पिछले दिनों नोट पर लक्ष्मी और गणेश की फोटो लगाने की भी मांग करके अपना धार्मिक पक्ष दिखाया था। ब्राह्मणों की तरह सर्वाधिक धार्मिक जातीय समूह वैश्यों का है और केजरीवाल को यह घोषणा करने में कभी दिक्कत नहीं होता है कि वे बनिया हैं और उनको धंधा करना आता है। सो, वे कुछ हद तक धर्म का मुद्दा बेच सकते हैं लेकिन जहां असली है वहां लोग क्लोन की ओर कम ही ध्यान देंगे। इस बात को केजरीवाल और राहुल दोनों के समझना चाहिए।