बेबाक विचार

शराब से नाता और अनुभव

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शराब से नाता और अनुभव
कई बार लगता है कि कहीं पाठक मेरा कॉलम पढ़कर यह ने सोचने लगे कि मैंने तो शराबबंदी समाप्त हो जाने के बाद ही इस पर लिखना शुरू कर दिया है। दरअसल शराब से जुड़ी मेरे जीवन की तमाम घटनाएं है जिनकी मैं अनदेखी नहीं कर सकता। मेरा ब्राह्मणों के प्रति शुरू से बहुत लगाव था। मेरे पिता व मेरे सारे अभिन्न मित्र ब्राह्मण थे व मेरी पत्नी भी संयोग से ब्राह्मण ही है।मैंने अपने अनुभवों से पाया कि जब कोई ब्राह्मण व्यवहारिकता के साथ विद्वता प्रदर्शित करता है तो वह पंडत या पंडित कहलाने लगता है। मैं कोई दर्जन भर पंडितो को जानता हूं व उनके संपर्क में रहता हूं और जब भी कोई कष्ट होता है तो उनसे संपर्क कर उनकी राय लेता हूं। जब मैं काफी पीता था तो मेरे परिचित एक दक्षिण भारतीय स्वामीजी से मेरी पत्नी ने मेरी इस आदत के बारे में कुछ करने को कहा तो उनका जवाब था कि एक दिन यह अपने आप छूट जाएगी। आज वहीं हुआ है। पत्रकार होने के कारण मैं किसी भी चीज को यूं ही स्वीकार नहीं करता था व उससे जुड़े तमाम सवाल उठाता था। एक दिन मैंने अपने पंडितजी से पूछा कि हम गर्मियो में हनुमानजी को आइसक्रीम क्यों नहीं चढ़ा सकते हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि जरूर चढ़ा सकते हैं पर जब मदर डेरी से आइसक्रीम लाए तो दुकानदार से यह सुनिश्चित कर लीजिएगा कि उसमें कहीं अंडा तो नहीं है। अतः मैंने उन पर बिना अंडे वाली आइसक्रीम चढ़ानी शुरू कर दी। जब पिताजी का श्राद्ध आया तो पंडितजी से कहा कि मेरे पिताजी तो नॉनवेज खाते थे व शराब के शौकीन थे व कहते है कि ब्राह्मणों को वहीं खिलाना चाहिए जोकि दिवंगत को पसंद रहा हो। उन्होंने कहा कि अगर आप को कोई खाने-पीने वाला ब्राह्मण मिल जाए तो आप ऐसा कर सकते हैं। मैंने अपने दफ्तर के कुछ सहयोगी पत्रकारो को यह बात बताकर उनसे श्राद्ध पर आने को कहा वे मान गए। संयोग से वे मांस तो खाते थे मगर शराब नहीं पीते थे। मैंने पिताजी के श्राद्ध पर उन्हें रोगन जोश व चिकन बिरयानी खिलाई व शराब की बोतल अपने ब्राह्मण ड्राइवर को दे दी। एक बार मंगलवार के दिन मुझे शाम को किसी बड़े नेता ने अपनी पार्टी में आमंत्रित किया था जिसमें मांस मदिरा सर्व की जानी थी। मेरा जाने का काफी मन था। अतः मैंने अपने पंडितजी को फोन करके अपनी समस्या बताई तो उन्होंने उसका हल निकालते हुए कहा कि हिंदू धर्म में प्रहर दिन या रात सूरज उगने से लेकर उसके डूबने तक लागू रहते हैं। आप तो सूरज डूबने के बाद ही वहां जाएंगे। ध्यान रहे सूरज डूबने के बाद ही कुछ लीजिएगा। मुझे पश्चाताप किए बिना ही खाने-पीने का मौका मिल गया क्योंकि पंडितजी के अनुसर सूरज डूबने के बाद बुधवार चालू हो गया था। व्यासजी को भी देश के जाने माने नेता पंडित पुकारते आए हैं। एक बार बहुत बड़े कांग्रेस नेता ने मुझसे कहा भी था कि यह कैसे पत्रकार है जो कि न तो खाते है और न ही पीते हैं। व्यासजी की इस आदत का मुझे बहुत लाभ हुआ व अक्सर बड़े-बड़े नेताओं की ऐसी पार्टियो में खुद जाने की जगह वे मुझे भेजने लगे। जब मैंने जनसत्ता में नौकरी के लिए आवेदन किया था तो व्यासजी ने मुझसे कहा कि तुम खाते पीते हो। अगर मैंने कभी तुम्हारे पीने के बाद कोई हरकत करने की खबर सुनी तो उसी दिन नौकरी से निकाल दूंगा। गनीमत है कि इसकी कभी नौबत नहीं आई। जब वीपी सिंह ने अपना चुनाव प्रचार शुरू किया तो व्यासजी ने मुझे उसके व मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ लगा दिया। मैंने उन दोनों के साथ पूरे देश का दौरा किया। व्यासजी ने मुझसे कहा कि तुम्हे व मुफ्ती दोनों को खाने-पीने का शौक है अतः इसीलिए तुम्हे उसके साथ लगाया हुआ है। अपनी शामें उन्हीं के साथ पीते हुए बिताया करो। हमें तो बदले में अच्छी खबरें ही चाहिए। मेरी व मुफ्ती की बहुत अच्छी दोस्ती हो गई। मैं यह बात गर्व के साथ कह सकता हूं कि मैं एकमात्र गैर-अंग्रेजी व गैर-कश्मीरी पत्रकार था जोकि उनके इतना ज्यादा करीब था। मुझे इसका लाभ भी मिला। जब तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया तो व्यासजी ने मुझे उसका इंटरव्यू करने को कहा था। वह इंटरव्यू प्रकाशित करने वाला जनसत्ता देश का एक मात्र अखबार था। व्यासजी इन सब चीजो को हाथ भी नहीं लगाते थे मगर जब वे प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के साथ विदेश जाते तो उन्हें सौजन्यतावश भेंट में दूसरें अंहम पत्रकारों की तरह बढि़या शराब व सिगरेट उपहार में मिलती थी। व्यासजी उन्हें न लेने का नाटक नहीं करते थे। उनके वापस लौटने पर भाभीजी मुझे घर बुलाकर एक कोने में रखी बोतले दे देती थी व सिगरेट हमारे एक सिगरेट पीने वाले पत्रकार सुशील कुमार सिंह को दे दी जाती थी व बाद में जनसत्ता के आला पत्रकार उनकी इस भेंट का मजा लेते थे। व्यासजी पाखंडी पंडित नहीं थे। उन्होंने इसको व अन्य अधीनस्थ लोगों को उन चीजो का सेवन करने से कभी नहीं रोका जोकि वे खुद छूते भी नहीं थे। उनके न पीने का सबसे ज्यादा लाभ मुझे हुआ क्योंकि वे तमाम ऐसी जगहों पर मुझे भेजने लगे जहां कॉकटेल पार्टी चल रही होती थी। हालांकि मेरे पीने से नाराज होकर मेरी पत्नी उनका उदाहरण देते हुए कहती कि तुम्हारी यह दलील एकदम गलत है कि पत्रकार खबरें निकालने के लिए पीते हैं। व्यासजी को देखें इतने बड़ पत्रकार है वे तो कभी इन गंदी चीजों को हाथ तक नहीं लगाते हैं। इतना ही नहीं भाभीजी से क्षमा सहित मैं यह खुलसा करना चाहूंगा कि वे महिलाओं से भी बहुत दूर रहते हैं। एक बार मैंने रेलवे की एक महिला अधिकारी के खिलाफ खबर लिखी। वह मेरे खिलाफ शिकायत लेकर उनके पास चली गई व उन्होंने उसे मेरे पास भेजने के बाद मुझसे कहा कि भविष्य में तुम कोई ऐसी खबर नहीं करोगे कि कोई महिला मुझसे मिलने दफ्तर आ जाए।
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