संभव है शीर्षक को सिरे से खारिज करें। पर मैं जैसे 2011 से 2014 के बीच नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री होते देख रहा था वैसे ही अब मैं योगी आदित्यनाथ को हिंदू दिमाग में बतौर अवतार अवतरित हुए बूझ रहा हूं। हिंदुओं के दिल-दिमाग में वे अब निमित्त हैं राक्षसों के संहार के। असली छप्पन इंची छाती के रघुकुल वंशज! पुराना स्थायी सत्य है कि दिल्ली के तख्त का फैसला उत्तर प्रदेश से होता है। नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी, कांग्रेस से लेकर भाजपा सबने यूपी को जीत कर दिल्ली में सत्ता पाई। और नोट करें, यूपी अब सौ टका योगी आदित्यनाथ की निजी जागीर है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटों में अखिलेश-नीतीश-राहुल-बसपा कितनी ही पिछड़ी, मंडलवादी राजनीति कर लें, ये 2024 के चुनाव में यूपी में एक-दो सीट भी नहीं जीत पाएंगे। तभी कोई माने या न माने मेरा मानना है सन् 2024 में नरेंद्र मोदी की शपथ केवल और केवल योगी आदित्यनाथ के प्रताप की वजह से होगी। दूसरे शब्दों में मोदी पूरी तरह से योगी पर आश्रित।
हां, अतीक अहमद के मिट्टी में मिलने की घटना योगी आदित्यनाथ की जन्मपत्री का वह मोड़ है, जिससे उत्तर भारत का हिंदू दिल-दिमाग उनका चरणदास हुआ है। योगी महाराज, अब घर-घर के महाराज हैं। कम, औसत, आम और समझदार हिंदुओं में वह चिंता रजिस्टर ही नहीं है जो सेकुलर, सुधी, आधुनिक हिंदू दिमागों में है कि भारत जंगलराज की और लौट रहा है। असलियत में, ताजा परिप्रेक्ष्य में यह मान लेना चाहिए कि हिंदुओं को जंगलराज पसंद है। धर्मपरायण हिंदू दिल-दिमाग जंगल के वनवास, वानरों की सेना और गृहयुद्ध तथा महाभारत के अनुभव व परिणाम वाली जिंदगी इक्कीसवीं सदी में भी चाहता है।
विषयांतर हो रहा है। मैं पुराण-इतिहास में खो रहा हूं। पर इक्कीसवीं सदी का हिंदू दिमाग अतीक अहमद के चेहरे पर जंगलराज का मुरीद साफ नजर आ रहा है। हिंदू उस कथा में डूबा हुआ है, जिसमें प्रभु योगी आदित्यनाथ ने बतौर ईश्वर के निमित्त जन्म ले कर राक्षसों के संहार का बीड़ा उठाया है। उनसे मुलायम सिंह-अखिलेश-सेकुलरों की अति का बदला है। मुलायम सिंह, अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, आजम खान, अहमद पटेल के वे तमाम चेहरे लोगों के जहन में उभरे हैं, जो निश्चित ही एक वक्त सत्ता में न केवल पावरफुल थे, बल्कि वैश्विक आंतकवाद से हवा पाई हिंदू बनाम मुस्लिम रियलटी में अपने बड़बोलेपन से हिंदू मानस को घायल करते थे।
याद करें मुलायम सिंह के अयोध्या प्रसंग के उन डायलॉग को कि परिंदा पार नहीं होगा। या कारसेवकों पर गोली चलने के बाद का यह जुमला कि जरूरत हुई तो फिर गोली चलवाऊंगा। तब सत्ता के अहंकार में क्या-क्या नहीं हुआ था। याद करें अखिलेश राज के उस प्रकरण को जब बनारस में ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य के शिष्य (जो अब शंकराचार्य हैं) स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को पुलिस ने सड़क पर दौड़ाते हुए पीटा था। ऐसे ही लुटियन दिल्ली में अहमद पटेल द्वारा सुप्रीम कोर्ट और मीडिया से लेकर राज्यसभा में ऐसे-ऐसे नमूनों (जावेद अख्तर, गुलाम वाहनवती) को बैठाना था, जिनकी राजनीतिक समझ या तो मौत के सौदागर जैसी जुमलेबाजी थी या ‘हिंदू आंतकवाद’ के दुष्प्रचार से लेकर नेचुरल रिसोर्सेज में अल्पसंख्यकों के पहले अधिकार (प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जुबानी) बयान की थी।
तभी अतीक अहमद का मिट्टी में मिलना हिंदू मनोविज्ञान में योगी के सियासी शक्ति पीठ की स्थापना है। योगी उत्तर भारत में उन लोगों के लिए रक्षा कवच हैं, जिनके दिमाग में मुस्लिम की बतौर मसले उपस्थिति हैं।
तभी योगी आदित्यनाथ अब नरेंद्र मोदी, अमित शाह आदि सबसे ऊपर हैं। वे हिंदुत्व के बैटरी चार्जर हैं। खुद नरेंद्र मोदी और संघ-भाजपा परिवार सभी दिल्ली की सत्ता के लिए उत्तर प्रदेश के गारंटीदाता के नाते योगी पर सौ टका निर्भर हो गए हैं। उत्तर प्रदेश में न योगी आदित्यनाथ रिप्लेसेबल हैं और न उनके आगे अखिलेश यादव या मायावती की पार्टियां चुनावी मुकाबले में कायदे से खड़े हो कर लड़ पाएंगी। मेरा मानना है कि कर्नाटक में अमित शाह के मौजूदा दौरे जहां महज औपचारिक माहौल बनाने के लिए हैं। वहीं नरेंद्र मोदी की सभाओं में लोग उनकी घोषणाओं, रेवड़ियों के बासी भाषण को सुनते हुए थके से भक्त वहीं योगी की सभाओं में जय श्रीराम के नारों के साथ भाजपा, मोदी-शाह की बैटरी रिचार्ज भी होगी। कर्नाटक में योगी की सभाओं से भाजपा की बैटरी के रिचार्ज होने पर जरूर नजर रखें।