नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने असम में चल रही परिसीमन की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि असम में विधानसभा और संसदीय क्षेत्र के लिए चल रही परिसीमन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। ऐसे में इस पर रोक लगाना उचित नहीं है। इसलिए हम चुनाव आयोग को अपने परिसीमन रोकने के लिए नहीं कहेंगे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 10 विपक्षी नेताओं की ओर से दायर याचिका पर नोटिस जारी किया और तीन हफ्ते में केंद्र व चुनाव आयोग से जवाब मांगा।
सोमवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि परिसीमन पर रोक कैसे लगा सकते हैं? ये 2008 का कानून है। अब 15 साल बाद एकदम रोक नहीं लगा सकते। उन्होंने कहा- कानून लागू होने के 15 साल बाद भी हम वैधानिक प्रावधान पर रोक नहीं लगा सकते। हमें इसे उचित ठहराने के लिए उन्हें समय देना होगा। यह एक गंभीर संवैधानिक प्रक्रिया है। याचिका दायर करने वालों की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि परिसीम पर तत्काल रोक लगाने की मांग की थी।
गौरतलब है कि 10 विपक्षी नेता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। उन्होंने असम सहित चार राज्यों में चल रही परिसीमन प्रक्रिया को चुनौती दी है। याचिका में चुनाव आयोग द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली और इस साल 20 जून को अधिसूचित उसके प्रस्तावों को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं में असम की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के साथ साथ रायजोर दल, असम जातीय परिषद, सीपीएम, सीपीआई, टीएमसी, एनसीपी, राजद और आंचलिक गण मोर्चा के नेता शामिल हैं।
याचिका में विभिन्न जिलों के लिए अलग-अलग औसत विधानसभा आकार लेकर चुनाव आयोग द्वारा अपनाई गई पद्धति को चुनौती दी गई है और तर्क दिया गया है कि परिसीमन की प्रक्रिया में जनसंख्या घनत्व या जनसंख्या की कोई भूमिका नहीं है। याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि परिसीमन की एक तय प्रक्रिया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज अध्यक्ष और राज्य के सभी दलों के जन प्रतिनिधि शामिल होते हैं। राज्य की आबादी की भागीदारी भी होती है।