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महिलाओं के लिए पूर्वाग्रह वाले शब्द कोर्ट में नहीं चलेंगे

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अदालत के फैसलों और टिप्पणियों को लैंगिक रूप से निरपेक्ष और महिलाओं के प्रति सम्मानजनक बनाने के लिए बड़ी पहल की है। उनकी पहल पर सर्वोच्च अदालत ने एक हैंडबुक जारी की है, जिसमें महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह वाले या अपमानजनक शब्दों की सूची दी गई है और कहा गया है कि अदालत में इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। पूरी न्यायिक बिरादरी को महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए यह पहल की गई है।

सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी हैंडबुक में कहा गया है कि वेश्या, रखैल, जनाना, अफेयर जैसे 40 शब्दों का इस्तेमाल अदालत के फैसलों में नहीं होगा। असल में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस साल आठ मार्च को महिला दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम में कहा था कि कानूनी मामलों में महिलाओं के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल बंद किया जाएगा। बुधवार को यह हैंडबुक जारी करते हुए उन्होंने कहा कि इससे जजों और वकीलों को यह समझने में आसानी होगी कि कौन से शब्द रूढ़ीवादी हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है। इस हैंडबुक में ऐसे शब्दों के लिए वैकल्पिक शब्द भी सुझाए गए हैं।

बहरहाल, चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने बुधवार की सुबह ‘हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स’ को पेश किया। इस मौके पर पहले अदालती फैसलों में इस्तेमाल किए गए रूढ़िवादी शब्दों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा- ये शब्द अनुचित हैं और अदालती फैसलों में महिलाओं के लिए इस्तेमाल किए गए हैं। इस हैंडबुक का मकसद फैसलों की आलोचना करना या उन पर संदेह करना नहीं है, इसका उद्देश्य सिर्फ यह रेखांकित करना है कि अनजाने में लैंगिक रूढ़िवादिता कैसे बनी रहती है।

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