नई दिल्ली। संविधान की प्रस्तावना बदल कर उसमें से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने की मांग तेज हो गई है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने गुरुवार, 26 जून को यह मुद्दा उठाया था और कहा था कि मूल प्रस्तावना में ये दोनों शब्द नहीं थे। इन्हें इमरजेंसी के समय इंदिरा गांधी ने जोड़ा था। इसलिए इनको हटाने पर विचार होना चाहिए। अब उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह मुद्दा उठाया है और कहा है कि इस पर विचार होना चाहिए। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी इसे हटाने की मांग की है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और जितेंद्र सिंह पहले ही इसे हटाने की मांग कर चुके हैं।
शनिवार को उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना नहीं बदली जा सकती है। भारत के अलावा किसी दूसरे देश में संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं किया गया। भारत के संविधान के प्रस्तावना में 1976 के 42वें संविधान संशोधन के जरिए बदलाव किया गया था। उप राष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, ‘संशोधन के माध्यम से इसमें समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्द जोड़े गए थे’। उन्होंने आगे कहा, ‘हमें इस पर विचार करना चाहिए। बी. आर. आंबेडकर ने संविधान पर कड़ी मेहनत की थी और उन्होंने निश्चित रूप से इस पर ध्यान केंद्रित किया होगा’।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, ‘आपातकाल के दो प्रमुख परिणाम हमारे संविधान में ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़ना था। मेरा मानना है कि धर्मनिरपेक्षता सर्व धर्म समभाव के भारतीय विचार के खिलाफ है। समाजवाद भी कभी भी हमारी आर्थिक दृष्टि नहीं थी, हमारा ध्यान हमेशा सर्वोदय अंत्योदय पर रहा है। इसलिए, मैं सरकार से अनुरोध करता हूं कि वह इन दो शब्दों को प्रस्तावना से हटा दे, क्योंकि वे मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे’।