बेंगलुरू। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने पांच गारंटियां लागू करने के बाद अब एक और चुनावी वादा पूरा करने का ऐलान किया है। सिद्धरमैया सरकार ने पिछली भाजपा सरकार द्वारा बनाए गए धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द करने का फैसला किया है। राज्य कैबिनेट की तरफ से इसे लेकर गुरुवार को एक प्रस्ताव पास किया गया। दूसरी ओर भाजपा ने इस कदम की तीखी आलोचना की है। उसने कहा है कि कांग्रेस पार्टी नई मुस्लिम लीग है और हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराना चाहती है।
बहरहाल, कर्नाटक के कानून और संसदीय मामलों के मंत्री एचके पाटिल ने गुरुवार को बताया कि धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द करने के प्रस्ताव को राज्य कैबिनेट की मंजूरी मिल गई। गौरतलब है कि पिछली भाजपा सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए पहले इसे लागू किया था बाद में इसे सदन में लाया गया था। इस कानून के ऊपर विधानसभा में भाजपा और कांग्रेस के बीच टकराव देखने को मिला था। कांग्रेस ने इस कानून को अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के लिए एक हथियार बताया था।
सिद्धरमैया ने पिछले साल मीडिया से कहा था- हमारा कानून प्रलोभनों और धमकियों के जरिए जबरन धर्मांतरण को रोकने में सक्षम है। फिर नए कानून की क्या जरूरत है? इसका एकमात्र कारण अल्पसंख्यकों को डराना और परेशान करना है। ध्यान रहे धर्मांतरण विरोधी कानून के विरोध में मामला अदालत में भी गया था, जहां ईसाई संगठनों ने तर्क दिया था कि नया कानून संविधान द्वारा दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द करने के फैसले के साथ साथ राज्य सरकार ने एक और बड़ा फैसला किया। एचके पाटिल ने बताया कि कैबिनेट ने स्कूली इतिहास की किताबों से राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार से जुड़े अध्यायों को भी हटाने का फैसला किया है। हेडगेवार से जुड़े अध्यायों को पिछले साल किताबों में जोड़ा गया था। पाटिल ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा कि मंत्रिमंडल ने स्कूलों और कॉलेजों में भजन के साथ संविधान की प्रस्तावना को पढ़ना अनिवार्य करने का भी फैसला लिया है।