नई दिल्ली। विपक्ष और सहयोगी पार्टियों के विरोध की वजह से केंद्र सरकार लैटरल एंट्री के जरिए शीर्ष नौकरशाही में निजी कंपनियों के पेशेवरों को नियुक्त करने के मामले में पीछे हट गई है। संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी की ओर से 45 पदों के लिए नियुक्ति का विज्ञापन जारी होने के तीन दिन बाद केंद्र सरकार ने इसे वापस करने का फैसला किया है। केंद्र सरकार के फैसले के बाद यूपीएससी ने लैटरल एंट्री से होने वाली नियुक्ति का प्रस्ताव रद्द कर दिया है।
गौरतलब है कि यूपीएससी ने 17 अगस्त को लैटरल एंट्री के जरिए 45 पदों के लिए वैकेंसी निकाली थी। इसके अगले ही दिन से इसका विरोध शुरू हो गया था। इसका नतीजा यह हुआ कि केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने मंगलवार, 20 अगस्त को यूपीएससी अध्यक्ष से विज्ञापन रद्द करने को कहा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर यह फैसला किया गया है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी सहित कांग्रेस और विपक्ष के अनेक नेताओं ने इसका विरोध किया था। सरकार में जनता दल यू के महासचिव केसी त्यागी और केंद्रीय मंत्री व लोजपा नेता चिराग पासवान ने भी इसका विरोध किया था।
राहुल गांधी ने इस प्रस्ताव कहा था कि लैटरल एंट्री में आरक्षण का प्रावधान नहीं है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा था- लैटरल एंट्री के जरिए एससी, एसटी और ओबीसी का हक छीना जा रहा है। मोदी सरकार आरएसएस वालों की लोक सेवकों में भर्ती कर रही है। राहुल के आरोप के जवाब में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि 1976 में मनमोहन सिंह को लैटरल एंट्री के जरिए ही वित्त सचिव बनाया गया था। इसी तरह मोंटेक सिंह अहलूवालिया को योजना आयोग का उपाध्यक्ष और सोनिया गांधी को नेशनल एडवाइजरी काउंसिल में शामिल किया गया था। मेघवाल ने कहा कि लैटरल एंट्री की शुरुआत कांग्रेस ने की थी। उन्होंने कहा कि अब प्रधानमंत्री मोदी ने यूपीएससी को नियम बनाने का अधिकार देकर सिस्टम को व्यवस्थित किया है। पहले की सरकारों में इसका कोई औपचारिक सिस्टम नहीं था।
इससे पहले राहुल गांधी ने मंगलवार को सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा था- लैटरल एंट्री जैसी साजिशों का विरोध किया जाएगा। साथ ही संविधान और आरक्षण व्यवस्था की हर कीमत पर रक्षा करेंगे। सरकार के सहयोगियों में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने लैटरल एंट्री के जरिए बहाली पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था- सरकारी नियुक्ति में आरक्षण होना चाहिए, इसमें कोई किंतु, परंतु नहीं हो। निजी क्षेत्र में आरक्षण नहीं है। सरकारी पदों पर इसे लागू नहीं करते हैं, तो चिंता की बात है। जदयू के केसी त्यागी ने भी इस पर चिंता जताई थी और फैसले पर फिर से विचार करने को कहा था।