नई दिल्ली। नोबल पुरस्कार का फैसला करने वाली समिति ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नाराजगी की परवाह नहीं की। उसने ट्रंप के लिए हुए तमाम नामांकनों और ट्रंप की मांग को खारिज कर दिया। नोबल पुरस्कार समिति ने वेनेजुएला में तानाशाही के खिलाफ लगातार संघर्ष करने वाली और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने वाली मारिया मचाडो को शांति के नोबल पुरस्कार के लिए चुना है। वे वेनेजुएला की विपक्षी नेता हैं। इस चयन से ट्रंप और उनका प्रशासन नाराज है।
वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया मचाडो ने अपने देश में लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने और तानाशाही से लोकतंत्र की ओर शांतिपूर्ण बदलाव लाने के लिए दो दशक तक संघर्ष किया है। नोबेल समिति ने उनको शांति का नोबल पुरस्कार देने की घोषणा करते हुए कहा कि आज जब दुनिया के कई हिस्सों में तानाशाही बढ़ रही है और लोकतंत्र कमजोर हो रहा है, तब मारिया मचाडो जैसे लोगों की हिम्मत उम्मीद जगाती है। नोबल पुरस्कार समिति ने कहा, ‘लोकतंत्र ही स्थायी शांति की शर्त है। जब सत्ता हिंसा और डर के जरिए जनता को दबाने लगती है, तो ऐसे साहसी लोगों को सम्मान देना जरूरी हो जाता है’।
उधर अमेरिकी ने राष्ट्रपति ट्रंप को नोबल नहीं मिलने पर नाराजगी जताई है और पक्षपात का आरोप लगाया है। खबरों के मुताबिक व्हाइट हाउस की ओर से कहा गया है कि नोबल कमेटी ने एक बार फिर साबित किया कि वे शांति से ज्यादा राजनीति को तरजीह देते हैं। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि तकनीकी रूप से नोबल समिति ने ट्रंप के नाम पर विचार नहीं किया क्योंकि 2025 के नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन की अंतिम तारीख 31 जनवरी थी, जबकि ट्रंप इससे 11 दिन पहले यानी 20 जनवरी 2025 को ही राष्ट्रपति बने थे। उस समय उनके पास शांति के नोबल के लिए कोई खास उपलब्धि भी बताने को नहीं थी।