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आधार स्वीकार करने का आदेश

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को बिहार में मतदाता सूची में नागरिकों का नाम शामिल करने के लिए दस्तावेज के तौर पर आधार को स्वीकार करने का आदेश दिया है। इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने करीब दो महीने से चल रही अनिश्चितता को समाप्त कर दिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश भी दिया है कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के पहले चरण में जिन 65 लाख लोगों के नाम काटे गए हैं उनमें में जो लोग भी अपना नाम मतदाता सूची में जुड़वाना चाहते हैं उनको ऑनलाइन आवेदन करने की सुविधा भी दी जाए। मामले की अगली सुनवाई आठ सितंबर को होगी।

गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने एसआईआर के पहले चरण के बाद मसौदा मतदाता सूची जारी की है, जिसमें सात करोड़ 24 लाख नाम शामिल हैं। 65 लाख से कुछ ज्यादा लोगों के नाम काट दिए गए लेकिन आयोग ने उनके दावों और आपत्तियों के लिए एक महीने का समय दिया है, जिसमें 22 दिन बीत गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मसले पर हुई सुनवाई में ऑनलाइन आवेदन की इजाजत देने का आदेश देने के साथ यह भी कहा कि आधार कार्ड सहित फॉर्म छह में दिए गए 11 दस्तावेज में से कोई भी जमा किया जा सकता है, इनमें ड्राइविंग लाइसेंस, पासबुक, पानी का बिल जैसे दस्तावेज शामिल हैं।

शुक्रवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने राजनीतिक दलों को मामले पर चुप्पी साधने के लिए भी फटकार लगाई और पूछा कि मतदाताओं की मदद के लिए आप क्या कर रहे हैं? अदालत ने कहा कि पार्टियों को आगे आना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘राजनीतिक दलों की निष्क्रियता हैरान करने वाली है। राज्य की 12 पार्टियों में से यहां मात्र तीन पार्टियां ही कोर्ट में आई हैं। उन्होंने पार्टियों से पूछा कि मतदाताओं की मदद के लिए आप क्या कर रहे हैं? कोर्ट ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि राजनीतिक दलों के करीब एक लाख 60  हजार बूथ लेवल एजेंट होने के बावजूद, उनकी ओर से केवल दो आपत्तियां ही आई हैं।

चुनाव आयोग के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि सब कुछ ठीक है। आयोग को समय देना चाहिए ताकि वह प्रक्रिया को पूरा कर सके। दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं की ओर से इस  पूरी प्रक्रिया की समय सीमा बढ़ाने की मांग की गई। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया, ‘इस पूरी प्रक्रिया को लेकर ज़मीन पर भ्रम फैला हुआ है। आयोग को इस पर प्रेस रिलीज़ जारी करनी चाहिए और समय सीमा बढ़ानी चाहिए ताकि निष्पक्षता बनी रहे’। वकील प्रशांत भूषण ने पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘7.24 करोड़ मतदाताओं का क्या होगा? 12 फीसदी को बीएलओ ने ‘नॉट रिकमेंडेड’ कहा है’। उन्होंने कहा, ‘हर दिन 36 हज़ार फॉर्म की जांच करनी होगी, यह संभव नहीं है। ऐसे में कोई उपाय नहीं बचेगा’।

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