नई दिल्ली। मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत बड़ा आदेश दिया है। इसे विपक्षी पार्टियों की बड़ी जीत माना जा सकता है। सर्वोच्च अदालत ने चुनाव आयोग की तमाम आपत्तियों को खारिज करते हुए मतदाता सूची के सत्यापन में आधार को 12वां दस्तावेज बनाने का आदेश दिया है। इससे पहले आयोग ने बिहार में एसआईआर के लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की थी और आधार को उससे बाहर रखा था।
सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को कहा, ‘आधार पहचान का प्रमाण पत्र है, नागरिकता का नहीं’। इसके बाद कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि वोटर की पहचान के लिए आधार को 12वें दस्तावेज के तौर पर माना जाए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने यह भी कहा कि आधार कार्ड को लेकर अगर किसी तरह की शंका हो तो आयोग इसकी जांच कराए।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि कोई भी नहीं चाहता कि चुनाव आयोग अवैध प्रवासियों को मतदाता सूची में शामिल करे। केवल वास्तविक नागरिकों को ही वोट देने की अनुमति होगी। जो लोग फर्जी दस्तावेजों के आधार पर दावा कर रहे हैं, उन्हें मतदाता सूची से बाहर रखा जाएगा। सुनवाई शुरू होने पर कोर्ट में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा, ‘10 जुलाई को कोर्ट ने चुनाव आयोग को आधार कार्ड स्वीकार करने को कहा। अभी भी 65 लाख लोगों के लिए भी आधार स्वीकार नहीं किए जा रहे हैं’। सिब्बल ने कहा कि जो बूथ लेवल ऑफिसर आधार स्वीकार कर रहे हैं उनको चुनाव आयोग की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी किया जा रहा है।
इस पर कोर्ट ने नोटिस पेश करने को कहा। जिस पर चुनाव आयोग का पक्ष रख रहे वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि उनके पास नोटिस नहीं है। इसका जवाब देते हुए कपिल सिब्बल ने कहा, ‘ये आपके दस्तावेज हैं, इस पर निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी का साइन है’। अब इस मामले में अगले सोमवार यानी 15 सितंबर को सुनवाई होगी।
कोर्ट में पेश नोटिस पर जस्टिस बागची ने कहा, ‘इस कारण बताओ नोटिस में सिर्फ 11 दस्तावेज़ों का ही ज़िक्र क्यों है? हम स्पष्टीकरण चाहते हैं क्योंकि हमने आदेश पारित कर कहा है कि यह सूची एक उदाहरणात्मक सूची है। पासपोर्ट और जन्म प्रमाण पत्र के अलावा कोई भी नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं है’। जिसपर वरिष्ठ अधिवक्ता द्विवेदी ने कहा, ‘हम पता लगाएंगे कि यहां कौन सा अधिकारी दोषी है’।
