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श्रीनगर में 33 साल बाद मुहर्रम का जुलूस

श्रीनगर। इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से इन दिनों मुहर्रम का महीना चल रहा है। शिया मुसलमानों के लिए पूरी दुनिया में इसे पवित्र महिना माना जाता है। इसलिए क्योंकि पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन की शहादत की स्मृति में बड़े जुलूस निकलते हैं। हुसैन की शहादत सातवीं सदी में हुई थी। कश्मीर में 1990 से पहले जुलूस निकला करते थे। लेकिन दूसरे समुदाय की हिंसा और विरोध के चलते प्रशासन ने इन पर प्रतिबंध लगा रखा था।

लेकिन बदले माहौल में उपराज्यपाल मनोज सिंहा व जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने इस बार शियाओं को जुलूस की अनुमति दी। श्रीनगर के आला अधिकारियों ने खुद मौजूद रह कर शांतिपूर्ण जुलूस के प्रबंध किए। श्रीनगर की सड़कों पर पुराने शहर लाल चौक से डल लेक के किनारे तक जब लोग छाती पीटते और झंडे लहराते चल रहे थे तो उनके साथ प्रशासन तथा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी सुरक्षा के लिए मौजूद थे। इससे पहले अधिकारियों और मौलवियों में सहमति, सबकुछ शांति से होने के लिए बातचीत हुई। तभी पिर जुलूस की अनुमति दी गई।

जुलूस के बाद श्रीनगर के आला अफसर मोहम्मद एजाज ने कहा, इस तरह जुलूस निकल सकना अमन-चैन लौट आने का नतीजा है। यों 1990 के बाद कुछ छोटे जुलूसों की अनुमति दी गई है लेकिन उनमें अक्सर हिंसा हुआ करती थी।

ध्यान रहे कश्मीर में शिया मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, यहां बड़ी संख्या सुन्नी मुसलमानों की है। इस इलाके में 10 फीसदी आबादी शियाओं की है।आज का  जुलूस मौजूदा नई पीढ़ी के लिए बड़ा था। लोगों ने निश्चिंतता सेइसमें बड़ी संख्या में भाग लिया।

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