नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय यानी एएमयू को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बड़ा बयान दिया है। केंद्र सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने का विरोध किया है और कहा है कि यह राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित दलीलें दाखिल की हैं और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पिछली यूपीए सरकार के उलट रुख प्रस्तुत किया है।
केंद्र ने अपनी लिखित दलील में कहा है कि इस संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जाए क्योंकि एएमयू का राष्ट्रीय चरित्र है। केंद्र ने कहा है कि एएमयू किसी विशेष धर्म का विश्वविद्यालय नहीं हो सकता है, क्योंकि यह हमेशा से राष्ट्रीय महत्व का विश्वविद्यालय रहा है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अपने राष्ट्रीय चरित्र को देखते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है और यह किसी विशेष धर्म का संस्थान नहीं हो सकता है।
केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता द्वारा यह दलील सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ के सामने दी गई है। इस संविधान पीठ ने अल्पसंख्यक दर्जे के लिए एएमयू की याचिका पर सुनवाई शुरू की है। केंद्र की दलील पिछली यूपीए सरकार द्वारा अपनाए गए रुख से अलग है। यूपीए सरकार ने 2005 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। हाई कोर्ट ने तब फैसला सुनाया था कि एएमयू एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है और तत्कालीन यूपीए सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हालांकि 2016 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बता दिया था कि वह यूपीए सरकार द्वारा दायर अपील को वापस ले रही है।
उसके बाद सॉलिसीटर जनरल ने संविधान पीठ के सामने अपनी दलीलों में कहा कि आजादी से पहले भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय राष्ट्रीय महत्व का संस्थान रहा है। उन्होंने इस दलील को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कोई भी विश्वविद्यालय, जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है वह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है।