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आईपीसी के नए बिल ‘तानाशाही’ वाले!

ByNI Desk,
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नई दिल्ली पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने अंग्रेजों के वक्त बने आईपीसी कानून की जगह अमित शाह द्वारा पेश भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक को ‘असंवैधानिक’ करार दिया है। उन्होने कहा कि सरकार औपनिवेशिक युग के कानूनों को खत्म करने की बात करती है, लेकिन इन विधेयकों से यह सोच जाहिर होती है कि वह ऐसे कानूनों के माध्यम से “तानाशाही लाना” चाहती है।वह ऐसे कानून बनाना चाहती है, जिनके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों, मजिस्ट्रेट, लोक सेवकों, कैग (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) और अन्य सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘मैं न्यायाधीशों से सतर्क रहने का अनुरोध करना चाहता हूं। अगर ऐसे कानून पारित किए गए, तो देश का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।’’बीएनएस विधेयक का जिक्र करते हुए सिब्बल ने दावा किया कि यह ‘खतरनाक’ है और अगर पारित हो जाता है, तो सभी संस्थानों पर केवल सरकार का हुक्म चलेगा।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘मैं आपसे (सरकार से) इन्हें (विधेयकों को) वापस लेने का अनुरोध करता हूं। हम देश का दौरा करेंगे और लोगों को बताएंगे कि आप किस तरह का लोकतंत्र चाहते हैं-जो कानूनों के माध्यम से लोगों का गला घोंट दे और उनका मुंह बंद कर दे।’’

राज्यसभा सदस्य सिब्बल ने सरकार से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को बदलने के लिए लाए गए तीन विधेयकों को वापस लेने की बात कही। उनके अनुसार  यदि ऐसे कानून वास्तविकता बन जाते हैं, तो वे देश का ‘‘भविष्य खतरे में डालेंगे।’’

सिब्बल ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार औपनिवेशिक युग के कानूनों को खत्म करने की बात करती है, लेकिन उसकी सोच यह है कि वह कानूनों के माध्यम से देश में तानाशाही लाना चाहती है।

कांग्रेस के पूर्व नेता सिब्बल ने कहा कि ये विधेयक ‘पूरी तरह से न्यायपालिका की स्वतंत्रता के विपरीत’ है। उन्होंने सरकार की आलोचना करते हुए कहा, ‘‘ये विधेयक पूरी तरह से असंवैधानिक हैं और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की जड़ पर प्रहार करते हैं। उनकी सोच स्पष्ट है कि वे इस देश में लोकतंत्र नहीं चाहते।’’

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